यूरोप की गिनती दुनिया के सबसे सुंदर और ठंडे इलाकों में की जाती है, इसलिए गर्मी के सुहाने मौसम का यहां सभी को इंतजार होता है, लेकिन पूरी दुनिया की तरह यूरोप के मौसम में भी बड़ी तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। यूरोप के सर्वाधिक ठंडे जलवायु वाले देशों में हीटवेव यानि ‘लू’ का कहर चारों तरफ आफत बनकर टूट रहा है। हीटवेव की चपेट में स्विट्जरलैंड भी अब अछूता नहीं है, जहां भीषण गर्मी से लोगों का जीना मुहाल हो रहा है। यूरोप का ज्यादातर हिस्सा इस समय भयंकर लू की चपेट में है। पिछले हफ्ते ब्रिटेन में अधिकतम तापमान 40 डिग्री के पार पहुंच गया, तो वहीं स्पेन में हीटवेव के चलते लगी आग से हजारों हेक्टेयर फसल जलकर खाक हो गई। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले दिनों में गर्मी से हालात और भी बदतर हो सकते हैं। इस हीटवेव का सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव बुजुर्ग और बीमार लोगों पर पड़ सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यूरोप का एक हिस्सा सूखे की चपेट में आ चुका है। स्पेन में हीटवेव के कारण पांच सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। यूरोप में पड़ने वाली भयंकर हीटवेव का कारण है अफ्रीका की वो दक्षिणी गर्म हवाएं है, जो फ्रांस, पुर्तगाल और स्पेन में लोगों पर कहर बरपा रही है। इसलिए यह गर्मी मुसीबत बनती जा रही है। हमारी धरती औद्योगिक युग के मुकाबले इस समय एक डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म हो चुकी है। अगर हम सजग नहीं हुए, तो आने वाले भविष्य में धरती का तापमान चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। इसलिए जलवायु परिवर्तन पर चिंता जाहिर करते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे वक्त में हमें इससे ज्यादा हीटवेव के लिए तैयार रहना होगा।
इंग्लैंड में इस समय पारा 40 डिग्री के ऊपर जा पहुंचा है, जहां लोगों का गर्मी से हाल बेहाल है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है। इंग्लैंड के उत्तर-पश्चिमी में इस समय ‘मार्श’ वेटलैंड (दलदली जमीन) मिट्टी के बड़े बड़े टुकड़ों में तब्दील होती जा रही है। जलवायु परिवर्तन टीम के वैज्ञानिकों का मानते है कि हीटवेव दलदली जमीन को जिस तरह से खराब कर रही है, उसका पर्यावरण पर और भी बुरा असर होगा। मौसम में जिस तरीके से एकाएक बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां बहुत कम बारिश हो रही है। इंसानों द्वारा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण धरती को पहले ही 1.1 डिग्री सेल्सियस गर्म कर दिया है। इसलिए वैश्विक तापमान में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है।
इटली के रोमन सम्राट ‘नीरो’ की एक प्रसिद्ध कहावत है कि जब रोम जल रहा था, तब नीरो बांसुरी बजा रहा था। आज प्राकृतिक दृष्टि से इटली पर यह कहावत कहीं न कहीं चरितार्थ होती दिख रही हैं। इटली के ऐतिहासिक ‘टिबर’ नदी पर एक ब्रिज का निर्माण सैकड़ों साल पहले बनाया गया। जिसके अवशेष अमूमन नदी के पानी में छिपे रहते थे। यानी एक समय में टिबर नदी कभी पानी से लबालब होकर बहती थी, लेकिन इस बार गर्मी का कहर ऐसा है कि टिबर नदी सूखने की कगार पर पहुंच चुकी है यानी इटली में सूखे जैसे हालात पैदा होने लगे हैं। देश के उत्तरी हिस्सों में फसल की उपज आधा रहने का अनुमान है। इटली की सबसे लंबी नदी ‘पो मोंटे विसों (या मोन विसो) की पहाड़ियों से निकलकर ‘आंद्रयास’ सागर में जाकर गिरती है, यानी भारत में जैसे गंगा नदी उत्तराखंड के गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है ठीक उसी तरह। पो नदी 650 किलोमीटर का लंबा सफर तय करती है। जिसे इटली के उत्तरी मैदानी इलाकों की जीवनधारा कहा जाता है। फसल का ज्यादातर हिस्सा इस नदी की सिंचाई पर ही निर्भर है, लेकिन इन दिनों यह नदी बीते 70 सालों का सबसे बुरा दंश झेल रही है।
