नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले सभी मंगलवारों को “बड़ा मंगल” या “बुढ़वा मंगल” कहा जाता है। यह दिन भगवान हनुमान जी को समर्पित होता है और विशेष रूप से उनके वृद्ध स्वरूप की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बड़ा मंगल के दिन हनुमान जी की उपासना एवं व्रत रखने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह दिन करियर में सफलता, घर के दोषों के निवारण, और व्यापार में उन्नति के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, वीर बजरंगी हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए ज्येष्ठ माह के मंगलवार को विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। इस दिन देशभर के हनुमान मंदिरों में भक्तों द्वारा पूजा, पाठ, हवन, भंडारे और हनुमान चालीसा के पाठ जैसे धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। हालाँकि पूरे भारत में यह पर्व श्रद्धा से मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसकी रौनक कुछ खास देखने को मिलती है।
इस साल ज्येष्ठ माह में दूसरा बड़ा मंगल 20 मई 2025 के दिन मनाया जा रहा है। इस तिथि पर धनिष्ठा नक्षत्र और ऐन्द्र योग का संयोग बना हुआ है। ऐसे में हनुमान जी की आराधना करना और भी लाभकारी है। ऐसे में आइए इस दिन की संपूर्ण पूजा विधि को जानते हैं।
पूजा विधि
- बड़े मंगल पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ही स्नान कर लेना चाहिए।
- इसके बाद साफ वस्त्रों को धारण करें और घर की स्वच्छता का ध्यान रखें।
- अब सबसे पहले एक चौकी पर हनुमान जी की मूर्ति को स्थापित कर लें।
- फिर प्रभु को लाल रंग का फूल अर्पित करें।
- इसके बाद धीरे-धीरे लाल रंग के वस्त्र, सिंदूर और अक्षत अर्पित करें
- इस दौरान चमेली का तेल भी चढ़ाएं।
- हनुमान जी के मंत्र का जप करते हुए शुद्ध देसी घी का दीपक जलाएं।
- हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- हनुमान जी को बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।
- अंत में प्रभु की आरती करें और लड्डू को बांट दें।
- यदि संभव हो, तो इस दिन गुड़ का दान करें। इसके प्रभाव से सभी दोष दूर होते हैं।
कब कब है बड़ा मंगल?
पहला बड़ा मंगल – 13 मई 2025, जो की बीत चुका है।
दूसरा बड़ा मंगल – 20 मई 2025
तीसरा बड़ा मंगल – 27 मई 2025
चौथा बड़ा मंगल – 3 जून 2025
पांचवां बड़ा मंगल – 10 जून 2025
बजरंग बाण का पाठ
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान ॥
जय हनुमन्त संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज बिलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै ।।
जैसे कूदी सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठी विस्तारा ।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम-पद लीना ।।
बाग उजारि सिन्धु मह बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा ।।
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई। जय-जय धुनि सुरपुर में भई ।।
अब बिलम्ब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।।
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर होई दु:ख करहु निपाता ।।
जै गिरिधर जै जै सुख सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ओम हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहि मारो। महाराज प्रभु दास उबारो ।।
ओंकार हुंकार महाप्रभु धाओ। बज्र गदा हनु विलम्ब न लाओ ।।
ओम ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ओम हुं हुं हुं हनु अरि उर-सीसा॥
सत्य होहु हरी शपथ पायके। राम दूत धरु मारू जायके
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।
पूजा जप-तप नेम अचारा। नहिं जानत हो दास तुम्हारा ।।
वन उपवन मग गिरि गृह मांहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।।
पायं परौं कर जोरी मनावौं। येहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।
जय अंजनी कुमार बलवंता। शंकर सुवन वीर हनुमंता ।।
बदन कराल काल कुलघालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।
भूत प्रेत पिसाच निसाचर। अगिन वैताल काल मारी मर ।।
इन्हें मारु, तोहि शपथ राम की। राखउ नाथ मरजाद नाम की ।।
जनकसुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होत दुसह दुःख नासा ।।
चरण शरण कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।
उठु उठु चलु तोहि राम-दोहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई ।।
ओम चं चं चं चं चपल चलंता। ओम हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ।।
ओम हं हं हाँक देत कपि चंचल। ओम सं सं सहमि पराने खल-दल ।।
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कोन उबारै ।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करैं प्रान की ।।
यह बजरंग बाण जो जापैं। ताते भूत-प्रेत सब कापैं ।।
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेसा ।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करैं हनुमान ।।