Tuesday, August 26, 2025
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बिन फेरे सिंदूर का क्या मोल

कभी एक फिल्म आई थी-बिन फेरे हम तेरे। इस फिल्म में सप्तपदी और मांग में सिंदूर का मोल बताया गया था। उसके बाद वैवाहिक सम्बन्धों में अधूरे पन से जुड़ी अनेक फिल्में प्रकाश में आईं। कुछ प्रेमानुभूति व्यक्त करने वाले गीत भी कानों में रस घोलते गए। जैसे कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिए। तू अभी तक सितारों में बस रही थी कहीं, तुझे जमीं पे उतारा गया है मेरे लिए। यह सिर्फ किसी फिल्म का गीत नहीं था, इसमें सिंदूर की भूमिका का समावेश था। एक चुटकी सिंदूर को मांग में सजाने के लिए मांग भरो सजना फिल्म बनी। बहरहाल सिंदूर एक पहचान है, जो विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेद बताता है। इसे विवाहित होने का जीता जागता प्रमाण पत्र भी कह सकते हैं। आजकल सिंदूर चर्चा में है। पूरे देश में सिंदूर की चर्चा है, जिसे सिंदूर का अर्थ और महत्व नहीं मालूम, वह सिंदूर पर बहुत गंभीर है।

एक बात तो है कि जब तक विवाह संपन्न नहीं होता, तब तक शादी के लड्डू का आकर्षण अधिक रहता है। विवाह में वर द्वारा वधू की मांग में सिंदूर भरकर गृहस्थ पथ पर अग्रसर होने का संकल्प लिया जाता है। बाद में जब गृहस्थ की गाड़ी बात बात पर डगमगाती है, तो एक चुटकी सिंदूर की कीमत सबको याद आती है। पति पत्नी शादी के दिन को याद करते हैं तथा उस घड़ी को कोसते हैं, जब दोनों ने शादी के लड्डू का भोग लगाया था यानी शादी का लड्डू खाया था। उन्हें घर के बुजुर्गों का शादी के लड्डू के संबंध में वह अनुभव जनित निष्कर्ष याद आता है, जिसमें बताया गया था, कि शादी ऐसा लड्डू है, जिसने भी उसे खाया वह पछताया, जिसने नहीं खाया, वह भी पछताया।

चौपाल पर चर्चा, चाय पर चर्चा आम बात है। सिंदूर पर चर्चा खास बात है। यह चर्चा उस समय खास बन जाती है, जब चर्चा में वे लोग भाग लेते हैं, जिनका या तो सिंदूर से कभी नाता ही न रहा हो या नाता रहा हो, तो जिसने सिंदूर का कभी सम्मान न किया हो। राधा ने माला जपी श्याम की, मैंने ओढ़ी चुनरिया तेरे नाम की, जैसी भावना रखने वाली समर्पिता जब किसी के नाम का सिंदूर अपनी मांग में सजाती है, तो उसी की बनकर रह जाती है। एक चुटकी सिंदूर की कीमत वही जानती है, जिसने कभी किसी के नाम का सिंदूर अपनी मांग में भरा हो।

किसी ने कहा, कि वह घर घर सिंदूर बांटेंगे। किसी ने कहा कि नहीं बांटेंगे। किसी ने कहा कि क्यों बांटेंगे? क्या सिंदूर भी बांटने की वस्तु है? फिर भी अजीब सा लगा कि सिर्फ सिंदूर ही क्यों? साथ में सुहाग की अन्य निशानियां क्यों नहीं, रंग बिरंगी बिंदियां, हरी हरी चूड़ियां, पायल, बिछुवे, कंगन तथा अन्य सौंदर्य प्रसाधन भी साथ में भिजवा देते, तो गरीब सुहागिनों का कुछ भला हो जाता। लगता है कि सिंदूर भी सियासी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का एक माध्यम बन गया है। यही सिंदूर पर चर्चा को हास्यास्पद बनाता है। सिंदूर गाथा बंद होनी चाहिए।

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