Thursday, August 14, 2025
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चौगामा नहर की न हुई सफाई न ही छोड़ा जा रहा है पानी, खड़ा है घास

  • गर्मियों में फसलों को बचाने के लिए चौगामा नहर का किया गया था निर्माण
  • एक दर्जन से अधिक माइनर स्वीकृत आधे ही हो पाए हैं तैयार, ग्रामीण कर रहे उपले पाथने का कार्य

जनवाणी संवाददाता |

बडौत: चौगामा नहर परियोजना को करीब चालीस साल से अधिक हो गए हैं। चालीस साल में चालीस हैक्टेयर खेतों को नहीं सींच पाई। किसानों के बड़े आंदोलन के बाद तो नहर का काम शुरु किया गया था। कुछ हद तक बन गई तो दो दशक में दो बार ही इसमें पानी छोड़ा गया। अब किसानों को इस नहर के पानी की सिंचाई पर भरोसा नहीं रह गया है। गिरते जल स्तर से किसान फसलों को बचाने में जमा पूंजी खर्च कर रहे हैं।

यहां विदित है कि चौगामा नहर परियोजना छह दशक पहले मंजूर हुई थी। चौगामा क्षेत्र में जल स्तर भी अब दौ से तीन सौ फुट पहुंच रहा है। तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह ने इस नहर के लिए प्रयास किए थे। तब से इसके लिए प्रयास ही होते रहे। किसानों की जमीन तो इस परियोजना में चली गई, लेकिन पानी नहीं मिल पाया। इस नहर परियोजना से संबंधित माइनर दाहा, निरपुड़ा, टीकरी,दोघट, इदरीशपुर तो बनकर तैयार हैं, लेकिन कुरथल, मिलाना, गढ़ी कांगरान, टीकरी, गांगनौली अधुरे पड़े हुए हैं।

करीब दह हजार हैक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करने की इस नहर से योजना है, लेकिन किसानों के सूखते खेतों की प्रदेश सरकार को कोई चिंता नहीं है। करीब नौ साल पहले इस परियोजना के लिए प्रदेश सरकार कुछ धन स्वीकृत किया था। तब इसके माइनरों के लिए कारवाई हुई थी, लेकिन सरकार बदलने के बाद फिर यह योजना खटाई में पड़ गई। चार दशक में इस नहर में दो बार ही पानी छोड़ा गया।

देवबंद लिंक नहर से सीधे चौगामा नहर में पानी छोड़ा जाता है। देवबंद लिंक नहर की गहराई अधिक हो गई और चौगामा नहर परियोजना उससे कुछ उपर है। करीब दस किलोमीटर तक सिल्ट जमी हुई है। प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग को यह सिल्ट निकलवाने की फुर्सत नहीं हो पाई है।

चौगामा नहर परियोजना के लिए कुछ जमीन चकबंदी के दौरान छोड़ी गई थी तो कुछ के लिए अधिग्रहण की प्रक्रिया अपनाई गई। इसके बाद भी किसानों को सहूलियत नहीं दी गई। अब खाली पड़े माइनरों व नहर में ग्रामीण गोबर के उपले पाथने का काम कर रहे हैं। घासफूस खड़ा है अलग से।

चौगामा नहर परियोजना शुरु हो तो चौगामा में जल स्तर उठेगा

चौगामा नहर परियोजना में यदि स्थाई रूप से पानी छोड़ा जाए तो यहां का जल स्तर बढ़ सकता है। किसानों को फसल बचाने के लिए एक बीघा पर एक बार में ही पांच सौ रुपये से एक हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। किसान नेता नरेन्द्र राणा ने बताया कि चौगामा नहर में पानी छोड़े जाने को लेकर वह आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। किसानों को अपने दम पर फसल बचाने का अनुभव हो चुका है। चिंता इस बात की है कि लगातार जल स्तर गिर रहा है। यदि नहर में पानी छोड़ा जाए तो जल स्तर में सुधार होगा।

सूखे माइनरों के घासफूंस में जंगली जानवरों का निवास

क्षेत्र में जो माइनर बनकर तैयार हैं, उनमें पानी नहीं आने और उनकी सफाई नहीं होने से घास-फूंस खड़ा हो गया। जब से यह माइनर बने हैं, तब से उनकी सफाई नहीं हो पाई है। यहां अब जंगली जानवरों ने अपने घर बना लिए हैं। माइनरों की पटरी खोखली कर दी गई। कुछ दिन पहले बारिश के समय में पानी आया तो जगह-जगह माइनर की पटरी क्षतिग्रस्त हो गई।

सफाई के लिए हो गया धन स्वीकृत

चौगामा नहर परियोजना के एक्सइएन मनोज शाहू ने बताया कि माइनरों की सफाई के लिए धन स्वीकत हो गया है। कुछ माइनर अधुरे पड़े हैं। उन्हें पूरा करने की शीघ्र की योजना बनाई जाएगी। कुछ जगह जमीन को खाली कराया जाना है। उसके लिए भी योजना बनाई जा रही है। कुछ जगह जमीन अधिग्रहण करनी है। सभी को नोटिस जारी किए जा चुके हैं।

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