- 12 घंटे बारूद के बीच समय बिताते थे कर्मचारी, दो शिफ्टों में चलता था काम
- घटना में फैक्ट्री का मालिक भी झुलसा, चल रहा किसी अनजान जगह इलाज
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: हापुड़ की जिस पटाखा फैक्ट्री में बारूद के ढेर में धमाका हुआ था उसका मालिक भी उसकी चपेट में आया है। हादसे की चपेट में डेढ़ दर्जन से अधिक मजदूर आए। जिनमें से एक दर्जन की मौत होने की पुष्टि हो चुकी है। जबकि 10 घायलों का इलाज चल रहा है। इनमें से मेरठ मेडिकल कॉलेज में 9 मजदूर भर्ती है। जिनमें से दो मजदूरों की हालत बेहद गंभीर है। हादसे के शिकार मजदूर ने पूरी घटना को सिलसिलेवार तरीके से बताया।
मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी में विशेष परिस्थितियों के लिए बने आइसोलेशन वार्ड में घटना में झुलसे 9 मरीजो को रखा गया है। इनमें से सात मरीजों की हालत अब खतरे से बाहर है जबकि दो घायलों के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। इन्हीं में से एक मरीज ने पूरी घटना के बारे में जानकारी दी। कर्मचारी बबलू ने बताया कि फैक्ट्री में पिछले दो महिनों से ही काम शुरू हुआ था।
फिलहाल केमिकल व बारूद को मिलाकर बच्चों की खिलौना पिस्तोल में चलने वाली छोटी मिसाइल बनाई जा रही थी। इन मिसाइलों को तैयार करने के आर्डर मिलने के बाद बल्क में बनाया जा रहा था। शनिवार की दोपहर ढाई बजे के करीब अचानक फैक्ट्री के तारों में शार्ट सर्किट हुआ और उसकी चिंगारी बारूद के ढेर पर जा गिरी। चिंगारी गिरते ही बारूद में आग लग गई। और पास में रखा केमिकल भी इसकी जद में आ गया।
एक मिनट से कम समय में हुआ धमाका
चश्मदीद बबलू ने बताया कि फैक्ट्री में रखे बारूद व केमिकल के आग पकड़ने के बाद एक मिनट के भीतर ही भीषण धमाका हो गया। किसी भी कर्मचारी को संभलने का भी मौैका नहीं मिला। हर तरफ आग की लपटें तांडव मचा रही थी।
आग ने फैक्ट्री में मौजूद हर व्यक्ति व सामान को अपने आगोश में ले लिया था। धमाका होने से फैक्ट्री की एक दीवार गिर गई जिससे मजदूरों को बाहर निकलने का मौका मिल गया। नहीं तो जितने भी मजदूर फैक्ट्री में मौजूद थे सभी मारे जाते।
घटना के समय मालिक भी था मौजूद
बबलू ने बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि जिस समय धमाका हुआ उस समय पूरी फैक्ट्री में 40 से 45 मजदूरों के साथ मालिक वसीम भी मौजूद था। मजदूरों के साथ वह भी आग की चपेट में आकर झुलसा है, लेकिन वह इस समय कहां है इसकी जानकारी नहीं है। जबकि कुछ मजदूरों का भी पता नहीं है कि वह कहां है। बबलू का भतीजा नूरहसन भी उस समय फैक्ट्री में मौजूद था। जिसका कुछ पता नहीं चल रहा है।
दीपावली की चल रही थी तैयारी
चार महीने बाद दीपावली का त्योहार है, फैक्ट्री में इसी को लेकर बारूद से विस्फोटक तैयार किए जा रहे थे। बड़ी संख्या में आर्डर मिलने के बाद फैक्ट्री में दिन-रात दो शिफ्टों में काम चल रहा था। जिस दौरान सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक पहली शिफ्ट व रात आठ बजे से सुबह आठ बजे तक दूसरी शिफ्ट चल रही थी। एक बार फैक्ट्री के अंदर जाने के बाद शिफ्ट खत्म होेने पर ही बाहर निकला जाता था।
बंधकों की तरह रखा जाता था
कर्मचारियों को फैक्ट्री में अंदर जाने के बाद बाहर से गेट में ताला लगा दिया जाता था। इस बीच किसी को भी शिफ्ट समाप्त होने तक बाहर निकलने की इजाजत नहीं होती थी। इसलिए मजदूर खाना भी अपने साथ ही लेकर आते थे। गेट बंद होने के बाद मजदूरों का बाहरी दुनिया से संपर्क बिल्कुल खत्म हो जाता था। 10 हजार की तनख्वाह बबलू को मिलती थी। जिसके बदले उससे 12 घंटे तक बंधकों की तरह रखकर काम लिया जाता था।