एक आदमी महात्मा कबीर के पास गया और उनसे पूछा, ‘संत जी, यह दुनिया बहुरंगी और मायावी है। इसमें रहकर जीवन कैसे जीऊं?’ कबीर ने तत्काल न तो कोई उत्तर दिया और न ही उत्तर देने से इनकार किया। कबीर के बारे में प्रसिद्ध था कि वे अपनी बात को अपने ढंग से समझाते थे। कबीर ने कहा, ‘तुम हमारे साथ आओ।’ वह आदमी कबीर के साथ चल पड़ा। काफी देर चलने के बाद दोनों एक गांव के निकट पहुंचे। गांव में कुएं पर पनिहारिनों का जमघट लगा हुआ था। जो पनिहारिनें पानी भर चुकी होतीं, वे अपना घड़ा सिर पर रखतीं और चल पड़तीं। पनिहारिनों के सिर पर दो घट होते।
सिर पर एक घड़ा और उस घड़े के ऊपर भी एक और घड़ा। कबीर ने एक पनिहारिन के सिर पर रखे घड़े की ओर संकेत करके उस आदमी से पूछा, ‘सिर पर यह क्या रखा है?’ साथ आए व्यक्ति ने कहा, ‘घड़ा है।’ कबीर ने फिर प्रश्न किया, ‘सिर पर घड़े रखे वह महिला साथ की महिला से बात करती जा रही है, फिर भी संतुलन नहीं बिगड़ रहा है।
इसकी वजह?’ व्यक्ति ने कहा, ‘बात करते हुए भी महिला का ध्यान घड़े पर है, तो वह गिरेगा कैसे?’ कबीर ने कहा, ‘यही है तुम्हारे प्रश्न का उत्तर। दुनिया में रहकर भी मन आत्मा में लगा रहे। जल में रहकर भी कमल की तरह जल से निर्लिप्त रहो। यही है असार संसार में जीने की कला।’ हम संसार में आए हैं, तो यहां के काम के भी करने पडेÞंगे, लेकिन उन कामों के बीच असली काम को नहीं भूलना चाहिए। असली काम है आत्मा को पवित्र रखना, घड़े को गिरने न देना।