- सात बार मुस्लिम तो छह बार जाट प्रत्याशी कैराना सीट से बने सांसद
- पहली बार पूर्व राज्यपाल वीरेंद्र वर्मा ने लहराया था भाजपा का भगवा
- दो बार हिंदू गुर्जर और एक बार ठाकुर प्रत्याशी ने फहराया परचम
राजपाल पारवा |
शामली: कैराना लोकसभा सीट पर आधा दशक से ज्यादा समय तक जाट और मुस्लिमों का एक छत्र राज रहा है। इसलिए इस सीट से जहां सात बार मुस्लिम सांसद निर्वाचित हुए तो वहीं छह बार जाट प्रत्याशियों ने जीत का परचम फहराया। लेकिन छह दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी मस्जिद ढांचे के विध्वंस के साथ चली भगवा की आंधी के बाद जाट-मुस्लिम राजनीति हिचकोले खाने लगी। वर्ष 2018 के उप चुनाव को छोड़ दिया जाए तो ‘मोदी काल’ से तो कैराना लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा चल रहा है।
कैराना लोकसभा सीट शामली और सहारनपुर जनपदों के बीच बंटी है। 1962 में अस्तित्व में आयी इस सीट पर सिर्फ एक बार ठाकुर बिरादरी से यशपाल सिंह पनियाला विजयी हुए, वह भी 1962 में ही। फिर, कैराना लोकसभा सीट पर मुस्लिम और जाट बिरादरी का एक तरह से कब्जा हो गया। यही कारण रहा की 1967 से 1977 तक मुस्लिम प्रत्याशी का कैराना सीट पर कब्जा रहा। तो, सात साल जाट प्रत्याशी ने यहां परचम फहराया। ये वह दौर था, जब पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व. चौधरी चरण सिंह की धर्मपत्नी गायत्री देवी ने 1980 में दो लाख से अधिक मतों से जीत हासिल की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 की सहानुभूति लहर में मुस्लिम गुर्जर 84 खाप के चौधरी हसन सांसद बने तो 1989 व 1991 में देशभर में मंडल की लहर में हरपाल पंवार निर्वाचित होकर संसद में पहुंचें। पंवार की दूसरी जीत ने साबित किया कि अब मंडल लहर ढलान की ओर बढ़ चली है। क्योंकि 1991 में हरपाल पंवार को 1989 के मुकाबले एक लाख वोट कम मिले।
छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में कार सेवकों ने विवादित बाबरी मस्जिद के ढांचे का विध्वंस किया तो भगवा लहर ऊफान पर मारने लगी थी। बावजूद इसके 1996 में सपा के मुनव्वर हसन ने कैराना लोकसभा सीट पर जीत हासिल कर अपना राजनीतिक कौशल दिखाया। हालांकि दो साल बाद 1998 में जब चुनाव हुए तो भाजपा के वीरेंद्र सिंह ने उनसे यह सीट छीन ली। 1999 में अमीर आलम सांसद बने तो 2004 में अनुराधा चौधरी ने रालोद के टिकट पर चार लाख से अधिक मतों से अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की। उनका यह रिकार्ड आज तक कोई नहीं तोड़ पाया। फिर, बसपा ने 2009 में पहली बार कैराना सीट पर तबस्सुम हसन के रूप में जीत का परचम फहराया। तबस्सुम 2018 के उप चुनाव में इस सीट पर दूसरी बार जीत हासिल करने वाली दूसरी महिला बनीं तो, 2014 से प्रारंभ हुई ‘मोदी काल’ की आंधी में 2014 में बाबू हुकुम सिंह तथा 2019 में प्रदीप चौधरी सांसद बने।
पहली बार यशपाल सिंह ने फहराया परचम
कैराना लोकसभा सीट पहली बार 1962 में अस्तित्व में आयी। तब उत्तराखंड की रूड़की कैराना लोकसभा क्षेत्र में थी। रूड़की क्षेत्र के गांव पनियाला निवासी ठा. यशपाल सिंह ने पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत का परचम फहराया था। फिर, कभी कोई निर्दलीय प्रत्याशी कैराना लोकसभा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल नहीं कर पाया। न ही ठाकुर बिरादरी से कैराना सीट पर कोई दोबारा जीत पाया।