Wednesday, July 3, 2024
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सपा के परंपरागत यादव व मुसलमान वोटर भी कर रहे हैं किनारा

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अशोक भाटिया |

देश में अगले साल होने वाले चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव को लगातार झटके मिल रहे है।भाजपा एक-एक कर उन चेहरों को अपने पास लाने में कामयाब हो रही है जिनके बूते अखिलेश ने पूर्वांचल में भाजपा को नाको चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया था। राजभर के भाजपा के साथ डील के बाद दारा सिंह चौहान का साथ छोड़ना अखिलेश के लिए जले पर नमक छिड़कने से कम नहीं है। आने वाले समय में भाजपा अभी अखिलेश के खेमे में और सेंध लगाने की कवायद में जुटी है।

दारा सिंह चौहान पूर्वांचल में पिछ़डे नेताओं में एक बड़ा नाम है। वह बसपा से राज्यसभा सांसद रहने के साथ ही भाजपा की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। मऊ समेत आसपास के कई जिलों में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। वह भाजपा के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। खास तौर पर ऐसे समय में जब घोसी में भाजपा के पास लोकसभा का चुनाव लड़ने वाला कोई कद्दावर उम्मीदवार ही नहीं है।
दारा सिंह चौहान के दोबारा भाजपा में शामिल होने के बाद मऊ और घोसी की राजनीति में भी स्थानीय स्तर पर काफी परिवर्तन देखने को मिलेगा। जो नेता घोसी से लोकसभा टिकट की दावेदारी में लगे थे अब उनको निराशा ही मिलेगी।

हालांकि भाजपा के नेताओं का दावा है कि दारा सिंह चौहान को लोकसभा टिकट कहां से दिया जाएगा, ये अभी तय नहीं है। अटकलें ये भी हैं कि दारा सिंह चौहान को भाजपा मंत्री भी बना सकती है। मंत्री बनाने के बाद उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया जा सकता है। ऐसे में भाजपा के लिए वह दोहरा लाभ दे सकते हैं। मंत्री बनने के बाद वह लाव लश्कर के साथ मोदी सरकार का प्रचार प्रसार करेंगे औरभाजपा इसका लाभ उठाएगी।

विधानसभा चुनाव के बाद बदल रहा पूर्वांचल का समीकरण दारा सिंह चौहान से पहले पूर्वांचल के बड़े नेता ओम प्रकाश राजभर ने भी अखिलेश का साथ छोड़ दिया था। राजभर ने विधानसभा चुनाव के बाद ही अखिलेश पर एसी कमरों में बैठकर राजनीति करने का आरोप लगाकर अलग हो गए थे। सूत्र बता रहे हैं कि वह भी भाजपा के साथ बड़ी डील तैयारी करने में जुटे हुए हैं। उनकी नजर गाजीपुर लोकसभा सीट पर टिकी हुई है।

गौरतलब है कि एक तरफ अखिलेश अपना प्रदेश छोड़ कर देश भर भाजपा के खिलाब करने में जुटे है दूसरी ओर उनका ही वोट बैंक उनसे खिसका जा रहा है। अखिलेश की समाजवादी पार्टी पिछले करीब दस वर्षों में हार का ‘चौका’ लगा चुकी है।

2014 के लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ हार का यह सिलसिला 2017 के विधान सभा और 2019 के लोकसभा चुनाव के पश्चात एक बार फिर 2022 के विधान सभा में मिली हार तक जारी रहा था। हर बार सपा को भाजपा से मात खानी पड़ी।भाजपा के सामने अखिलेश सभी दांव आजमा चुके हैं।

अब 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर सपा के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की चुनावी परीक्षा होगी लेकिन इस बार भी अखिलेश की राह आसान नहीं लग रही है। अब तो अखिलेश के पास कोई नया ‘प्रयोग’ भी नहीं बचा है। वह कांग्रेस और बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुके हैं।

