एक छोटे से गांव में एक पाठशाला एक साधू शिक्षक द्वारा चलाई जाती थी, जिनका नाम स्वामी आत्मज्ञान था। वह गांव के बच्चों को धार्मिक और मानविक मूल्यों की शिक्षा देते थे। एक दिन, पाठशाला में एक छात्र, राम, आया। राम गरीब था और भूख से तड़प रहा था। स्वामी आत्मज्ञान ने देखा कि राम की हालत बहुत खराब है। उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और पूछा, राम, तुमने क्यों पाठशाला आना चाहा? राम ने उत्तर दिया, स्वामीजी, मैं ज्ञान की खोज कर रहा हूं और मैं धर्म और सत्य के बारे में सीखना चाहता हूं। मैं जानना चाहता हूं कि जीवन का असली उद्देश्य क्या है और कैसे सच्चे सुख को पाया जा सकता है। स्वामी आत्मज्ञान ने राम की इच्छाओं का सम्मान किया और उसे पाठशाला में आने की अनुमति दी। उन्होने राम को बताया कि वे उसे कर्म बोध का महत्व और सुख को प्राप्त करने के उपायों के बारे में सिखाएंगे। राम पाठशाला में प्रवेश किया और वह स्वामी आत्मज्ञान के शिक्षाओं को ध्यान से सुनने लगा। उसने सीखा कि कर्म बोध का अर्थ है कि हमें अपने कर्मों का जिम्मेदार बनना चाहिए और हमें अपने कार्यों को सही तरीके से करना चाहिए, बिना किसी भी आसक्ति के। राम ने यह सीखा कि सच्चा सुख केवल आत्मा के आत्म-साक्षात्कार से ही प्राप्त किया जा सकता है, और इसके लिए आत्मज्ञान, सेवा, और संयम की आवश्यकता है। वह अपने कर्मों को सही तरीके से करने के लिए समर्पित हो गया और ध्यान से पढ़ने और सीखने लगा। धीरे-धीरे, राम जीवन के असली मायने समझने लगा और उसने सच्चे सुख को अपने अंदर पाया। वह अपनी आत्मा की खोज में लग गया और वह आत्मा के अद्वितीय आनंद का अनुभव करने लगा।