Friday, January 10, 2025
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यूपी नगर निकाय चुनाव: ओबीसी आरक्षण के लिए आयोग गठित

जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: यूपी के नगर निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को लेकर आज बुधवार को सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में ओबीसी आयोग का गठन कर दिया है।

रिटायर्ड जज राम अवतार सिंह की अध्यक्षता में गठित आयोग में कुल पांच सदस्य होंगे। सरकार की ओर से इसे लेकर अधिसूचना जारी कर दी गयी है। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही यूपी के निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग आरक्षण का निर्धारण होगा।

गौरतलब है कि मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने ओबीसी आरक्षण लागू किये बिना ही यूपी में चुनाव कराने के निर्देश सरकार को दिये थे, वहीं सरकार की ओर से स्पष्ट कहा गया था कि बिना पिछड़ा वर्ग आरक्षण के उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव संपन्न नहीं कराए जाएंगे।

सरकार की ओर से इसे लेकर उच्चतम न्यायालय जाने की बात भी कही गयी थी। वहीं अब प्रदेश सरकार ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मद्देनजर पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर दिया गया है।

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आयोग में इन्हें किया गया शामिल

सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग में रिटायर्ड जज राम अवतार सिंह की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी बनायी गयी है।

इसमें रिटायर्ड आईएएस चौब सिंह वर्मा, रिटायर्ड आईएएस महेन्द्र कुमार, भूतपूर्व विधि परामर्शी संतोष कुमार विश्वकर्मा और पूर्व अपर विधि परामर्शी व अपर जिला जज बृजेश कुमार सोनी को आयोग में शामिल किया गया है।

आयोग निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग को आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। उस रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण निर्धारित करेगी।

आयोग में दो सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और दो रिटायर विधि अधिकारी सहित सभी पांच सदस्य पिछड़े वर्ग से लिए गए हैं। आयोग के अध्यक्ष राम अवतार सिंह और सदस्य चौब सिंह वर्मा जाट समाज से है। संतोष कुमार लुहार और ब्रजेश कुमार स्वर्णकार समाज से है। सेवानिवृत्त आईएएस महेंद्र कुमार चौरसिया समाज से हैं।

पहले भी कई बार रैपिड सर्वे के आधार पर ही हुए हैं निकाय चुनाव

निकाय चुनाव के लिए में पिछड़ों को आरक्षण दिए जाने के लिए रैपिड सर्वे को आधार बनाने को लेकर विपक्षी दल भले ही मौजूदा सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। लेकिन, इससे पहले की सरकारों में भी इसी को आधार बनाकर निकाय और त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव कराए गए थे। अलबत्ता उस दौर में इस तरह से हो-हल्ला नहीं मचा था।

उप्र नगर पालिका अधिनियम-1994 में दी गई व्यवस्था के मुताबिक निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण देने की प्रक्रिया लागू की गई थी। इसी आधार पर 1994 के बाद से 1995, 2000, 2006, 2012 और 2017 में हुए निकाय चुनाव भी रैपिड सर्वे के आधार पर ही कराये गए हैं।

बता दें कि अधिनियम में ही पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए रैपिड सर्वे कराने का प्रावधान है। इसके तहत ही प्रत्येक निकायों में पिछड़ों की संख्या जानने के लिए रैपिड सर्वेक्षण कराया जाता है।

2001 में हुई जनगणना के बाद 2005 में हुए पहले निकाय चुनाव में भी अधिनियम के दिए गए प्रावधान के मुताबिक ही रैपिड सर्वे के आधार पर पिछड़ों की सीटों का आरक्षण तय किया गया था। यही प्रक्रिया 2017 के चुनाव में भी अपनाई गई थी।

चूंकि मौजूदा सरकार ने 2017 के निकाय चुनाव के बाद से अब तक कुल 111 नये नगर निकायों का गठन और 130 नगर निकायों का सीमा विस्तार किया है।

वहीं अधिनियम में दी गई व्यवस्था और रैपिड सर्वे के संबंध में शासन की ओर से जारी शासनादेश को न्यायालय द्वारा अब तक निरस्त नहीं किया गया है।

इसलिए सरकार ने इस चुनाव में भी पूर्व निर्धारित व्यवस्था के आधार पर ही रैपिड सर्वे कराया था और उसके मुताबिक ही पिछड़ी जाति के लिए सीटों का आरक्षण जारी किया था, जिसे कोर्ट ने नहीं माना है।

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