Wednesday, May 14, 2025
- Advertisement -

जानवरों की कब्रगाह कांजीरंगा

 

SAMVAD

PANKAJ CHATURVEDI

एक सींग के गेंडे और रायल बंगाल टाईगर यानी बाघ के सुरक्षित ठिकानों के लिए मशहूर, यूनेस्को द्वारा संरक्षित घोषित कांजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के लगभग 90 फीसदी हिस्से में इस समय पानी भर गया है। जानवर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में गहरे पानी में हरसंभव थक कर हताश होने की हद तक तैरते हैं, दौड़ते हैं, दलदली जमीन पर थक कर लस्त हो जाते हैं। या तो पानी उन्हें अपने आगोश में ले लेता है या फिर भूख। कुछ बच कर बस्ती की तरफ दौड़ते हैं तो सड़क पर तेज गति वाहनों की चपेट में आ जाते हैं तो हॉग हिरण(पाढ़ा) जैसे पशु शिकारियों के हाथों मारे जाते हैं। बाढ़ के पानी में डूबने से अब तक 10 एक सींग वाले दुर्लभ गैंडों सहित 200 वन्य प्राणियों की मौत हो गई है। इनमें 179 हॉग हिरण, 3 दलदल हिरण, 1 मकाक, 2 ऊदबिलाव, 1 स्कोप्स उल्लू और 2 सांभर हिरण शामिल हैं। दो हॉग हिरणों की मौत राष्ट्रीय राजमार्ग पार करने की कोशिश करते समय वाहनों की चपेट में आने से हो गई। यह आंकड़े तो उन इलाकों से हैं जहां पानी नीचे उतरा है |

असम की राजधानी गौहाटी से कोई 225 किलोमीटर दूर गोलाघाट व नगांव जिले में 884 वर्ग किलोमीटर में फैले कांजीरंगा उद्यान की खासियत यहां मिलने वाला एक सींग का गैंडा है। इस प्रजाति के सारी दुनिया में उपलब्ध गैंडों का दो-तिहाई इसी क्षेत्र में मिलता है। इसके अलावा बाघ, हाथी, हिरण, जंगली भैंसा, जंगली बनैला जैसे कई जानवरी यहां की प्रकृति का हिस्सा हैं। सनद रहे सन 1905 में वायसराय लार्ड कर्जन की पत्नी ने इस इलाके का दौरा किया तो यहां संरक्षित वन का प्रस्ताव हुआ जो सन 1908 में स्वीकृत हुआ। सन 1916 में इसे शिकार के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया। 1950 में वन्य जीव अभ्यारण, 1968 में राष्ट्रीय उद्यान, 1974 में विश्व धरोहर घोषित किया गया। यहां की जैव विवधिता विलक्षण है। 41 फीसदी इलाके में ऊंची घांस है, जो हाथी, हिरण के लिए मुफीद आसरा है। 29 फीसदी पेड़, 11 प्रतिशत छोटी झाड़ियां हैं। आठ फीसदी इलाके में नदियां व अन्य जल-निधियां व चार प्रतिशत में दलदली जमीन। अर्थात हर तरह के जानवर के लिए उपयुक्त पर्यावास, भोजन और परिवेश। तभी ताजा गणना में यहां 2413 गैंडे, 1089 हाथी, 104 बाघ, 907 हॉग हिरण, 1937 जंगली भैंसे आदि जानवर पाए गए थे। पिछले कुछ सालों में यहां चौकसी भी तगड़ी हुई सो शिकारी अपेक्षाकृत कम सफल रहे।

हालांकि इस बार बरसात सामान्य ही है फिर भी विशाल नद् ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी बाढ़ प्रभावित इलाके में बसे कांजीरंगा के जानवरों के लिए काल बन कर आई है। वैसे यहां सन 2016 में कोई डेढ हैक्टर क्षेत्रफल वाले 140 ऐसे ऊंचे टीले बनाए गए थे जहां वे पानी भरने के हालात में सुरक्षित आसरा बना सके। ये टीले चार से पांच मीटर ऊंचाई के हैं। पार्क के भीतर स्थापित 183 सुरक्षित ठिकानों में से 70 जलमग्न हो चुके हैं। बाढ़ के कारण विभिन्न वनांचलों में स्थित 233 फॉरेस्ट कैंपों में से 56 कैंप अभी भी बाढ़ के पानी की चपेट में हैं। बोकाहाट व विश्वनाथ वन मंडल के आगरटोली, कोहोरा, बागोरी, बूरा पहाड क्षेत्र में कई-कई फुट गहरा पानी है। यहां सबसे बड़ी समस्या है कि पानी से बचने के लिए जानवर राष्ट्रीय राजमार्ग 37 पर आ जाते है। और वहां तेज रफ्तार वाहनों की चपेट में आ जाते हैं। हालांकि प्रशासन ने वाहनों की गति सीमा की चेतावनी जारी करता है लेकिन मूसलाधार बारिश में उनको नियंत्रित करना कठिन होता है।

