नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है। आज हम बात उस समय की करते हैं जब उत्तर प्रदेश में उत्तराखंड राज्य बना नहीं था। साल 1993 में उत्तर प्रदेश में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए समाजवादी पार्टी के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बहुजन समाज पार्टी के तत्कालीन मुखिया कांशीराम के साथ मिलकर एक गठजोड़ किया था। उस समय यूपी में विधानसभा की कुल 422 सीटें थीं। समझौते के मुताबिक सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव 256 सीट और बसपा ने 164 सीटों पर चुनाव लड़े। विधानसभा चुनाव में सपा बसपा गठबंधन ने इलेक्शन जीता जिसमें सपा ने 109 और बसपा ने 67 सीटों पर जीत दर्ज कीं।
इस चुनावी जीत के बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव सूबे के मुख्यमंत्री बने। लेकिन, आपसी मनमुटाव या सच्चाई मानिए कि इस दौरान दलितों पर अत्याचार बढ़ने के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इस वजह से मुलायम सिंह यादव की सरकार अल्पमत में आ गई। सरकार को बचाने के लिए जोड़-घटाव किए जाने लगे। ऐसे में अंत में जब बात नहीं बनीं तो नाराज सपा के वरिष्ठ नेता, कार्यकर्ता और विधायक लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए, जहां मायावती कमरा नंबर-1 में ठहरीं हुईं थीं।
और फिर 2 जून 1995 के दिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो हुआ वह शायद ही कहीं हुआ होगा। मायावती पर गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में हमला हुआ था। 2 जून 1995 को मायावती लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं। तभी दोपहर करीब तीन बजे कथित समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं नेताओं की भीड़ ने अचानक गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया। कांशीराम के बाद बीएसपी में दूसरे नंबर की नेता मायावती उस वक्त को जिंदगीभर नहीं भूल सकतीं। उस दिन समाजवादी पार्टी के विधायकों, नेताओं और समर्थकों की उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर दलित नेता की आबरू पर हमला करने पर आमादा थी।
मायावती के जीवन पर आधारित अजय बोस की किताब ‘बहनजी’ में गेस्ट हाउस में उस दिन घटी घटना की जानकारी विस्तार से देता है। बताया जाता है कि साल 1995 के गेस्टहाउस कांड में जब कुछ कथित तौर पर सपा के गुंडों ने बसपा सुप्रीमो मायावती को कमरे में बंद करके मारा और उनके कपड़े फाड़ दिए थे। किसी तरह मायावती ने अपने को कमरे में बंद किया था और बाहर से समाजवादी पार्टी के विधायक और समर्थक दरवाजा तोड़ने में लगे हुए थे। इस बीच, कहा जाता है कि अपनी जान पर खेलकर बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी मौके पर पहुंचे और सपा विधायकों और समर्थकों को पीछे ढकेला। बता दें कि ब्रह्मदत्त द्विवेदी की छवि भी दबंग नेता की थी। यूपी की राजनीति में इस कांड को गेस्टहाउस कांड कहा जाता है और ये भारत की राजनीति के माथे पर कलंक है। खुद मायावती ब्रह्मदत्त द्विवेदी को भाई कहने लगीं और सार्वजनिक तौर पर कहती रहीं कि अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने मेरी जान बचाई थी।
जानकारी के लिए बता दें कि ब्रह्मदत्त द्विवेदी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सेवक थे और उन्हें लाठी चलानी भी बखूबी आती थी इसलिए वो एक लाठी लेकर हथियारों से लैस गुंडों से भिड़ गए थे। यही वजह है कि मायावती ने भी उन्हें हमेशा अपना बड़ा भाई माना और कभी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। पूरे राज्य में मायावती बीजेपी का विरोध करती रहीं, लेकिन फर्रुखाबाद में ब्रह्मदत्त द्विवेदी के लिए प्रचार करती थीं।