एक बार नारद जी ने भगवान से प्रश्न किया कि प्रभु आपके भक्त गरीब क्यों होते हैं ? भगवान बोले, नारद जी! मेरी कृपा को समझना है तो मेरे साथ चलिए। इतना कहकर भगवान नारद के साथ साधु भेष में पृथ्वी पर पधारे और एक सेठ जी के घर भिक्षा मांगने के लिए दरवाजा खटखटाने लगे। सेठ जी बिगड़ते हुए दरवाजे की तरफ आए और बोले, तुम दोनों को शर्म नहीं आती भीख मांगते हुए? नारद जी बोले, देखा प्रभु! यह आपके भक्तों और आपका निरादर करने वाला सुखी प्राणी है। इसको अभी शाप दीजिए। भगवान ने उस सेठ को अधिक धन संपत्ति बढ़ाने वाला वरदान दे दिया। नारद जी को लेकर एक बेहद गरीब बुढ़िया के घर गए। बुढ़िया ने दोनों के लिए दूध लेकर आई और बोली, प्रभु! मेरे पास और कुछ नहीं है, इसे ही स्वीकार कीजिए। तब नारद ने भगवान से कहा, प्रभु! यह बेचारी बुढ़िया आपका भजन करती है और अतिथि सत्कार भी करती है। आप इसको कोई अच्छा सा आशीर्वाद दीजिए। भगवान ने उसकी गाय को मरने का अभिशाप दे डाला। नारद बिगड़ गए और कहा, प्रभु जी! यह आपने क्या किया? भगवान बोले, यह बुढ़िया मेरा बहुत भजन करती है। कुछ दिनों में इसकी मृत्यु हो जाएगी और मरते समय इसको गाय की चिंता सताएगी कि मेरे मरने के बाद इसको कौन देखेगा? तब इस मैया को मरते समय मेरा स्मरण न होकर बस गाय की चिंता रहेगी और वह मेरे धाम को न जाकर गाय की योनि में चली जाएगी। उधर सेठ को धन बढ़ाने वाला वरदान दिया कि मरने वक़्त धन तथा तिजोरी का ध्यान करेगा और वह तिजोरी के नीचे सांप बनेगा। प्रकृति का नियम है जिस चीज मे अति लगाव रहेगा यह जीव मरने के बाद वही जन्म लेता है ओर बहुत दुख भोगता है, दौलत से सिर्फ सुविधाएं मिलती हैं, सुख नहीं। सुख तो भगवत भजन से ही मिलता है। -प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा