नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि का पावन पर्व इन दिनों पूरे देश में श्रद्धा और विधिपूर्वक मनाया जा रहा है। यह नवरात्रि खासकर मां आदिशक्ति दुर्गा की गुप्त आराधना और तांत्रिक साधनाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। भक्तगण नौ दिनों तक उपवास रखते हुए मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं। हालांकि, कई भक्त किसी कारणवश पूरे नौ दिनों तक व्रत या नियमित पूजा नहीं कर पाते। ऐसे में अष्टमी और नवमी तिथि उनके लिए विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है। मान्यता है कि इन दो तिथियों पर विधिपूर्वक मां दुर्गा की भक्ति करने से साधक को पूरे नवरात्रि के व्रत जितना पुण्य फल प्राप्त होता है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि की शुरुआत होती है और नवमी तिथि को इसका समापन होता है। इस वर्ष 2025 में आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 26 जून से हुई थी और इसका समापन 4 जुलाई 2025 को नवमी तिथि पर होगा। अष्टमी और नवमी, दोनों ही दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा, हवन, कन्या पूजन और साधना के लिए अत्यंत शुभ माने गए हैं।
नवमी तिथि
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि नवमी तिथि इस बार विशेष रूप से शुभ मानी जा रही है। पंचांग के अनुसार, नवमी तिथि की पूजा इस वर्ष शुक्रवार, 4 जुलाई 2025 को की जाएगी। अष्टमी और नवमी दोनों ही दिन मां दुर्गा की पूजा के लिए बेहद पावन माने जाते हैं। इस दौरान भक्त व्रत रखकर मां दुर्गा की आराधना करते हैं और विशेष पूजा-पाठ करते हैं।
कई श्रद्धालु इन तिथियों पर कन्या पूजन भी करते हैं, जिसे देवी की कृपा प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। जो लोग अष्टमी के दिन कन्या पूजन करते हैं, वे इसी दिन घट विसर्जन भी कर सकते हैं। ये दोनों दिन साधना और भक्ति से भरे रहते हैं, और माना जाता है कि इस दिन की गई पूजा विशेष फल प्रदान करती है।
04 जुलाई पूजा मुहर्त
ब्रह्म मुहूर्त- प्रात: काल में 04:07 से लेकर 04:48 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11:58 से लेकर दोपहर 12:53 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त- शाम में 07:22 से लेकर 07:42 मिनट तक
अमृत काल- सुबह में 09:38 से लेकर 11:26 मिनट तक
पूजा विधि
नवमी तिथि के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना विशेष पुण्यदायी माना जाता है।
स्नान करते समय गंगाजल या किसी तीर्थ का जल मिलाने से शुद्धता बढ़ती है।
स्नान के बाद मन को स्थिर करें और शांत वातावरण में पूजा की तैयारी करें।
नहाने के बाद लाल या पीले रंग के कपड़े पहनें, क्योंकि ये रंग मां दुर्गा को अति प्रिय हैं।
स्त्रियां श्रृंगार के सभी आवश्यक वस्त्रों के साथ तैयार हों और पुरुष भी शुद्ध वस्त्र पहनें।
यह विशेष रूप से दर्शाता है कि साधक पूरी श्रद्धा और आदर के साथ उपासना कर रहा है।
घर के मंदिर या पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें।
गंगाजल से शुद्धिकरण करें और वहां लाल कपड़ा बिछाएं।
मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें, साथ ही गणेश जी की भी मूर्ति रखें।
दीपक, धूप, फूल, चावल, कुमकुम, सिंदूर आदि को पूजा सामग्री में शामिल करें।
पूजा शुरू करने से पहले हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर मां दुर्गा का ध्यान करें।
मन ही मन यह संकल्प लें कि आप नवमी तिथि का व्रत और पूजन पूरी निष्ठा से करेंगे।
यह संकल्प साधक के संपूर्ण मनोयोग और श्रद्धा को दर्शाता है।
मां दुर्गा को लाल पुष्प, बेलपत्र, फल, मिठाई (खासकर हलवा, पुए, पंचमेवा), नारियल, लौंग, इलायची, और श्रृंगार सामग्री (चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर) अर्पित करें।
साथ ही शुद्ध जल, कच्चा दूध और घी भी अर्पित किया जा सकता है।
कलश पर रोली और अक्षत लगाकर दीपक जलाएं।
पूजा के दौरान ‘ॐ दुं दुर्गायै नमः’, ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ जैसे मां दुर्गा के मंत्रों का जप करें (कम से कम 108 बार)।
दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती या सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करें।
आरती के समय घंटी बजाएं और पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करें।
घर में हवन की व्यवस्था हो, तो नवमी तिथि पर दुर्गा हवन अवश्य करें।
हवन सामग्री में गुग्गुल, कपूर, चंदन, लौंग, गिलोय, बेलपत्र आदि रखें।
हवन के अंत में पूर्णाहुति दें और सभी देवी-देवताओं से आशीर्वाद मांगें।
नौ छोटी कन्याओं को आमंत्रित करें, उन्हें पांव धोकर बैठाएं और उन्हें भोजन कराएं।
भोजन में हलवा, पूड़ी, चने का भोग देना परंपरागत है।
भोजन के बाद उन्हें उपहार, कपड़े या दक्षिणा देकर विदा करें।
यह चरण अत्यंत पुण्यदायी और मां दुर्गा को अति प्रिय है।
यदि आपने नवरात्रि में कलश स्थापना की थी, तो नवमी के दिन पूजा के बाद उसका विसर्जन करें।
कलश का जल तुलसी के पौधे में अर्पित करें और वस्त्र व सामग्री को किसी पवित्र स्थान पर छोड़ दें।