जनवाणी संवाददाता |
रूडकी: अजीम प्रेमजी फाऊंडेशन के ढंढेरा स्थित केन्द्र पर आयोजित कार्यशाला में पुतली कला की शिक्षण में उपयोगिता विषयक कार्यशाला का आयोजन किया
गया।
विश्व कला दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यशाला में कठपुतली बनाने एवं 1 से 8 तक के कक्षा-शिक्षण में बच्चों के साथ किस तरह इसका उपयोग कर सकते है ?इस बिंदुओं पर प्रशिक्षको व प्रतिभागियों ने विचार मंथन किया।
अजीम प्रेमजी फाऊंडेशन के तत्वाधान मे आयोजित कार्यशाला में पुतलीकला के गुर विशेषज्ञो ने दिये ।
दो दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन विशेषज्ञों ने के प्रकार व पुतलीकला बनाने के गुर सिखाए। एक्सपर्ट धर्मवीर सिंह ने शिक्षा में पुतलीकला की भूमिका के अंर्तगत परंपरागत पुतलीकला पर व्याख्यान प्रस्तुत किये।
उन्होंने प्राथमिक व जूनियर हाईस्कूल के प्रतिभागियों को पुतली कला के शिक्षण के गुर बताऐ। उन्होने कहा कि विश्व के अधिकांश भागों में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में पुतली कला ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह पुतली कला, साहित्य, चित्रकला, शिल्प कला, संगीत, नृत्य, नाटक जैसी सभी कला शैलियों के तत्वों को आत्मसात् करती है और छात्रों को रचनात्मक क्षमताओं को विकसित करने में सक्षम बनाती है।
भारत में पारंपरिक रूप से पुतली कला को भारतीय पुराणों और दंत कथाओं के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लोकप्रिय व सस्ते माध्यम के रूप में प्रयोग में लाया जाता रहा है।
छवि कटारिया ने कहा कि चूंकि पुतलीकला एक गतिशील कला शैली है, जो सभी आयु वर्गों के लिए उपयुक्त है, अत: इस संचार माध्यम को स्कूलों में शिक्षा प्रदान करने की सहायक सामग्री के रूप में चुना गया है। इस अवसर पर प्रतिभागियों ने पुतली निर्माण कर रोल प्ले का प्रदर्शन भी किया।
इस अवसर पर धर्मवीर सिंह, वीरेन्द्र छोकर, छवि कटारिया के निर्देशन में जारी कार्यशाला में नवाचारी गतिविधियों को बताया गया। संजय वत्स, नरेश राजा, देवेन्द्र चौधरी, आदर्शवीर भारद्वाज, राजकुमार सिंह,अरविंद कुमार नीलम रूहेला, मौ0 सादिक , ममतेश धीमान,नईम आदि शिक्षक मौजूद रहे।