एक दिन महिला संत राबिया बसरी अपनी कुटिया के बाहर गली में कुछ ढूंढ रही थीं। उनको ऐसा करते देख बहुत सारे लोग उनकी मदद को एकत्रित हो गए। लोगों ने राबिया से प्रश्न किया, क्या ढूंढ रही हो? राबिया बोली, मेरी सुई खो गई है, वही ढूंढ रही हूं। यह सुन कर लोग भी सुई खोजने में जुट गए। तभी भीड़ में से किसी को ख्याल आया की राबिया से पूछ तो लें की उसकी सुई खोई कहां थी? एक व्यक्ति ने राबिया से पूछा, यह गली बड़ी है साथ ही अंधेरा भी होने वाला है। ऐसे में इतनी छोटी सी सुई को खोजना सरल नहीं होगा। अगर तुम बता सको की सुई कहां गिरी है तो उसको खोजना आसान हो जाएगा। राबिया ने उत्तर दिया, सुई तो मेरी कुटिया के अंदर ही गिरी थी। यह सुनकर गांव वाले बोले, राबिया बहन…जब तुम्हारी सुई, तुम्हारी कुटिया के अंदर गिरी है तो तुम उसे बाहर क्यों खोज रही हो?
राबिया बोली, भाई….कुटिया में अंधेरा बहुत है और यहां पूरी रोशनी है। इसलिए यहीं ढूंढ रही हूं। यह सुनकर एक गांव वाले ने कहा, बेशक यहां रोशनी है, लेकिन जब सुई यहां खोई ही नहीं तो हमें यहां कैसे मिल सकती है? अच्छा तरीका यही है कि जहां सुई गिरी है, वहीं पर प्रकाश करके उसको खोजा जाए तो वह मिले। यह सुनकर राबिया हंस पड़ीं। राबिया ने कहा, तुम छोटी-छोटी चीजों में कितनी चतुरता दिखाते हो, अपने जीवन में यह होशियारी कब काम में लाओगे? मैंने तुम सबको ,उसे बाहर ही खोजते देखा है और मैं यह भी जानती हूं कि जिसे तुम खोज रहे हो, वो तुम्हारे भीतर ही खोया है, कहीं बाहर नहीं। तुम उस परम पिता परमेश्वर को और उसके आनंद को बाहर क्यों खोज रहे हो? क्या तुमने उसे बाहर खोया है? -प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा