Saturday, June 22, 2024
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शेयर बाजार में हलचल के कारक

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rishab mishraबीता एक हफ्ता शेयर बाजार के लिए अभूतपूर्व रहा। इस दौरान इसने गिरने और उछलने के दोनों रिकॉर्ड तोड़ दिए। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं था जब बाजार ने इतना तीव्रता से परिवर्तन (‘शार्प रिएक्ट’) किया हो। दरअसल पिछले एक हफ्ते यानी कि एग्जिट पोल आने के बाद से ही शेयर बाजार में जबरदस्त उठापटक देखने को मिली है। एग्जिट पोल आने के अगले कारोबारी दिन (3 जून) को शेयर बाजार में उछाल देखा गया। लेकिन उसके अगले दिन यानी मतगणना के दिन बाजार में हाहाकार मच गया। उस दिन बेंचमार्क सेंसेक्स और निफ्टी 8 फीसदी से भी ज्यादा अंकों से नीचे लुढ़क गया । जिस वजह से बीएसई में लिस्टेड कंपनियों की मार्केट कैप में 31 लाख करोड़ रुपए की कमी देखी गई। हालांकि उसके अगले तीन दिनों में बाजार में शानदार रिकवरी देखी गई और 7 जून को तो बीएसई सेंसेक्स अपने सर्वोच्च स्तर पर (‘आल टाइम हाई’) यानी कि 76,693 अंक के आंकड़ों पर पहुंच गया। शेयर बाजार में इतनी तेजी से (शार्प) उठापटक को सामान्य तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। मगर यह कोई अनहोनी भी नहीं है, इस स्तर की या थोड़ी कम-ज्यादा उठा-पटक अथवा उतार-चढ़ाव पहले भी होता आया है। शेयर बाजार को प्रभावित करने वाले कारक अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन इसे ऊपर या नीचे करने वाले बड़े निवेशकों में से अहम हिस्सेदारी संस्थागत निवेशकों की होती है। ये निवेशक बड़े वित्तीय संस्थान पेंशन फंड, इंश्योरेंस कंपनियां, म्यूचुअल फंड, हेज फंड वगैरह होते हैं। ये देसी और विदेशी दोनों हो सकते हैं। इनके पास कंपनियों की माली स्थिति से लेकर देश के आर्थिक राजनीतिक परिदृश्य वगैरह को समझने और उसकी थाह लेने के लिए पर्याप्त संसाधन और सक्षम टीम होती है। इसलिए ये ऐसी स्थिति को भांपकर बाजार में अपनी चाल तय करते हैं, और उन्ही की चालों से बाजार की गति भी तय होती है। अब सवाल यह है कि वे कौन से प्रमुख कारक होते हैं, जिनसे शेयर बाजार अचानक इतना ‘रिएक्ट’ करता है और निवेशकों की कमाई को एक झटके में ऊपर या नीचे पहुंचा देता है।ये प्रमुख कारक हैं:

घरेलू सियासी हालात : किसी देश की अर्थव्यवस्था का सीधा संबंध वहां के सियासी हालात से होता है। अगर देश में सियासी स्थितियां स्थिर होती हैं, तो बाजार को मजबूती मिलती है। खासकर विदेशी निवेशक घरेलू शेयर बाजार में निवेश करने से पहले उस देश की राजनीतिक परिस्थितियों पर गौर करते हैं। सियासी हालात प्रतिकूल महसूस होने पर वे बजार से दूर भागने लगते हैं। उदाहरण के रूप में बीते हफ्ते यानी 3 जून को सेंसेक्स 2507 अंकों यानी 3.55 फीसदी की बढ़त पर बंद हुआ। वजह थी एग्जिट पोल में मोदी सरकार की हैट्रिक बनने की सम्भावना। यानी सियासी स्थिरता में और मजबूती। लेकिन जब अगले ही दिन यानी 4 जून को भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो राजनीतिक अस्थिरता की आशंका गहरा गई, और सेंसेक्स 4,389 अंक गिरकर बंद हुआ।

