Thursday, May 8, 2025
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कानून व्यवस्था मजबूत होने के दावों के बीच

Samvad


Nirmal Ran1केंद्र व लगभग सभी राज्य सरकारों के ‘कानून व्यवस्था नियंत्रित’ होने के तमाम दावों के बावजूद प्राय: ऐसी अनेक घटनाएं सामने आती रहती हैं जो इन सरकारी दावों की धज्जियां उड़ा कर रख देती हैं। ऐसी ही एक घटना गत 24 जून 2024 को राजधानी दिल्ली के व्यस्ततम इलाके प्रगति मैदान की सुरंग के भीतर उस समय घटित हुई, जबकि मोटरसाइकिल सवार चार बदमाशों द्वारा कार रुकवाकर एक डिलीवरी एजेंट और उसके सहयोगी से पिस्टल दिखाकर लगभग 2 लाख रुपये लूट लिए गए। जिस समय लूट की घटना अंजाम दी जा रही थी, उस समय इस सुरंग में ट्रैफिक चल रहा था। सुरंग में लगे सीसीटीवी कैमरे में लूट की दुस्साहसिक घटना रिकार्ड हुई। इस घटना ने देश के लोगों को स्तब्ध कर दिया कि जब प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृहमंत्री के निवास व कार्यालय तथा सर्वोच्च न्यायालय के बिल्कुल करीब इस तरह की घटना अंजाम दी जा सकती है फिर दूर दराज के या सन्नाटे इलाकों में किसी व्यक्ति की सुरक्षा की भला क्या गारंटी?

गौरतलब है कि राजधानी दिल्ली की पुलिस व्यवस्था दिल्ली में निर्वाचित सरकार होने के बावजूद केंद्र सरकार के पास ही है। और दिल्ली पुलिस देश की आधुनिक व चौकस पुलिस फोर्स के रूप में गिनी जाती है। आश्चर्य की बात यह है कि जो पुलिस प्रदर्शनकारी हजारों किसानों को दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने का साहस रखती हो, जो पुलिस महिला खिलाड़ियों को जंतर मंतर से दिल्ली के नवनिर्मित संसद भवन पर महिला पंचायत करने से रोकने की क्षमता रखती हो आखिर उसी पुलिस से अपराधी इतना बे खौफ कैसे हो गए कि सरेशाम दिल्ली के इतने हाईफाई व संवेदनशील इलाके में कार रुकवा कर पिस्टल की नोक पर इतनी दुस्साहसिक लूट कर डाली।

हालांकि दिल्ली पुलिस ने इस संबन्ध में पहले दो कथित आरोपियों को गिरफ़्तार करने और बाद में उनकी निशानदेही पर दो और कथित आरोपियों को गिरफ़्तार भी कर लिया है। फिर भी लूट की इस घटना के बाद दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी, अन्य विपक्षी दलों तथा कांग्रेस पार्टी ने भी भाजपा सरकार की कार्यकुशलता पर सवाल खड़ा किया है।

इसी तरह उत्तर प्रदेश की सरकार भी अपराध पर नियंत्रण करने का जोर शोर से दावा करती है। आए दिन राज्य में होने वाली पुलिस मुठभेड़ों के द्वारा भी यही संदेश देने की कोशिश की जाती है कि राज्य में गुंडों व उनकी गुंडागर्दी को सहन नहीं किया जाएगा। इसी राज्य में पुलिस सुरक्षा में गत 15 अप्रैल रात को रात 10:35 पर अतीक अहमद व उसके भाई अशरफ की मीडियाकर्मियों के सामने इलाहाबाद के कॉल्विन अस्पताल परिसर में तीन शूटरों द्वारा गोली मारकर हत्या की गई और पुलिस अपनी निगरानी में चल रहे कैदियों को सुरक्षा नहीं दे सकी।

यह तीनों शूटर पत्रकार के वेश में कॉल्विन हॉस्पिटल परिसर में अतीक अशरफ के करीब पहुंचे थे। इस घटना ने भी पुलिस की कारगुजारी पर सवाल खड़ा किया है। अतीक व अशरफ के परिवार ने तो उसी समय सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर यहां तक आरोप लगाया था कि इन दोनों भाइयों की हत्या में सरकार का हाथ है और यह राज्य प्रायोजित हत्या थी।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि दोनों भाइयों के साथ-साथ अतीक के बेटे असद अहमद के एनकाउंटर की भी स्वतंत्र जांच कराई जाए। याचिका में यह भी कहा गया थाउच्चस्तरीय सरकारी एजेंटों के माध्यम से इस पूरी घटना की योजना बनाई गई। उन्होंने उसके परिवार के सदस्यों को मारने के लिए योजना बनाई और उसे पूरा किया।

याचिका में यह भी कहा गया था कि पुलिस अधिकारियों को उत्तर प्रदेश सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त है। उन्होंने आरोप लगाया था कि प्रतिशोध के तहत उसके परिवार के सदस्यों को मारने, अपमानित करने, गिरफ़्तार करने और परेशान करने के लिए उन्हें पूरी छूट दी हुई है, ऐसा प्रतीत होता है।

यदि पुलिस अपनी लापरवाही से अतीक व अशरफ को हत्यारों की गोली का निशाना बनने से रोक लेती तो शायद इसतरह के संगीन आरोप राज्य सरकार और उसकी पुलिस पर न लगते। उत्तर प्रदेश में ही इससे भी चुनौतीपूर्ण व सनसनीखेज घटना गत 7 जून लखनऊ की स्थानीय अदालत के भीतर हुई।

संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा नाम के एक गैंगस्टर की भरी अदालत में गोली मारकर हत्या कर दी गई। जीवा को एक मामले में सुनवाई के लिए अदालत में लाया गया था। जहां हमलावरों द्वारा गोली मारकर उसकी हत्या कर दी गई। हमलावर वकीलों की पोशाक पहनकर आधुनिक पिस्टल साथ लेकर जीवा के अदालत में पहुंचने से पहले ही उसी कोर्ट रूम में जा बैठे थे।

कहा जाता है कि जिस समय हत्यारे ने जीवा पर गोली चलानी शुरू की उस समय अदालत में तो भगदड़ मची ही खुद जज साहब भी किसी अनहोनी से बचने के लिये अपनी टेबल के नीचे जा घुसे। बाद में कुछ वकीलों ने ही साहस दिखाते हुये हत्यारे पर काबू पाया। उत्तर प्रदेश में हत्या लूट व बलात्कार जैसी घटनायें तो आम तौर पर होती रहती हैं।

सवाल यह है कि बुलडोजर की धमक दिखाकर, समुदाय विशेष को निशाना बनाकर या फर्जी मुठभेड़ों में लोगों को मारने जैसी कार्रवाइयां ही पुलिस की कुशलता व चौकसी का प्रमाण हैं या कि आम लोगों को भी इस बात का एहसास होना चाहिए कि देश में कानून का राज है?

अपराधियों का पुलिस कस्टडी में, अदालत में मारा जाना या दिल्ली के व्यस्त इलाके में नंगा नाच दिखाना और लूट व हत्या जैसी वारदातों को बेखौफ अंजाम देना तो यही दर्शाता है कि सरकार भले ही कानून व्यवस्था सुदृढ़ होने के कितने ही दावे क्यों करे, परंतु अपराधी बेखौफ हैं और उनके हौसले पूरी तरह बुलंद हैं।


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