Saturday, July 5, 2025
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अक्टूबर माह में इस तिथि से शुरू होंगे शारदीय नवरात्रि, जानें कलश स्थापना शुभ मुहूर्त और तिथि

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। प्रति वर्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की इक्कम तिथि से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है। इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्तूबर 2023, रविवार से हो रही है। मां दुर्गा को समर्पित यह पर्व 15 अक्तूबर से शुरू होकर 23 अक्तूबर 2023, मंगलवार तक चलेगा। बता दें कि साल में कुल चार नवरात्र होते है।

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इसमे चैत्र और शारदीय नवरात्र के साथ दो गुप्त भी होते हैं।नवरात्रि में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता यह है कि जो व्यक्ति मां दुर्गा की पूजा आराधना सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से करता है उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

कलश स्थापना शुभ मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि के दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को 11 बजकर 44 मिनट से दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक है। कलश स्थापना के लिए इस साल केवल 46 मिनट का समय रहेगा। इस मुहुर्त में आप कलश स्थापना कर सकते हैं।

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शारदीय नवरात्रि तिथियां

नवरात्रि का पहला दिनमां शैलपुत्री की पूजा15 अक्टूबर 2023
नवरात्रि का दूसरा दिनमां ब्रह्मचारिणी की पूजा16 अक्टूबर 2023
नवरात्रि का तीसरा दिनमां चंद्रघंटा की पूजा17 अक्टूबर 2023
नवरात्रि का चौथा दिनमां कूष्मांडा की पूजा18 अक्टूबर 2023
नवरात्रि का पांचवां दिनमां स्कंदमाता की पूजा19 अक्टूबर 2023
नवरात्रि का छठा दिनमां कात्यायनी की पूजा20 अक्टूबर 2023
नवरात्रि का सातवां दिनमां कालरात्रि की पूजा21 अक्टूबर 2023
नवरात्रि का आठवां दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा22 अक्टूबर 2023
नवरात्रि का नौवां दिनमां महागौरी की पूजा23 अक्टूबर 2023
विजयदशमी या दशहरा पर्व24 अक्टूबर 2023

 

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शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना विधि

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहनें। फिर मंदिर की साफ-सफाई करके गंगाजल छिड़कें। इसके बाद लाल कपड़ा बिछाकर उस पर थोड़े चावल रखें। मिट्टी के एक पात्र में जौ बो दें। साथ ही इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश में चारों ओर आम या अशोक के पत्ते लगाएं और स्वास्तिक बनाएं। फिर इसमें साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालें। एक नारियल पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें और इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए मां जगदंबे का आहवाहन करें। फिर दीप जलाकर कलश की पूजा करें।

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