राष्ट्रीय लोकदल और ओम प्रकाश राजभर की पार्टी का भी साथ करके देख लिया है लेकिन कोई भी प्रयोग उनकी हार के सिलसिले को रोक नहीं पाया। स्थिति यह हो गई है कि आज की तारीख में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव बिल्कुल ‘तन्हा’ नजर आ रहे हैं। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी तो समाजवादी पार्टी से दूरी बनाकर चल ही रहे हैं।

समाजवादी पार्टी यानी अखिलेश का साथ उसके सहयोगी ही नहीं छोड़ रहे हैं, बल्कि कई पुराने नेताओं ने भी किनारा कर लिया है। वह मुसलमान नेता भी समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं जो कभी मुलायम सिंह को अपना रहनुमा समझते थे लेकिन अखिलेश से उनकी नाराजगी बढ़ती जा रही है।

इसमें कई नेता ऐसे हैं जो मुलायम के काफी करीबी थे। बीते वर्ष अक्टूबर में तो मुस्लिम बाहुल्य जिला संभल में सपा को इतना तगड़ा झटका लगा कि उसकी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश उर्दू अकेडमी के पूर्व चेयरमैन हाजी आजम कुरैशी का सपा से ही मोहभंग हो गया है।

कुरैशी ने सपा की साइकिल से उतर कर भाजपा का दामन थाम लिया। पीएम नरेंद्र मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर कुरैशी भाजपा के साथ जुड़ने के बाद और मुस्लिमों को पार्टी से जोड़ने के लिए काम कर रहे हैं। भाजपा का दामन थामने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए हाजी आजम कुरैशी तो यहां तक आरोप लगा रहे हैं कि अखिलेश अपने दफ्तर में बैठकर सिर्फ ट्वीट करने का काम करके मुसलमानों को भाजपा से डर दिखा रहे हैं, लेकिन मुसलमान हकीकत समझ गया है कि कौन मुसलमानों के साथ है और कौन उनके लिए घड़ियाली आंसू बहाता है।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुसलमानों की नाराजगी की वजह पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि मुसलमानों को अखिलेश से सबसे बड़ी यही नाराजगी है कि सपा प्रमुख मुसलमानों के समर्थन में नहीं बोल रहे हैं। मुस्लिम वर्ग का कहना है कि मुस्लिमों को टारगेट किया जा रहा है। उन पर हो रही कार्रवाई के खिलाफ अखिलेश कोई आवाज नहीं उठा रहे हैं। यहां तक कि मुसलमानों की समस्याओं और उत्पीड़न के खिलाफ अखिलेश शायद ही कभी मुंह खोलते हों।

इसके अलावा समाजवादी पार्टी के गठन के समय मुलायम सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले आजम खान की अनदेखी भी अखिलेश पर भारी पड़ रही है। फिर भी चुनाव के समय मुसलमान वोटर तो सपा के पक्ष में एकजुट हो जाते हैं, लेकिन सपा के कोर यादव वोटर्स अखिलेश से किनारा कर रहे हैं। पार्टी छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं का कहना है कि चुनाव में मुस्लिमों ने एकजुट होकर समाजवादी पार्टी के लिए वोट किया, लेकिन सपा के यादव वोटर्स ही पूरी तरह से उनके साथ नहीं आए। इसके चलते चुनाव में हार मिली। इसके बाद भी मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर अखिलेश का नहीं बोलना नाराजगी को बढ़ा रहा है।

बात पार्टी से नाराज चल रहे समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेताओं की कि जाए तो इसमें सांसद डॉ. शफीकुर्ररहमान बर्क से लेकर तमाम नेता शामिल हैं। संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद डॉ. शफीकुर्ररहमान बर्क अपनी ही पार्टी पर हमला बोलते हुए कहते हैं कि भाजपा के कार्यों से वह संतुष्ट नहीं हैं। भाजपा सरकार मुसलमानों के हित में काम नहीं कर रही है। फिर वह तंज कसते हुए कहते हैं कि भाजपा को छोड़िए, समाजवादी पार्टी ही मुसलमानों के हितों में काम नहीं कर रही। सपा के सहयोगी रालोद के प्रदेश अध्यक्ष रहे डॉ. मसूद ने 2022 में विधान सभा चुनाव नतीजे आने के कुछ दिनों बाद ही अपना इस्तीफा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को भेज दिया था। इसमें उन्होंने रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ सपा मुखिया अखिलेश यादव पर जमकर निशाना साधा था। अखिलेश को तानाशाह तक कह दिया था। सपा पर टिकट बेचने का आरोप भी लगाया था।