वैसे इस संरक्षित पार्क में जानवरों के विचरण के आठ पारंपरिक मार्गों को संरक्षित रखा गया है, लेकिन बाढ़ के पानी ने सब कुछ अस्त-व्यस्त कर दिया है। इस संरक्षित वन के दूसरे छोर पर कार्बी आंगलांग का पठार है। सदियों से जानवर ब्रह्मपुत्र के कोप से बचने के लिए यहां शरण लेते रहे हैं और इस बार भी जिन्हें रास्ता मिला वे वहीं भाग रहे हैं। दुर्भाग्य है कि वहां उनका इंतजार दूसरे किस्म का काल करता है। इस पूरे इलाके में कई आतंकी गिरोह सक्रिय हैं और जिनका मूल धंधा जानवरों के अंगों की तस्करी करना है। इसमें शीर्ष पर गैंडे का सींग है। यह सींग यहां से दीमापुर, चुडाचंदपुर के रास्ते म्यांमार और वहां से वियतनाम व चीन तक पहुंचता है, जहां इसकी कीमत तीन करोड़ तक होती है।

असम में प्राकृतिक संसाधन, मानव संसाधन और बेहतरीन भौगोलिक परिस्थितियां होने के बावजूद यहां का समुचित विकास ना होने का कारण हर साल पांच महीने ब्रह्मपुत्र का रौद्र रूप होता है जो पलक झपकते ही सरकार व समाज की सालभर की मेहनत को चाट जाता है। जिन जानवरों को बड़े होने, सुरक्षित पर्यावास बनाने में सालों लगते हैं उनका संरक्षण थोड़ी सी बरसात में लाचार नजर आता है। वैसे तो यह नद सदियों से बह रहा है। बाढ़ से निर्मित क्षेत्र ने ही इसे काजीरंगा नेशनल पार्क के लायक मुफीद बनाया है। लेकिन बीते कुछ सालों से इसकी तबाही का विकराल रूप सामने आ रहा है। इसका बड़ा कारण प्राकृतिक जंगल में विकास और प्रबंधन के नाम पर इंसान के प्रयोग भी है।

बाढ़ का पानी काजीरंगा के जंगलों में ज्यादा दिन ठहरने का ही परिणाम है कि सन 1915 से अभी तक इस जंगल की कोई 150 वर्ग किलोमीटर जमीन कट कर नदी में उदरस्थ हो चुकी है। कभी काजीरंगा का गौरव कहे जाने वाले अरीमोरा फारेस्ट इंस्पेकशन बंगले को तो अभी छह साल पहले ही नदी अपने साथ बहा कर ले गई थी। जंगल की जमीन का सबसे तेज व खतरनाक कटाव आगरटोली रेंज में है। सरकार भले ही इस वन के परिक्षेत्र को बढ़ाने के लिए नए इलाके शामिल कर रही हो, लेकिन हकीकत यही है कि वहां की जमीन साल दर साल कम हो रही है। आज जरूरत है कि नदी तट के लगभग 20 किलोमीटर इलाके में पक्के मजबूज तटबंध या अन्य व्यवसथा लागू कर भूक्षरण को रोका जाए। कई बार जमीन ख्सिकने से भी जंगली जानवरों को असामयिक काल के गाल में समाना पड़ता है।

बरसात, बाढ़ तो प्राकृतिक आपदा है लेकिन इसमें फंस कर इतनी बड़ी संख्या में जानवरों का मारा जाना तंत्र की नाकामी है। इस जंगल की सुरक्षा करने वले लोगों के लिए कभी 11 स्पीड बोट भी खरीदी गई थीं, आज उनमें से एक भी उपलब्ध नहीं हैं। कांजीरंगा संरक्षित वन ब्रह्मपुत्र नदी के जिस इलाके में है, वहां बाढ़ आना रोका नहीं जा सकता। यह सरकार को देखना होगा कि पानी किस तरफ तेजी से बढ़ता है, उन्हें किस तरह सुरक्षित स्थान पर ले जाएं, उनके भोजन व स्वास्थ्य को कैसे सुरक्षित रखा जाए , इस पर एक दूरगामी योजना बनाना अनिवार्य है। क्योंकि जंगल में दूसरा खतरा पानी उतरने के बाद शुरू होता है जब दलदल बढ़ जाता है, सूखा पर्यावास बचता नहीं, पानी मरे जानवरों के सड़ने से दूषित हो जाता है।

janwani address 7

spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Saharanpur News: अज्ञात वाहन की टक्कर से बाइक सवार भाई-बहन की मौत

जनवाणी संवाददाता सहारनपुर: दवा लेकर लौट रहे बाइक सवार भाई-बहन...

Boondi Prasad Recipe: बूंदी से करें हनुमान जी को प्रसन्न, बड़े मंगल पर घर में ऐसे बनाएं भोग

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Bada Mangal 2025: ज्येष्ठ माह का बड़ा मंगल आज, जानें इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...
spot_imgspot_img