अंतरराष्ट्रीय आर्थिक घटनाएं : किसी भी देश की अर्थव्यवस्था बंद नही रह सकती। वैश्विक स्तर पर होने वाली आर्थिक गतिविधियों का असर भारतीय बाजारों पर भी पड़ता है। वर्ष 2008 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारी मंदी छाई रही। जिसके असर से भारत भी नहीं नहीं बच सका था। साल भर में बीएसई सेंसेक्स में कुल मिलाकर 63 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई थी। यह 2007 के 20,000 पॉइंट्स से गिरकर 7,700 तक पहुंच गया था। उदाहरण के तौर पर लगातार बढ़ रहे बीएसई सेंसेक्स ने 24 अगस्त 2015 को अचानक से 1,625 अंकों की डुबकी लगा ली। यह गिरावट आज के हिसाब से 3,000 अंकों से भी अधिक की होती। इसकी वजह थी चीनी मुद्रा ‘युआन’ का अवमूल्यन। इससे चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती की आशंका गहरा गई। जिसने भारतीय बाजार को भी अपनी चपेट में ले लिया।

अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति : वैश्विक स्तर पर होने वाली भू-राजनीतिक गतिविधियों का भी सीधा असर शेयर बाजार पर होता है। मौजूदा समय में मध्य पूर्व में चल रहे इजरायल हमास युद्ध और यूक्रेन रूस सैन्य संघर्ष इसी तरह के भू-राजनीतिक फैक्टर हैं। इस तरह के तनाव ग्लोबल अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त नेगेटिव प्रभाव डालते हैं। जिसके फलस्वरूप शेयर बाजारों पर दबाव बनता है। उदाहरण के रूप में 24 फरवरी 2022 को एक रात पहले रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की खबर आई और इसके अगली ही सुबह भारत के शेयर बाजार पर भी ‘नेगेटिव सेंटिमेंट्स’ का जबरदस्त हमला हो गया। एक दिन में ही बीएसई सेंसेक्स में 2,702 अंकों की गिरावट आ गई। यानी सेंसेक्स 4.72 फीसदी नीचे लुढ़क गया। इसके बाद जब भी रूस और यूक्रेन के बीच तनाव की खबरें आईं, बाजार ने रिएक्ट किया।

कोरोना जैसी महामारी : घरेलू सियासी और अंतरराष्ट्रीय जियो पॉलिटिक्स व आर्थिक स्थितियों के अलावा ऐसी वजह पर भी शेयर बाजार ‘शार्प रिएक्ट’ करता है, जो सदियों में कभी-कभार पैदा होती है। और जिसका भविष्य पर भारी असर पड़ना संभावित रहता है। ऐसी ही एक वजह थी कोरोना। इसने दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाओं को अस्त-व्यस्त कर दिया। और इसका भारत की अर्थव्यवस्था और यहां के शेयर बाजार पर असर पड़ना भी लाजमी था। उदाहरण के तौर पर सेंसेक्स में सबसे बड़ी गिरावट 23 मार्च 2020 को आई। एक दिन पहले 22 मार्च रविवार को देश में लॉकडाउन का ट्रायल किया गया था। इसी से यह संभावना लगने लगी थी कि देश में लंबा लॉकडाउन लग सकता है और फिर लगा भी। इसीलिए जब अगले दिन बाजार खुले तो यह 3,934 अंक तक गिर गया। यह 13.15 फीसदी की बड़ी गिरावट थी।
वस्तुत: आज भी ज्यादातर निवेशक तब निवेश करते हैं जब बाजार में तेजी होती है। तेजी में निवेश करना आम निवेशकों के लिए आमतौर पर फायदेमंद नहीं होता है। यदि उस समय निवेश करना भी है तो ऐसे शेयरों से बचना चाहिए जो अपने उच्चतम स्तर के आस-पास हों। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि छोटी कंपनियों के शेयरों की तुलना में ब्लूचिप या दिग्गज कंपनियों के शेयरों में ज्यादा निवेश किया जाए।


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