- शासन के आदेश के बाद सिर्फ एक दो दिन चलता है अभियान फिर अधिकारी हो जाते हैं शांत
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: भले ही शासन की तरफ से प्रदेश को पॉलीथिन मुक्त प्रदेश बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हो, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। पॉलीथिन प्रतिबंधित होने के बाद भी बाजारों में इसका संचालन जमकर किया जा रहा है। जैसे ही शासन की तरफ से पॉलीथिन बंदी का आदेश कड़ाई से पालन करने का निर्देश आता है तो अधिकारी एक दो दिन अभियान चलाकर छोटे दुकानदारों पर कार्रवाई करते हैं।
उसके पश्चात फिर पहले जैसी व्यवस्था रहती है। दरअसल, उत्तर प्रदेश मे छह जुलाई 2018 से प्लॉस्टिक से बनने वाली पॉलीथिन एवं अन्य सामान पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यहीं नहीं, इसके इस्तेमाल करने वालों पर शासन ने नियम अनुसार जुर्माना व सजा का प्रावधान भी किया था।
जिससे अधिक मात्रा में ये जुर्माना एक लाख रुपया और छह महीने जेल की सजा का प्रावधान भी है। बावजूद इसके शहरों में पॉलीथिन, प्लॉस्टिक व थर्मोकॉल का इस्तेमाल बाजारों और आम जनता बड़े पैमाने पर कर रही है। नगर निगम के अधिकारी आए दिन बयान बाजी करते नहीं थक रहे हैं कि शहर में अब पॉलीथिन का इस्तेमाल नहीं हो रहा है, लेकिन सच्चाई निजी स्तर पर एकदम उलट है। शहर में थोक एवं फुटकर विक्रेता खुलेआम पॉलीथिन सामान देने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
जानवरों के लिए हानिकारक पॉलीथिन
लोग घर का कचरा एवं खाने का व्यर्थ पदार्थ पॉलीथिन में रखकर बाहर फेंक देते है, जिसको जानवर भी अपनी खुराक बना लेते हैं और बीमार पड़ जाते हैं। जिससे कई बार जानवरों की मौत तक हो जाती हैं।
ये सामान है प्रतिबंधित
सरकार द्वारा आदेश पारित किया गया है कि 50 माइक्रोन से पतली पॉलीथिन प्रतिबंधित है। इसके साथ ही एक बार इस्तेमाल होने वाले थर्मोकॉल के कप, गिलास, प्लेट व चम्मचों की बिक्री व इस्तेमाल पर प्रतिबंध है। प्रदेश के सभी डीएम को निर्देश किया गया है कि टास्क फोर्स बनाकर इस पर कड़ाई से प्रतिबंध लगाया जाएं। जहां टास्क फोर्स नहीं है, वहां पर तत्काल इसे बनवाया जाए।
जिससे कि प्रतिबंध कारगर हो, लेकिन कुछ दिन आदेश का पालन किया जाता है और इसके बाद अधिकारी अपने कार्यालय में अंगड़ाई तोड़ते नही थक रहे हैं। शहर में पॉलीथिन का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर हो रहा है। जिस कारण वातावरण दूषित हो रहा है और शहरभर के नाले अटे हुए हैं।
हालांकि अधिकारियों के दावें है कि शहर में प्लॉस्टिक की फैक्ट्रियों को शासन के निर्देश के बाद अभियान चला कर बंद करा दिया गया है, लेकिन बावजूद इसके शहर के नाले और नालियां पॉलीथिन से भरे हुए हैं। सवाल ये है कि यदि फैक्ट्रियां बंद है तो ये पॉलीथिन आ कहा से रही है?
आशी जैन ने कहा कि ये बहुत आश्यर्च का विषय है कि 21वीं सदी में हम अब भी सरकार के प्रतिबंध लगाने के बाद भी प्लॉस्टिक व पॉलीथिन का उपयोग कर रहे हैं। अगर ये ऐसे ही चलता रहा तो हमारे पास भविष्य में साफ पानी, स्वच्छ हवा और रहने के लिए साफ वातावरण नहीं होगा और मनुष्यता लुप्त होने के कगार पर पहुंच जाएगी।
एनवायरमेंट क्लब के संस्थापक/अध्यक्ष सावन कन्नौजिया ने कहा कि बैन के बावजूद पॉलीथिन का प्रयोग अचंभित विषय है। केवल बैन लगाने से कुछ नहीं होगा, बैन का पालन कराने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। आज पर्यावरण की मांग है कि हम पॉलीथिन का प्रयोग करना छोड़े और कपड़े या जूट के थैले दैनिक गतिविधियों में लाएं।
पलक नामदेव ने कहा कि कुछ समय सख्ती होने के बाद फिर से उसी प्रकार पॉलीथिन का चलन है। किसी प्रकार की कोई रोक थाम शहर में नहीं है। किसी भी दुकान पर आसानी से पॉलीथिन मिल जाती है। पॉलीथिन का निर्माण चल रहा है तो पॉलीथीन बंद कैसे होगी, ये भी एक सवाल है? पॉलीथिन का निर्माण बंद होने से काफी हद तक राहत मिल सकती है।
मानव दीक्षित ने कहा कि बाजारों में पॉलीथिन आसानी से मिल जाती है। इस पर कोई रोकथाम नहीं है। कागजों में ही आदेश होते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर सच्चाई कुछ और है। अगर जल्द से जल्द इसका निवारण नहीं किया गया तो सभी के भविष्य के लिए पॉलीथिन एक बड़ा खतरा होगा। सरकार को इसके खिलाफ सख्त कदम उठाना चाहिए, तभी इसका इस्तेमाल रुक सकता है।