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हिंदू धार्मिक मान्यताओं में पूजा और व्रत आदि का विशेष महत्व है। जिसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति, मानव कल्याण तथा स्वस्थ जीवन है। ऐसा ही अनुष्ठान है नवरात्री के नौ दिन। वर्ष में चार नवरात्रियां आती हैं, जिनमे से दो नवरात्री अश्विन मास और चैत्र मास की नवरात्री सबसे प्रमुख होती हैं। इन नवरात्रियों को प्रकट नवरात्री कहते हैं। अधिकांश लोग इन्ही नवरात्रियों के बारे में जानते हैं। परंतु माघ मास और आषाढ़ मास में आने वाली नवरात्रियों के विषय में कम लोग को जानकारी हैं। चूंकि ये नवरात्रि प्रकट रूप में नहीं होती, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।
चारों नवरात्रि के उपवास ऐसे महीनों में आते हैं, जब मौसम में परिवर्तन हो रहा होता है। मौसम परिवर्तन के समय हमें अपने खाने पीने पर विशेष ध्यान देना होता है। क्योंकि मौसम परिवर्तन के समय रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवों की संख्या में वृद्धि तेजी से होती है, जिसके कारण कोई भी खाद्य पदार्थ लंबे समय तक ठीक नहीं रह पाता और खराब हो जाता है , जिसका सेवन हमें व परिवार के अन्य सदस्यों को बीमार बना सकते है। इसी लिए हमारे ऋषि मुनियों ने उपवास करने पर बल दिया। उपवासों को धार्मिक अनुष्ठानों के साथ जोड़ने का उद्देश्य जन सामान्य को बदले मौसम में स्वस्थ रखने में निहित है।
आषाढ़ माह के गुप्त नवरात्रि व्रत ऐसे समय पर आते हैं, जब वर्षा ऋतु का आरंभ हो रहा होता है। इसी समय से चातुर्मास का आरंभ हो रहा होता है, जिसमे कई लोग चार माह तक उपवास रखते हैं। जिसका उद्देश्य भी व्यक्ति को स्वस्थ्य रखना है क्योंकि वर्षा ऋतु में भोजन और जल जनित रोगों की संभावना बनी ही रहती है। माना जाता है कि जो भी गुप्त नवरात्रियों को पूर्ण निष्ठा तथा कड़े नियमों का पालन करके करता है, उसे जीवन के सारे सुख मिलते हैं और हर कामना की पूर्ति होती है। इस नवरात्रि में खान पान, रहन-सहन तथा आचरण का विशेष ध्यान देना पड़ता है। मनवांछित फल प्राप्ति के लिए दस महाविद्या अर्थात-मां काली, देवी तारा, त्रिपुरा सुंदरी, माता भैरवी, मां ध्रुमावती, माता बगलामुखी, मां मातंगी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता और कमला देवी की उपासना की जाती है।
गुप्त नवरात्रि के व्रत की विधि
गुप्त नवरात्रि के व्रत अन्य नवरात्रि के व्रतों की भांति ही रखे जाते हैं। कलश स्थापना, नौ शक्ति रूपों की आराधना, यज्ञ तथा पूजा प्रकट नवरात्रि की ही भांति होता है। कुछ साधक मनवांछित फल प्राप्ति के लिए ये व्रत अत्यंत कठोर नियमों और प्रण के साथ करते हैं। इस व्रत में कई लोग मौन व्रत धारण कर लेते हैं। इस व्रत के दौरान साधक भूमि पर ही शयन करते है, वे बिस्तर का त्याग कर देते है। इन पूरे नौ दिनों में अन्न तथा नमक भी नहीं खाया जाता। साधक को यह व्रत फलाहार के साथ ही करते हैं।
गुप्त नवरात्र पौराणिक कथा
गुप्त नवरात्र के महत्व को बताने वाली एक कथा भी पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। कथा के अनुसार एक समय की बात है कि ऋषि श्रंगी एक बार अपने भक्तों को प्रवचन दे रहे थे कि भीड़ में से एक स्त्री हाथ जोड़कर ऋषि से बोली कि गुरुवर मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे हैं, जिसके कारण मैं किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य व्रत उपवास अनुष्ठान आदि नहीं कर पाती। मैं मां दुर्गा की शरण लेना चाहती हूं, लेकिन मेरे पति के कुकर्मों से मां की कृपा नहीं हो पा रही है।
मेरा मार्गदर्शन कीजिए। तब ऋषि श्रंगी ने गुप्त नवरात्रि के बारे में बताते हुए कहा, ‘वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र भी आते हैं इनमें 9 देवियों की बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। यदि तुम विधिवत ऐसा कर सको तो मां दुर्गा की कृपा से तुम्हारा जीवन खुशियों से परिपूर्ण होगा।’ ऋषि के प्रवचनों को सुनकर स्त्री ने गुप्त नवरात्र में ऋषि के बताये अनुसार मां दुर्गा की कठोर साधना की। स्त्री की श्रद्धा व भक्ति से मां प्रसन्न हुई और इसका पति , सदमार्ग की ओर अग्रसर हुआ। उसका घर खुशियों से संपन्न हुआ।
गुप्त नवरात्रों का आरंभ और समापन
ज्योतिष शास्त्रियों तथा पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के गुप्त नवरात्रों का आरंभ इस साल 19 जून से होगा। गुप्त नवरात्रि की पूजा के लिए कलश की स्थापना का शुभ मुहूर्त 19 जून 2023 सोमवार को प्रात: काल 05 बजकर 23 मिनट से 07 बजकर 27 मिनट तक है। इसके अलावा इस दिन अभिजित मुहूर्त की जानकारी ज्योतिष शाास्त्रियों से प्राप्त की जा सकती है। गुप्त नवरात्रों का समापन 28 जून , 2023 को होगा।
राजेंद्र कुमार शर्मा
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