Tuesday, April 15, 2025
- Advertisement -

ज्ञानार्जन करना ही साक्षात आराधना

Ravivani 13

विजय गर्ग

इस समय देश-विदेश की अनेक घटनाएं सुर्खियों में हैं, क्योंकि नए साल में नई उम्मीदों के साथ घटनाओं का विश्लेषण आम रहा है। मगर इसके इतर एक गहन विषय पर चिंतन किया जाना चाहिए कि बच्चों और युवाओं के भीतर इन घटनाओं, क्रियाकलापों, राजनीतिक और आर्थिक घटनाचक्र आदि में दिलचस्पी अत्यंत कम क्यों है। बच्चे और युवा टीवी या मोबाइल पर इन घटनाओं का विश्लेषण न कर नकारात्मक मनोरंजन के साधनों में समय बिता रहे हैं। युवाओं को देश के सकल घरेलू उत्पाद की, संगीत, साहित्य और कला के फनकारों की, राजनीति के नेपथ्य में गूंजते स्वरों की प्रारंभिक जानकारी भी नहीं है। युवा वर्ग को अभिनेताओं- अभिनेत्रियों के पुनर्विवाह, व्यापारी परिवार के विवाह उत्सव, टीवी के गेम शो या ‘चैलेंज’ क्रिकेटर के तलाक आदि की तो जानकारी मिल जाती है, लेकिन उन्हें ओलंपिक खेलों, इजराइल – हमास युद्ध, रूस-यूक्रेन संकट, बजट के आधारभूत तत्त्वों, रेल दुर्घटनाओं और पनपते पर्यावरण संकट की सतही जानकारी भी नहीं होती है। यह बहुत चिंताजनक स्थिति है ।

अगर बुद्धिमता के विकास की दृष्टि से देखा जाए, तो यह आने वाले कुछ वर्षों में एक संकट बनने वाला है, क्योंकि दस वर्ष बाद ये बारह से बीस वर्षीय युवा और ज्यादा बड़े होंगे और जब इन्हें कुछ जानकारी नहीं होगी, तो ये अगली पीढ़ियों को क्या सिखा सकेंगे! ऐसी बात करने पर कई बार इनके बीच के कुछ युवाओं का तर्क होता है कि जो बात अधेड़ और बूढ़े व्यक्ति अखबारों, पत्रिकाओं में पढ़ते हैं, वे उन्हें मोबाइल पर उपलब्ध है। बात सही है, लेकिन उन्हें ‘खुद से ये पूछना चाहिए कि वे उस मोबाइल में रक्षा, शिक्षा, अर्थ नीति को पढ़ते हैं या चमक-दमक वाली सतही मनोरंजन वाली खबरों या संभावनाओं का अध्ययन करते हैं।

विडंबना यह कि कई अभिभावकों को भी लगता है कि जीवन का सुख और आनंद, हास्य विनोद, मनोरंजन, रील बनाने और मनमर्जी से खान- पान में निहित है। इस भोगवादी रवैये के चलते युवाओं में ज्ञान और जीवन मूल्यों का विकास रुक-सा गया है। हालांकि सिर्फ युवाओं को दोष देना अनुचित है, क्योंकि घरों में अखबार, पत्र-पत्रिकाएं, पुस्तकें उपलब्ध ही नहीं हैं। पुस्तक, अखबार या पत्रिका हो तो बच्चा कम से कम फोटो देखेगा और उसके भीतर कुछ प्रश्न उभरेंगे। अब तो यह भी नहीं है। ज्यादातर माता – पिता खुद कुछ पढ़ ही नहीं रहे तो वे क्या और किसकी चर्चा करेंगे? माता-पिता को जरूरी पत्रिकाओं और अखबारों के नाम तक से उदासीन होते हैं तो इसमें युवाओं का क्या दोष? माता-पिता द्वारा स्वाध्याय कर अपने बच्चों का ज्ञान बढ़ाने से ही इस समस्या का समाधान संभव हो सकेगा । इसके लिए मोबाइल को छोड़कर स्वाध्याय की तरफ कदम बढ़ाना होगा।

बच्चों या युवाओं में स्वाध्याय करके कुछ बनने या अपने जीवन को संवारने का भाव तब आता है, जब उन्हें लगे कि उनका जीवन एक संग्राम है और वे अपने जीवन के स्वयं निमार्ता हैं। मगर लगता है, आज युवाओं में यह बोध ही नहीं है, क्योंकि उनको महसूस होने लगा है कि माता-पिता द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का उपभोग करना ही जीवन है। वे जमकर पढ़ाई नहीं कर रहे हैं। दरअसल, कई माता- पिता ने अपनी संतान के जीवन को इतना ज्यादा सुगम और आनंददायी बना दिया है कि बच्चों में संघर्ष करने, हार को स्वीकार करने और खुद अपने दम पर कुछ कर गुजरने की इच्छा मानो लुप्त सी हो गई है। प्रेम के स्थान पर बेलगाम पुचकार की प्रवृत्ति के कारण संतान हाथ से निकल रही है और यह प्रक्रिया इतनी शांत और तेज है कि अभिभावक इस परिवर्तन को समझ ही नहीं पा रहे । प्रेम शुद्ध सात्विक भाव है। बच्चों की इच्छाओं को पूरा करना, उन्हें उत्तम शिक्षा देना, उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना, उन्हें भावनात्मक संबल देना प्रेम की संज्ञा में आता है। बच्चों की नाजायज मांग को पूरा करना, उनके गलत शौकों को भी पूरा करना बेवकूफी कहलाता है। अत्यधिक और विवेक से रहित प्यार में पलने वाले और स्वाध्याय से दूर बच्चे जीवन में बहुत जल्दी हार मान लेते हैं। शोध के अनुसार, इनके अवसादग्रस्त, मनोरोगी होने, आत्मघाती कदम उठाने की प्रवृत्ति अन्य बच्चों की अपेक्षा अधिक होती है।

पढ़ने से बुद्धि का विकास होता है, विचार पोषित होते हैं और व्यक्ति के जीवन को आधार व संबल मिलता है। महापुरुषों की जीवनियां, उनके कृत्य, उद्यमियों के संघर्ष आदि पढ़ने से व्यक्ति अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा प्रारंभ करता है । ‘ज्ञान ही शक्ति है’ के सिद्धांत को समझकर यह जानना होगा कि नया सीखना, खुद को अद्यतन करना और समाज को अपने शोध से कुछ देना ही जीवन का उद्देश्य है। मंदिर या देवालय ध्वस्त हो सकते हैं। बड़ी से बड़ी इमारत नष्ट हो सकती है । पैसा समाप्त हो सकता है। जमीन-जायदाद बिक सकती है। इन सबके बीच सिर्फ ज्ञान ही ऐसा है, जिसे न तो खरीदा जा सकता है, न बेचा जा सकता है और न ही यह नष्ट हो सकता है। इसलिए ज्ञानार्जन करना ही साक्षात आराधना है।

spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Meerut News: मुंडाली में घुड़चढ़ी में विवाद पर युवक की चाकू घोंपकर हत्या

जनवाणी संवाददाता |मुंडाली: बढ़ला कैथवाड़ा में घुड़चढ़ी के दौरान...

​World News: रूस-यूक्रेन के बीच जबरदस्त युद्ध, 21 लोगों की मौत,कईं घायल

जनवाणी ब्यूरो |नई दिल्ली: एक बार फिर ​रूस-यूक्रेन युद्ध...
spot_imgspot_img