Wednesday, July 3, 2024
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पुण्य फल

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राजा भोज एक दानी और धार्मिक प्रवृत्ति वाले राजा हुए है। एक दिन राजा भोज गहरी निद्रा में सोये हुए थे। उन्हें उनके स्वप्न में एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध के दर्शन हुए। राजा भोज ने उनसे पूछा-महात्मन! आप कौन हैं? वृद्ध ने कहा-राजन मैं सत्य हूं और तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूं। मेरे पीछे-पीछे चल आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख। राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए।

राजा भोज बहुत दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत, तीर्थ, कथा-कीर्तन करते थे, उन्होंने अनेक तालाब, मंदिर, कुएं, बगीचे आदि भी बनवाए थे। राजा के मन में इन कार्यों के कारण अभिमान आ गया था। वृद्ध पुरुष के रूप में आए सत्य ने राजा भोज को अपने साथ उनकी कृतियों के पास ले गए। वहां जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ, सब एक-एक करके सूख गए, बागीचे बंजर हो गए।

राजा इतना देखते ही आश्चर्यचकित रह गया। फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया। सत्य ने जैसे ही मंदिर को छुआ, वह खंडहर में बदल गया। वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ, तीर्थ, कथा, पूजन, दान आदि के लिए बने स्थानों, वस्तुओं आदि को ज्यों ही छुआ, वे सब राख हो गए। राजा यह सब देखकर सन्न रह गया।

सत्य ने कहा, राजन! यश की इच्छा के लिए जो कार्य किए जाते हैं, उनसे केवल अहंकार की पुष्टि होती है, धर्म का निर्वहन नहीं…सच्ची भावना से निस्वार्थ होकर कर्तव्यभाव से जो कार्य किए जाते हैं, उन्हीं का फल पुण्य के रूप मिलता है और यह पुण्य फल का रहस्य है। इतना कहकर सत्य अंतर्धान हो गए। राजा ने नींद खुलने पर गहन विचार किया और सच्ची भावना से कर्म करना प्रारंभ किया, जिसके बल पर उन्हें यश-कीर्ति और बहुत पुण्य भी प्राप्त हुआ।
                                                                                                   प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


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