किसी शहर में एक व्यक्ति रहता था, जो दिन रात गरीबों की मदद करने, दीन दुखियों की सेवा करने और हर प्राणियों की जान बचाने में लगा रहता था। वह कभी किसी पूजा स्थल में नहीं जाता था और न ही किसी धार्मिक कार्यों में भाग लेता था। कहने का मतलब है कि वह एक तरह से नास्तिक था। एक दिन वह अपने कमरे में सोया हुआ था कि उसकी आंख खुल गई। उसने देखा कि कमरे में रोशनी फैली हुई है और एक देवदूत जैसा व्यक्ति उसकी टेबल पर बैठा हुआ कुछ लिख रहा है। वह व्यक्ति उसके पास गया और पूछा कि वह कौन है और क्या लिख रहा है।
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उसने जवाब दिया कि मैं एक देवदूत हूं और उन लोगों की सूची बना रहा हूं जो भगवान को बहुत मानते हैं और उनकी पूजा व सेवा करते है। उस व्यक्ति ने पूछा कि क्या इस सूची में उसका नाम है तो देवदूत ने जवाब दिया कि नहीं तुम्हारा नाम इसमें नहीं है, कहकर देवदूत गायब हो गया। वह व्यक्ति थोड़ा मायूस हुआ और फिर जाकर सो गया।
अगले दिन फिर उसकी आंख खुली तो देखा कि वही देवदूत फिर कुछ लिख रहा है। वह व्यक्ति फिर देवदूत के पास गया और पूछा कि आज वह क्या लिख रहे हैं, तो देवदूत ने कहा कि आज वह उन लोगों की सूची बना रहा है, जिनसे भगवान अति प्रसन्न हैं और भगवान के प्रिय हैं। उस व्यक्ति ने डरते हुऐ पूछा कि क्या इस सूची में उसका नाम है, तो देवदूत ने जवाब दिया कि हैं है और इस सूची में उसका नाम सबसे ऊपर है|
कहकर देवदूत फिर गायब हो गया। कहानी यह बताती है कि दीन-दुखियों और गरीबों की सेवा करना ही सबसे बड़ी भगवान की आराधना है। मानवता, करूणा का होना व प्राणियों की जान बचाना ही सबसे बड़ी पूजा है और इसी से भगवान प्रसन्न होते है न कि सिर्फ पूजा स्थलों में जाकर पूजा पाठ करने से या भजन कीर्तन करने से। यह बात हर धर्म/मजहब पर लागू होती है।