इसी दौरान इमरान मसूद और सहारनपुर के सपा नेता सिकंदर अली ने पार्टी छोड़ दी। पार्टी छोड़ते हुए सिकंदर ने कहा कि हमने दो दशक तक सपा में काम किया। सपा अध्यक्ष कायर की तरह पीठ दिखाने का काम कर रहे हैं। मुस्लिमों की उपेक्षा की जा रही है। सिकंदर ने कहा कि सपा के बड़े-बड़े मुस्लिम नेता जेलों में बंद हैं लेकिन अखिलेश यादव की चुप्पी पीड़ा पहुंचाने वाली है। मुलायम सिंह यूथ बिग्रेड सहारनपुर के जिला उपाध्यक्ष अदनान चौधरी भी अखिलेश यादव पर आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं। अदनान चौधरी का कहना था कि मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार पर अखिलेश यादव की चोंच बिल्कुल बंद है।

हाल ही में सुल्तानपुर के नगर अध्यक्ष कासिम राईन ने भी अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव को मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने में कोई रुचि नहीं है। आजम खां का पूरा परिवार जेल में डाल दिया गया पर अखिलेश यादव नहीं बोले। नाहिद हसन को जेल में डाल दिया गया और शहजिल इस्लाम का पेट्रोल पंप गिरा दिया गया लेकिन सपा अध्यक्ष ने इस पर आवाज नहीं उठाई।

सपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे इरशाद खान ने भी मुसलमानों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पर मुसलमानों की अनदेखी करने का आरोप लगाया। इरशाद ने कहा कि मुसलमान हमेशा से समाजवादी पार्टी के साथ रहा है लेकिन उसे सत्ता और संगठन में सम्मानजनक भागीदारी नहीं मिल पाई। समाजवादी पार्टी युवजन सभा बिजनौर के नूरपुर ब्लॉक अध्यक्ष मोहम्मद हमजा शेख भी पार्टी छोड़ चुके हैं। हमजा शेख ने कहा कि अखिलेश यादव मुस्लिमों से कतराते हैं। वह मुसलमानों पर हो रहे जुल्मों को देखकर भी चुप रहते हैं। मुस्लिमों को लेकर कोई आंदोलन नहीं करते। सिर्फ ट्विटर पर ही राजनीति करते हैं।

यदि 2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमान वोटर एकजुट रहा तो सूबे की 26 लोकसभा सीटों पर सियासी उलफेर हो सकता है। ऐसे में मायावती निकाय चुनाव के जरिए दलित-मुस्लिम समीकरण फिर से लौटी हैं तो कांग्रेस भी अपनी तरफ उन्हें लाने की कोशिश कर रही है। वहीं,भाजपा पसमांदा कार्ड के जरिए मुस्लिमों के बीच अपनी जगह बनाना चाहती है तो असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम लीडरशिप के बहाने सियासी जमीन तलाश रहे हैं। बात सपा कि की जाए तो भले ही पार्टी के मुस्लिम नेता अखिलेश का साथ छोड़ रहे हों परंतु सपा प्रमुख अखिलेश यादव मुस्लिम वोट बैंक को लेकर बेफिक्र हैं। अखिलेश यादव को यकीन है कि यह वोट फिलहाल उनसे दूर नहीं जाएगा। ऐसे में देखना है कि भविष्य की सियासत में मुस्लिम मतदाता किसके साथ खड़ा नजर आता है।


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