रेलमार्ग क्यों बन रहे हैं यात्रियों के लिए कब्रगाह? बीते 35 महीनों में 131 रेल हादसों को देखकर प्रतीत होता है कि रेल महकमा आपकी-हमारी जाने लेने पर पूरी तरह से आमादा हुआ पड़ा है। यात्रियों की कतई परवाह नहीं है उन्हें? हादसा होते ही शासन-प्रशासन द्वारा जांच-पड़ताल का हवाला देकर एकाध महीने में शांत करवा दिया जाता है। हताहत होने वालों के परिजनों को मरहम-हमदर्दी के रूप में केंद्र या राज्य सरकारें मुआवजा देकर चुप करा देगी है और अगले हादसे का इंतजार करने लगती है। इस कड़ी में चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस हादसा हमारे सामने है। इस हादसे में भी पूर्ववर्ती जैसे नाकाफी कदम उठाए जाएंगे, शोर को नहीं शांत कराने के लिए तमाम तरकीबें अपनाई जाएंगी। वरना, ऐसा तो है नहीं कि जैसे लाल बहादुर शास्त्री की तरह कोई नैतिकता के आधार पर जिम्मेदारी लेकर अपने पद से त्यागपत्र दे देगा? ऐसा तो सोचना भी नहीं चाहिए किसी को।
निश्चित रूप से चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस रेल हादसे की जांच होगी? फिर चाहें कागजों में हो या धरातल पर? लेकिन परिणाम क्या निकलेगा, ये बात सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला 5वीं क्लास का बच्चा भी बता देगा। हादसे का कारण महकमें के किसी न किसी अधिकारी के सिर मंढ़ा जाएगा। दो-चार सस्पेंड़ किए जाएंगे, कुछ महीनों के लिए, बाद में हिदायत देकर फिर से कमान दे दी जाएगी। जांच की फाइलें अधिकारियों के मेजों पर कुछ महीने घूमेंगी, फिर क्लोजर रिपोर्ट देकर, मामला हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा।
रेल खामियों की लंबी फेहरिस्त है। बिंदु तरीके से देखें तो दिमाग चकरा जाता है। अव्वल तो यही है कि बारिश के दिनों में पटरियों पर रेल दौड़ाना सबसे बड़ा जोखिम होता है। पटरियों के नीचे पानी पिचपिचाने लगता है। पानी भर जाने से नीचे नमी आ जाती है जो तेज रफतार दौड़ने वाली ट्रेन चलते वक्त लपलपाती भी हैं। बारिश में कई रेल टेÑक तो पानी से बह भी जाते हैं। जहां चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस हादसा हुआ उसके ढाई सौ किमी मीटर दूर पीलीभीत जिले में अभी कुछ माह पूर्व ही नया रेल ट्रैक बिछाया गया तो बारिश में बह चुका है। जबकि, उसके आगे अंग्रेजों के वक्त की बनी रेल पटरियां सुरक्षित हैं। इन जिंदा खामियों को देखकर भी रेल महकमा यात्रियों की जान से खुलेआम खेलता है। हादसा होंगे और कहां-कहां हो सकते हैं, इन सच्चाइयों से भी रेल विभाग वाकिफ होता है। ऐसे प्वाइंट को चिन्हित करके बकायदा पहले रेल ट्रैक का निरीक्षण-परीक्षण करना चाहिए। स्थानीय हल्का डीएमआर को स्वंय जांच-पड़ताल करनी चाहिए। पर, दुर्भाग्य वह बारिश के मौसम में अपने कमरों से बाहर निकलना तक मुनासिब नहीं समझते। ऐसी सभी जिम्मेदारियां रेल के चतुर्थ कर्मचारियों रेल बेलदार, पटरी चेकर और टेक्नीशियन पर छोड दी जाती हैं। ये कर्मचारी जब पटरियों से संबंधित खामियों की शिकायत उच्चाधिकारियों से करते हैं तो वह गौर नहीं भरमातें, ऊपर से उन्हें ही डांट-डपट देते हैं।
बारिश-मानसून में रेल पटरियों की आधुनिक तरीकों से जांच करने के बाद ही रेल संचालन की इजाजत देनी चाहिए। पूरी तसल्ली होने पर ही रेलों को पटरियों पर छोड़ना चाहिए। रेल मंत्रालय की दिसंबर-2020 की एक रिपोर्ट पर गौर फरमाए तो रेल पटरियां पूरे हिंदुस्तान में जर्जर हालत में हैं जिनमें सामान्य रेलें जिनकी स्पीड मात्र सौ-अस्सी मीटर प्रति घंटा से भी कम हैं, उनकी भी रफतार झेंलने के लायक नहीं होती। लेकिन हमारा रेल विभाग कमाल का है,उन्हीं ट्रैक पर बुलेट ट्रेन व हाई-स्पीड रेलगाड़ियां दौड़ाने की बात करता है। इस वक्त पूरे भारत में मूसलाधार बारिश का दौर है जिसमें बड़े-बड़े ब्रिज, हाईवे, सड़कें तक धराशाही हुई हैं। बिहार में ब्रिजों के टूटने की चर्चांएं तो हर जगह है ही, अब उत्तराखंड़ में भी कल-परसों एक विशास सिग्नेचरब्रिज ढह गया। ऐसे में यक्ष प्रश्न यही है, भला रेल पटरियां कैसे सुरक्षित रह पाएंगी। बिना जांच किए उन पर ट्रेनों को दौड़ाना भी तो समझदारी नहीं?
सवाल उठता रेल हादसों का तिलिस्म कभी टूटेगा भी या नहीं? पिछले तीन वर्षों में 131 रेल हादसे हुए हैं। आंकड़ा एक ये भी कहता है कि जबसे अश्विनी वैष्णव ने रेलमंत्रालय का पदभार संभाला है, तभी से औसन प्रत्येक महीने तीन हादसे हो रहे हैं। इसे संयोग कहें या रेल के भीतर की खामियां? जो भी कहें, भारतीय रेल यात्रियों की जाने मुश्किल में जरूर पड़ी हुई है। कहीं ऐसा न हो कि रेल यात्री रेलों में चढ़ने से भी डरने लगे। पता नहीं उनका सफर कब बीच में खत्म हो जाए। पिछले तीन वर्षों में विभिन्न रेल हादसों में एक हजार से भी अधिक यात्रियों की मौत हुई हैं जिनमें 60 करोड़ का मुआवजा बंटा और 230 करोड़ रूपए की सरकारी सम्पत्ति का नुकसान हुआ।
आम आदमी के जीवन में रेल का महत्व कितना बड़ा है ये बताने की जरूरत नहीं। रेल आम हिंदुस्तानियों की सुगम और सस्ती सवारी मानी जाती है। रेलमार्ग आर्थिक विस्तार और विकास को प्रोत्साहित करती है। पहुंच बढ़ाने और क्षेत्रीय एकीकरण को आसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ट्रेनों का परिवहन सभी के जीवन का मुख्य हिस्सा है, जैसे कि सस्ती कीमतें और लंबी दूरी तय करना। रेल से आम लोगों का विश्वास न टूटे, इसलिए रेल महकमे को और रेल सिस्टम को रिफॉर्म करने की अति दरकार है। रेल पटरियों और रेल संचालन में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा। रेल महकमे में लाखों की रिक्तियां खाली हैं, उन्हें भरकर कर्मचारियों की कमी को भी पूरा किया जाए। रेल हादसे रोंगटे खड़े करते हैं। हाल मात्र तीन बड़े हादसों में 300 से ज्यादा यात्रियों ने अपनी जान गंवाई हैं।