- बढ़ती जमीनी भूख से विलुप्त हो रही बूढ़ी गंगा
- दशकों पहले विदेशी पक्षियों का बसरे था बूढ़ी गंगा
- बूढ़ी गंगा की धारा रोकने को खड़ी कर दी मिट्टी की दीवार
जनवाणी संवाददाता |
हस्तिनापुर: इंसान की बढ़ती जमीनी भूख ने पवित पावनी गंगा भी इससे अछूती नहीं रही है। महाभारतकालीन तीर्थ नगरी के समीप से बहने वाली बूढ़ी गंगा तकरीबन मृतप्राय: अवस्था में है। भूमाफियाओं के चंगुल में फंसी जलधारा लगभग दम तोड़ चुकी है। भूमाफियाआें के इस खेल में प्रशासन धृतराष्ट्र की भूमिका अदा कर रहा है। धरोहरों को सहजने का जिम्मा उठाने वाले विभाग भी हवा में हाथ-पैर मार रहा है।
महाभारतकालीन तीर्थ नगरी से होकर गुजरने वाली प्राचीन गंगा हजारों सालों पूर्व हस्तिनापुर से होकर गुजरने के हजारों प्रमाण है। हाल ही में पांडव टीले पर पुरातत्व विभाग द्वारा किये गये उत्खनन कार्य में हस्तिनापुर में लगातार बाढ़ आने के प्रमाण मिले हैं, लेकिन वही गंगा की धारा आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ रही है।
गंगा की धारा की जमीन के अधिकांश हिस्से पर भूमाफियाओं का बोलबाला हैै। लोगों ने दर्जनों शिकायत की, लेकिन शिकायतें सिर्फ फाइलों में ही दबकर रद्दी कागज में तब्दील हो गई। बहरहाल, प्रशासनिक उदासीनता का नतीजा है कि पौराणिक धरोहर दम तोड़ती नजर आ रही है।
इतिहासकारों व हस्तिनापुर की जनता की कथनी
प्रियंक भारती की माने तो बूढ़ी गंगा की जमीन उत्तर प्रदेश जमींदारी अबोलिशन एवं लैंड रिफॉर्म्स एक्ट के अनुसार धारा 132 की जमीन थी तो फिर आरक्षित जमीन पर कैसे आवंटन कर दिया गया। बूढ़ी गंगा पर जगह-जगह निर्माण कर दिए गए। जबकि यह पूर्णरूप से अवैध है। इस आवंटन से लेकर निर्माण तक पूरा प्रशासन कटघरे में है।
श्री दिगंबर जैन प्राचीन बड़ा मंदिर के प्रबंधक मुकेश जैन की माने तो 70 के दशक से पहले गंगा की बढ़ी धारा हस्तिनापुर से होकर गुजरती थी, लेकिन समय परिवर्तन और प्रशासन की अनदेखी के चलते गंगा की धारा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।
आठ किमी चौड़ी होती थी गंगा की धारा
इतिहासकारों की माने तो लगभग एक शताब्दी के आसपास हस्तिनापुर के समीप से होकर गुजरने वाली प्राचीन गंगा की चौड़ाई मुजफ्फरनगर से गढ़मुक्तेश्वर तक लगभग आठ किमी हुआ करती थी, लेकिन भूमाफियाओं की बढ़ती भूख के चलते आज गंगा की चौड़ाई कहीं नजर नहीं आती है। जिसकी ओर प्रशासन का भी कोई ध्यान नहीं है।
गंगा की तलहटी पर वर्तमान में ऊंचे-ऊंचे भवन नजर आते हैं। गंगा के वन आरक्षित क्षेत्र से होकर गुजरने के चलते कोई भी निर्माण कार्य परमिशन के बिना नहीं किया जा सकता, लेकिन गंगा की तलहटी में खड़ी बहुमंजिला इमारत प्रशासन की कार्रवाई पर कई सवाल खड़े कर रहे हैं।
उत्खनन में मिले थे प्रमाण
लगभग दो वर्ष पूर्व पुरातत्व विभाग की टीम ने डीबी गणनायक के नेतृत्व में प्राचीन गंगा के समीप स्थित पंडाव टीले पर उत्खनन का कार्य शुरू किया। उत्खनन के दौरान ऐतिहासिक काल, मध्यकाल, राजपूतकाल, गुप्तकाल आदि के अवशेष मिले थे। उत्खनन के दौरान कई ऐसे अवशेष मिले। जिसमें गंगा में आई बाढ़ से हस्तिनापुर कई बार उखड़ा है। इसके बाद भी विलुप्त होने प्राचीन गंगा की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।