Sunday, April 27, 2025
- Advertisement -

क्यों आती है आर्थिक मंदी

SAMVAD


08 31मौजूदा व्यवस्था के रहते हमारे देश में चीन के टक्कर में बड़े पैमाने का उत्पादन संभव नहीं है, क्योंकि यदि पूंजीपति वर्ग अपने उद्योगों का विस्तार करके चीन के टक्कर में बड़े पैमाने का उत्पादन करता है तो एक हद तक सस्ता माल तैयार हो सकता है और सस्ते मालों के बल पर कुछ समय के लिए चीन को टक्कर दिया जा सकता है। मगर हमारे देश का पूंजीपति वर्ग चीन के टक्कर में बड़े पैमाने पर उत्पादन कर ही नहीं सकता क्योंकि-उसके पास पूंजी का अभाव है। उसके पास आंतरिक बाजार नहीं है, क्योंकि यहां लोगों के पास क्रय शक्ति नहीं है। आर्थिक मंदी के कारण उसका माल अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी नहीं बिक सकता। कोई कितना भी विकसित पूंजीवादी देश क्यों न हो वह चीन के टक्कर में विराट पैमाने का उत्पादन नहीं कर पा रहा है और कर भी नहीं पाएगा, क्योंकि समाजवादी देशों में जल, जंगल, जमीन कल-कारखाना, खान-खदान, यातायात, शिक्षा, चिकित्सा, बीमा और बैंक सरकारी हैं।

इसका मतलब सारी पूंजी सरकार द्वारा नियंत्रित होती है। एफडीआई, एफआईआई…आदि के जरिये जो विदेशी पूंजी आती है, वह भी सरकार के नियंत्रण में ही रहती है। इस प्रकार सारी पूंजी एक जगह से नियंतित्र होती है।

इसी कारण चीन की पूंजी पूरी दुनिया में फैली होने के बावजूद भी संगठित है। इसीलिए वह बड़े से बड़ा उद्योग लगाने में सक्षम है इसके विपरीत पूंजीवादी देशों की पूंजी में तीन कमजोरियां होती हैं-उत्पादन के संसाधनों के निजी मालिकाने के कारण पूंजीवादी देशों की सारी पूंजी बिखरी हुई होती है। पूंजीपति वर्गों में आपसी तालमेल नहीं होता। लाखों पूंजीपति अपनी-अपनी पूंजी को अपने-अपने ढंग से जहां चाहते हैं वहां लगाते हैं।

वे अपनी पूंजी को अलग-अलग नियंत्रित करते हैं। पूंजीपति एक दूसरे से अधिक मुनाफा कमाने के लिए आपस में होड़ करते हैं तथा एक दूसरे के विरुद्ध गलाकाट प्रतिस्पर्धा करते हैं। इन तीन कारणों से पूंजीवादी देशों की पूंजी से विराट पैमाने का उत्पादन संभव ही नहीं है। विश्व के सारे पूंजीवादी देशों का सरगना अमेरिका भी चीन की तुलना में बड़े से बड़ा उद्योग लगाने में सक्षम नहीं हैं।

वालमार्ट अमेरिका की बहुत बड़ी कंपनी है, जो दुनिया भर में शापिंग माल खोल कर चीन का सस्ता माल बेच रही है। और भारी मुनाफा कमा रही है। यदि वालमार्ट कंपनी अपना कारखाना खोलकर माल पैदा करके बेचती तो उसे जोखिम ज्यादा उठाना पड़ता। और जोखिम के मुकाबले उतना भारी मुनाफा नहीं मिलता। बाजार में चीन के सस्ते माल के मुकाबले उसका माल नहीं बिक पाता तो उसे भारी घाटा हो सकता था, और उसकी पूंजी डूब सकती थी। यही भय भारत के पूंजीपतियों को भी है।

पूंजीवादी तरीके से समाजवादी उत्पादन का मुकाबला करना संभव नहीं रह गया है, क्यांकि पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली अनियंत्रित बाढ़ अथवा सूखे की तरह होती है। पूंजीवादी उत्पादन हमेशा ही सीमित पैमाने का उत्पादन होता है। पूंजीवादी उत्पादन जितना ही ज्यादा बढ़ाते हैं, उतनी ही ज्यादा भयानक मंदी आती है। पूंजीवादी व्यवस्था में जितना ही भारी पैमाने का उत्पादन करेंगे, पूंजीपतियों के बीच निजी स्वामित्व के कारण उतनी ही भयानक प्रतिस्पर्धा होगी। वे अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए लागत मूल्य घटाएंगे।

