Friday, March 29, 2024
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अमृतवाणी: सांसारिक बर्ताव

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लाओ-त्जु ने एक बार मछली पकड़ना सीखने का निश्चय किया। उसने मछली पकड़ने की एक छड़ी बनाई, उसमें डोरी और हुक लगाया। फिर वह उसमें चारा बांधकर नदी किनारे मछली पकड़ने के लिए बैठ गया। कुछ समय बाद एक बड़ी मछली हुक में फंस गई। लाओ-त्जु इतने उत्साह में था कि उसने छड़ी को पूरी ताकत लगाकर खींचा। मछली ने भी भागने के लिए पूरी ताकत लगाई। फलत: छड़ी टूट गई और मछली भाग गई। लाओ-त्जु ने दूसरी छड़ी बनाई और दोबारा मछली पकड़ने के लिए नदी किनारे गया। कुछ समय बाद एक दूसरी बड़ी मछली हुक में फंस गई। लाओ-त्जु ने इस बार इतनी धीरे-धीरे छड़ी खींची कि वह मछली लाओ-त्जु के हाथ से छड़ी छुड़ाकर भाग गई। लाओ-त्जु ने तीसरी बार छड़ी बनाई और नदी किनारे आ गया। तीसरी मछली ने चारे में मुंह मारा। इस बार लाओ-त्जु ने उतनी ही ताकत से छड़ी को ऊपर खींचा, जितनी ताकत से मछली छड़ी को नीचे खींच रही थी। इस बार न छड़ी टूटी न मछली हाथ से गई। मछली जब छड़ी को खींचते-खींचते थक गई, तब लाओ-त्जु ने आसानी से उसे पानी के बाहर खींच लिया। उस दिन शाम को लाओ-त्जु ने अपने शिष्यों से कहा, आज मैंने संसार के साथ व्यवहार करने के सिद्धांत का पता लगा लिया है। यह समान बल प्रयोग करने का सिद्धांत है। जब यह संसार तुम्हें किसी ओर खींच रहा हो, तब तुम समान बल प्रयोग करते हुए दूसरी ओर जाओ। यदि तुम प्रचंड बल का प्रयोग करोगे तो तुम नष्ट हो जाओगे, और यदि तुम क्षीण बल का प्रयोग करोगे तो यह संसार तुमको नष्ट कर देगा।
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