होलाष्टक शब्द दो शब्दों होली और अष्टक से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है होली के आठ दिन जो होली से 8 दिन पहले शुरू हो जाते हैं। होलाष्टक के दौरान कई शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है क्योंकि शुभ कार्यों का अच्छा फल नहीं मिल पाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन आठ दिनों में 16 हिंदू संस्कार या अनुष्ठान के साथ ही अन्य कोई भी मांगलिक कार्यक्रम जैसे शादी, विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश आदि वर्जित माने गए हैं। लोग होलाष्टक काल के दौरान कोई नया व्यवसाय या उद्यम भी नहीं शुरू करते।
होलाष्टक में शुभ कार्य न करने का पौराणिक कारण
माना जाता है कि होलिका दहन से पूर्व के सात दिनों के दौरान हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु की भक्ति करने के अपराध में अपने पांच वर्ष के छोटे से पुत्र प्रह्लाद को मारने की कई बार असफल चेष्ठा की उसने प्रह्लाद को पागल हाथियों के सामने फिंकवा दिया, सांपों से भरे कुएं में फिंकवा दिया, ऊपर पर्वत की चोटी से नीचे खाई में फेंक दिया, बेड़ियाँ बांधकर समुंद्र में फिंकवाया, अस्त्र-शस्त्र से मरवाने की कोशिश की पर सब व्यर्थ गया और भगवान विष्णु ने हर बार अपने भक्त प्रह्लाद को बचा लिया । आखरी दिन हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने का काम सौंपा। होलिका को जन्म से वरदान प्राप्त था कि उसे आग जला नही सकती। भाई के आदेश पर होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद मे लेकर आग पर बैठ गई। पर प्रह्लाद की अटूट भक्ति के कारण भगवान विष्णु ने उसे सुरक्षित रखा जबकि होलिका आग में जलकर मर गई। अत: हिरण्यकश्यप के आतंक के इन सात दिनों में किए गए शुभ कार्य, शुभ फलदायी नहीं होते।
होलाष्टक में शुभ कार्य न करने का ज्योतिषीय कारण
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अक्सर इस समय सूर्य, चंद्रमा, बुध, बृहस्पति, मंगल, शनि, राहु और शुक्र जैसे ग्रह परिवर्तन से गुजरते हैं और परिणामों की अनिश्चितता बनी रहती है। अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल, तथा पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव के हो जाते हैं। इन ग्रहों के निर्बल होने से मानव मस्तिष्क की निर्णय क्षमता क्षीण हो जाती है और इस दौरान गलत फैसले लिए जाने के कारण हानि होने की संभावना रहती है।
होलाष्टक में शुभ कार्य न करने के मनोवैज्ञानिक कारण :
विज्ञान के अनुसार भी पूर्णिमा के दिन ज्वारभाटा, सुनामी जैसी आपदाओं की संभावना अधिक रहती है। देखा गया है कि इस दौरान मनोरोगी व्यक्ति को मानसिक स्थिति और दिनों की अपेक्षा अधिक उग्र हो जाती है। ऐसे में सही निर्णय नहीं हो पाता। मानव मस्तिष्क पूर्णिमा से 8 दिन पहले कहीं न कहीं क्षीण, दुखद, अवसाद पूर्ण, आशंकित तथा निर्बल हो जाता है। जिसके कारण इन आठ दिनों के दौरान किए गए कार्यों में सफलता की संभनाएं भी बहुत क्षीण हो जाती है।
कब से कब तक रहेंगे शुभ कार्य वर्जित :
पंचांग के अनुसार होलाष्टक की शुरूआत उदयातिथि में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी 17 मार्च 9.53 बजे को होगी और इसी दिन से होलाष्टक की शुरूआत मानी जाएगी। जबकि आठवें दिन 24 मार्च को होलिका दहन होगा और यह दिन होलाष्टक का आखिरी दिन होगा। 25 मार्च को होली (धुलेंडी) से शुभ कार्यों से रोक हट जाएगी।
होलाष्टक पर होली का डांडा गाड़ने का रिवाज
उत्तर भारत के कुछ राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश में होलाष्टक की परंपरा के अनुसार इस दिन यानी फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन होलिका दहन के लिए स्थान का चयन किया जाता है। वहां सुखी लकड़ी का एक डांडा गाड़ दिया जाता है ,इसके बाद हर रोज होलिका दहन के स्थान पर छोटी-छोटी लकड़ियां एकत्र कर रखी जाती हैं। जिसे होलिका दहन वाले दिन जलाया जाता है। जिसमे गेहूं की बालियां , हरे चने आदि को डाला जाता है।
होलाष्टक पर क्या करें :
होलाष्टक तपस्या के दिन होते हैं। ये आठ दिन दान पुण्य के लिए विशेष होते हैं। इसलिए इस दौरान व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार कपड़े, अनाज, धन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करना चाहिए। इससे विशेष पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इस समय आध्यात्मिक कार्यों और भक्ति में ध्यान लगाना चाहिए । सदाचार, संयम, ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना चाहिए।
-राजेंद्र कुमार शर्मा