लागत मूल्य घटाने के लिए बड़ी से बड़ी मशीनें लगाएंगे, जिससे कम मजदूरों द्वारा ज्यादा माल पैदा कर सकेंगे। बड़ी मशीनें लगा कर पैदावार को बढ़ा देते हैं, परंतु मजदूरों की छंटनी कर देते हैं। इस प्रकार खरीदने वालों की संख्या घटा देते हैं। दरअसल, काम से हटाए गए मजदूर तनख्वाह नहीं पाते हैं, अत: खरीददारी नहीं कर पाते। जब बाजार माल से पट जाता है और खरीदने वाले बहुत कम रह जाते हैं। इस प्रकार आर्थिक मंदी आ जाती है। पूंजीपति जितने ही बड़े पैमाने का उत्पादन करते हैं उतनी ही भयानक आर्थिक मंदी आती है।

पूंजीवाद विकसित होकर साम्राज्यवाद में बदल जाता है तब अति उत्पादन के कारण नहीं, बल्कि उत्पादन ठप्प या कम होने के कारण भी मंदी आती है। इस दौर में औद्योगिक पूंजी वित्तीय पूंजी के रूप में बदलती जाती है। वह वित्तीय पूंजी उन तमाम गैर जरूरी चीजों के उत्पादन को बढ़ावा देती है, जिसमें कम से कम समय, कम से कम लागत में अधिक से अधिक मुनाफा हो। तब वह वित्तीय पूंजी मनुश्य की बुनियादी जरूरतों- रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य संबन्धी वस्तुओं का उत्पादन करने की बजाय हथियार, शराब आदि नशीले पदार्थ, गंदी फिल्में, गंदे गाने तथा कामुकता बढ़ाने की दवाएं एवं उपकरण आदि के उत्पादन को बढ़ावा देती है। और अपने मजबूत प्रचार तंत्रों के जरिये अपने इन गैर जरूरी उत्पादों को खरीदने के लिए लोगो के मन में कृत्रिम जरूरत पैदा करती है।

फिर चीन में बड़े पैमाने का उत्पादन करने के बावजूद भी आर्थिक मंदी क्यों नहीं आती? क्योंकि चीन का सामाजिक संगठन पूंजीवादी देशों के सामाजिक संगठन से अलग तरह का है। वहां दास और मालिक वाला समाज नहीं है, वहां राजा-प्रजा या मजदूर-मालिक वाला समाज नहीं है। वहां पूरा समाज ही उत्पादन के साधनों का मालिक है। श्रमिक वर्ग के सामूहिक नेतृत्व में कारखाने चल रहे हैं। श्रमिक वर्ग आपस में मुनाफाखोरी के लिए होड़ नहीं करता। वह समाज की आवष्यकताओं को ध्यान में रखकर ‘योजनाब तरीके’ से उत्पादन करता है।

और भारी पैमाने के उद्योगां के बल पर सस्ता सामान सबके लिए उपलब्ध कराता है। इसी वजह से बड़े पैमाने का उत्पादन होने के बावजूद भी चीन में आर्थिक मंदी नहीं आती और न ही वहां महंगाई और बेरोजगारी की गुंजाइश बन पाती है। ऐंगेल्स ने घोशणा-पत्र में पेज 80 पर लिखा है-‘…. इस तरह, बड़े पैमाने के उद्योग का ठीक वह गुण जो आज के समाज में सारी गरीबी और सारे व्यापार संकटों को जन्म देता है, ही बिल्कुल वह गुण है जो भिन्न सामाजिक संगठन में उस दरिद्रता को तथा इन विनाशकारी उतार-चढ़ावों को नष्ट कर देगा।’ अर्थात बड़े पैमाने के उद्योग द्वारा किए जाने वाले भारी पैमाने के उत्पादन पूंजीपति वर्ग के अधीन होते हैं, तो विनाशकारी उतार-चढ़ावों (आर्थिक मंदी) को जन्म देते हैं जिससे तमाम छोटे कारखानेदार तबाह हो जाते हैं और लाखों मजदूर बेरोजगार हो जाते हैं।

महंगाई बढ़ती है तो भ्रष्टाचार भी बढ़ता है और कर्ज, युद्ध एवं दिवालियापन का संकट भी बढ़ता है, परंतु बड़े पैमाने के वही उद्योग जब समाज के अधीन रह कर उत्पादन का असीम विस्तार करते हैं तो विकास होता है तथा आर्थिक मंदी भी नहीं आती और महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी आदि तमाम संकट दूर हो जाते हैं।


janwani address 9

spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Meerut News: आतंकी हमले के विरोध में बंद रहा मेरठ, सड़कों पर उमडा जन सैलाब

जनवाणी संवाददाता |मेरठ: पहलगाम में आतंकी हमले के विरोध...

Meerut News: पांच सौ पांच का तेल भरवाने पर मिला ट्रैक्टर इनाम

जनवाणी संवाददाताफलावदा: इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने अपने किसान...
spot_imgspot_img