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने कॉपरनिकस सेंटिनल-2 उपग्रह की मदद से नदी के गिरते जल स्तर और उसमें होने वाले बदलावों की जो छवियां जारी की हैं। वह बताती है कि जून 2020 से जून 2022 के बीच नदी कितनी सिकुड़ गई है। पो नदी का एक हिस्सा, जो हमेशा पानी से भरा रहता था आज वह नदी सूखे रेत, कंकड़ और पत्थरों में सिमटकर रह गई है। जिसकी वजह से इटली की सिंचाई व्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है। मतलब लोगों की आर्थिक स्थिति पर भी इसका असर पड़ता हुआ दिखाई देने लगा है। जानकारों का मानना है कि पो नदी के सूखने से इटली का फसल उत्पादन 30 से 40 फीसदी तक घटने का अनुमान है। दूसरी तरफ ‘आॅर्बिटल लागून’ झील का पानी इतना गरम हो गया है कि जलीय जीवो पर खतरे मंडराने लगे हैं।
इटली की राजधानी अपने प्राकृतिक सौंदर्यता के वैभव के लिए दुनिया भर में मशहूर है, लेकिन अब रोम शहर में ऐसी गर्मी में घूमना-फिरना सीधे मौत को दावत देना है। इस प्रकार से यूरोप के अन्य देशों का भी गर्मी से बुरा हाल है, खासकर फ्रÞांस, पुर्तगाल और ग्रीस में । वर्ष 2003 फ्रांस में भी इस तरह की भीषण गर्मी पड़ी थी, जिसमें पन्द्रह हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। हालात इस बार भी कुछ ऐसे ही बने हुए हैं। भारत की तरह यहां भी इन देशों में गर्मी रिकॉर्ड तोड़ पड़ रही है। ग्रीस का दूसरा बड़ा द्वीप ‘एविया’ भी इस भीषण गर्मी की चपेट में आ गया है। पिछले साल भी इस टापू ने आग का भयंकर सामना किया था। जब दो हफ्तों के अंदर इसका 46,000 हेक्टेयर का जंगल आग की भेंट चढ़ गया था।
मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले दो दशकों में जिस तरीके से यूरोप का तापमान बढ़ा है। उसके पीछे लोगों की पर्यावरण के प्रति बेपरवाही साथ ही प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का बेहताशा इस्तेमाल कहीं न कहीं मुसीबत बनता जा रहा है। अगर पृथ्वी का तापमान ऐसी ही बढ़ता रहा, तो उसके विनाशकारी प्रभाव दुनिया को परेशानी में डाल सकते हैं। कोरोना के समय में भी बेमौसम बाढ़ और तूफान में होती बढ़ोतरी ने दुनिया को जिस तरीके से सकते में डाला, वह एक चेतावनी तो थी ही साथ ही दुनिया को सजग होने का संदेश देती है कि अगर इंसानी जमात अभी भी नहीं संभली, तो फिर मौसम की भयंकर मार झेलने के लिए तैयार रहें।
इसलिए दुनिया के एक हिस्से में पर्यावरण का भारी नुकसान होना और पृथ्वी का लगातार गर्म जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। साथ ही इसको रोकना सबकी जिम्मेदारी है। अगर यह पृथ्वी इसी तरीके से गर्म होती रही, तो इसका असर एशिया ही नहीं बल्कि यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका इन सब पर पड़ना लगभग तय है। इस बार यूरोप में जिस तरीके से गर्मी पड़ी है, उसने यह साबित कर दिखाया है कि जलवायु परिवर्तन को रोकना कितना जरूरी है?