फसलों की उत्तम पैदावार हेतु पोषक तत्व नत्रजन अनिावर्य है। पृथ्वी के वायुमंडल में लगभग 78 प्रतिशत, यानि 35,000 टन प्रति एकड़ नत्रजन उपलब्ध है। इसका इतना विषाल भण्डार होते हुए भी पौधे स्वयं इनका उपयोग करने में सक्षम नहीं होते। मृदा में कुछ ऐसे सूक्ष्म जीव उपस्थित रहते हैं जो वायुमंडल में उपलब्ध नत्रजन को विखण्डित कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं।
सर्वप्रथम वर्ष 1888 में बिजरिंग नाम के वैज्ञानिक ने ऐसे जीवाणुओं का पता लगाया जो दलहनी फसलों के पौधों की जड़ों में ग्रन्थियां (गोंठें) बनाकर वायु में उपलब्ध नत्रजन को उपलब्ध कराने में सक्ष्म होते हैं, जिन्हे ‘राइजोबियम’ जीवणु कहा जाता है।
राइजोबियम जीवाणु की अच्छी प्रजाति की जीवित कोशिकाओं को किसी वाहक (कॅरियर) में अधिक से अधिक संख्या में मिलाया जाता है, इससे दलहनी फसलों के बीज उपचारित करने पर इसमें उपस्थित जीवाणु पौधों की जड़ों में प्रवेष कर ग्रन्थियां बनाकर वायुमण्डल की नत्रजन को पौधों को उपलब्ध कराते हैं। राइजोबियम की जीवित कोशिकाओं को किसी वाहक में मिलाने के उपरान्त जो उत्पाद बनता है उसे ‘राइजोबियम कल्चर’ या ‘राइजोबियम जीवाणु खाद’ कहते हैं।
राइजोबियम खाद
राइजोबियम खाद को पॉलिथीन की थैलियों में भरकर रखा जाता है। 200 ग्राम जीवाणु खाद प्रति थैली की दर से एक एकड़ में बोये जाने वाले बीज को उपचारित करने के लिए पर्याप्त होती है। जीवाणु खाद का उपयोग करने हेतु निम्न विधियां अपनानी चाहिए–
पैकेट खोलकर जीवाणु खाद को किसी स्वच्छ बर्तन में डालकर 200 मिली स्वच्छ एवं शीतल जल की सहायता से गाढ़ा घोल तैयार करें। 10 प्रतिषत चीनी या गुड़ अथवा 40 प्रतिशत गोंद का घोल भी बनाया जा सकता है। इस हेतु 10 ग्राम चीनी या गुड़ अथवा 40 ग्राम गोंद 100 मिली स्वच्छ जन में लगभग 5-10 मिनट तक उबालकर ठंडा करके जीवाणु खाद में मिलाकर गाढ़ा घोल तैयार करें। एक एकड़ में बोये जाने वाले बीज को किसी चैड़े मुंह वाले बर्तन या पॉलिथीन की चादर अथवा साफ एवं पक्के फर्श पर फैलाकर उसके ऊपर जीवाणु खाद का घोल डालकर उसे हाथों से अच्छी प्रकार बीज में मिलाएं, जिससे प्रत्येक बीज पर घोल की परत चढ़ जाए। इस प्रार उपचारित बीज को किसी छायादार स्थान पर लगभग 10 मिनट के लिए सुखाएं तथा शीघ्र ही बुवाई कर ऊपर मिट्टी ढंक दें।
जीवाणु उपचार के लाभ
दलहनी फसलों को सस्ता एवं उत्तम नत्रजन प्राप्त होती है। राइजोबियम के प्रयोग से 80-150 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष की दर से पौधों को उपलब्ध होती है।
दलहनी फसलों के साथ उसे बाद बोयी गई फसलों को भी इसका लाभ मिलता है, मृदा की उर्वरा-शक्ति में वृद्धि होकर उपज में 10-40 प्रतिषत तक की वृद्धि होती है।