जनवाणी डेस्क |
नई दिल्ली: अब से 50 बरस पहले, इसी दिन हमारा ही हिस्सा रहे एक नवगठित मुल्क (पाकिस्तान) ने हवाई हमला कर हिंदुस्तान के खिलाफ 1971 की जंग छेड़ी थी। तब हिंदुस्तान के दोनों ओर पाकिस्तान थे। मुख्यभूमि- पश्चिमी पाकिस्तान था और दूसरा बंगाल से सटा- पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश)।
असल में पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान में दमनकारी नीतियों का सहारा लिया। वहां भारी नरसंहार हुआ और महिलाओं को हवस का शिकार बनाया गया। लोकतंत्र के बजाए जबरन सैन्य-सत्ता थोपी जा रही थी। तरह-तरह के अत्याचारों से बचने के लिए हजारों बंगाली भागकर हिंदुस्तान में शरण लेने लगे। उस दौरान मुख्य पाकिस्तान की हुकूमत को लगा कि भारत उनके साथ है। ऐसे में उन्होंने हिंदुस्तान के खिलाफ ऐलान-ए-जंग छेड़ दी, 3 दिसंबर 1971 को।
‘ऑपरेशन चंगेज खान’ ढाका के आस-पास पुरजोर विरोध होने पर पाकिस्तानी हुकूमत ने हजारों सैनिक प्रदर्शनकारियों को कुचलने भेजे। ऐसे में हिंदुस्तान ने ऐतराज जताया। पाकिस्तान ने फिर हिंदुस्तान के खिलाफ अपना एक नापाक मिशन, जिसे- ‘ऑपरेशन चंगेज खान’ नाम दिया। उसे लॉन्च कर दिया। तब समय था- शाम 5:30 बजे, जब पाकिस्तानी हुकूमत ने हमले का हुक्म जारी किया।
फिर उनके लड़ाकू विमानों का पहला हमला 5:45 बजे अमृतसर युद्धक ठिकाने पर, दूसरा शाम 5:50 बजे पठानकोट, श्रीनगर और अवंतीपुर पर हुआ। उसके ठीक 3 मिनट बाद शाम 5:53 बजे फरीदकोट पर भी बम गिराए गए। हालांकि, उनके उस हमले में हमारे पी-35 राडार ही नष्ट हो सके।
उस दिन कलकत्ता में जनसभा संबोधित कर रही थीं इंदिरा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस दिन की शाम को कलकत्ता में एक जनसभा संबोधित कर रही थीं। उनका भाषण चल ही रहा था, कि कुछ अधिकारी तेजी से दौड़ते हुए पास पहुंचे। उन्होंने झट से एक पर्ची इंदिरा को थमाई और उनके कान में कुछ बोला। उसके बाद इंदिरा जनसभा को बीच में छोड़कर वापस दिल्ली रवाना हुईं।
हालांकि, जब तक उनका विमान दिल्ली पहुंचता, तब-तक राजधानी दिल्ली में पूरी तरह से ब्लैक आउट हो चुका था। यूं तो इंदिरा को शत्रु के इरादों की पहले ही भनक लग गई थी और उन्होंने सैम मानेकशॉ (फर्स्ट फील्ड मार्शल) से तैयारियां करने के कहा था। तब सैम बोले- तैयारियां में कुछ वक्त लगेगा। रात 9 बजे हुआ हिंदुस्तानी वायुसेना का जवाबी हमला इंदिरा से आदेश मिलते ही पाकिस्तान पर पहला जवाबी हमला 3 दिसंबर की रात को ही किया गया।
तब रात के 9 बज रहे थे, जब हिंदुस्तानी वायुसेना के विमानों ने पाकिस्तान का रूख किया। उसके 7 एयरबेस तबाह किए गए। उसके अगले कुछ ही दिनों में दुश्मन के खिलाफ जंग तेज होती चली गई। यह जंग 13 दिन चली थी। 16 दिसंबर 1971 के दिन दुनिया का सबसे बड़ा सरेंडर कराया गया।
और, जीत का स्वर्णिम इतिहास लिख गया। उस दिन पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93 हजार से ज्यादा सैनिकों के साथ सरेंडर के दस्तावेज पर हिंदुस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष साइन किए। पाकिस्तान की कैद से आजाद हुए 20 भारतीय मछुआरे, एक ने कहा- 4 साल बाद छूटा हूं, पानी के रास्ते गलती हुई थी इंदिरा ने कहा- ढाका अब एक आजाद देश की राजधानी जनरल नियाजी ने 16 दिसंबर की शाम करीब 5 बजे सरेंडर के वक्त अपने बिल्ले उतार दिए थे और रिवॉल्वर भी सामने रख दी थी।
उसी समय हिंदुस्तान के जनरल सैम मानिक्शॉ ने इंदिरा गांधी को फोन कर पाकिस्तान पर फतेह हासिल कर लेने की सूचना दी। जिसके बाद हिंदुस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऐलान किया- “ढाका अब एक आजाद देश की राजधानी है।” पाकिस्तान से चीन जा रहे जहाज में भरा था रेडियोएक्टिव मटेरियल, गुजरात में जब्त हुआ ऐसे हैं हमारे वीरों के शौर्य, बहादुरी, मुल्कों की विजय-पराजय, नेकी-बलात्कार, शत्रुता-मित्रता के ढेरों किस्से।
सच्चे किस्से। अब तक जन-मन में हैं। उन 13 दिनों की, हम सब ने भी अब तक न जाने कितनी कहानियां बड़ों से सुनीं, कहां-कब पढ़ीं और रिटायर्ड आॅफिसर-सोल्जर्स से जानीं। ये कुछ ऐसे ही समय में याद आती हैं..जब युद्ध की बरसी आती है।
1950 में ही पड़ गई थी बंटवारे की नींव
बात जब भी भारत-पाकिस्तान के बीच दूसरे युद्ध और बांग्लादेश के जन्म की होती है तो सबसे पहले साल 1971 का जिक्र होता है, लेकिन यह बात बेहद कम ही लोग जानते हैं कि बांग्लादेश के गठन की नींव एक तरह से भारत-पाकिस्तान विभाजन के तुरंत बाद ही पड़ने लगी थी। बंगाली अस्मिता और उसकी पहचान को लेकर तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में जातीय संघर्ष की शुरुआत हो गई थी, लेकिन असल शुरुआत 1950 में हुई थी।
दरअसल, यह वही साल था, जब भारत ने अपना संविधान लागू कर दिया था और उसकी देखादेखी पाकिस्तान भी इसकी तैयारी में जुट गया था। उसी दौरान पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले बंगालियों ने बांग्ला भाषा को उचित प्रोत्साहन देने की मांग करते हुए आंदोलन शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद यह आंदोलन भले ही खत्म हो गया, लेकिन इसमें उठाई गईं मांगें धीरे-धीरे परवान चढ़ती रहीं।
लगातार बिगड़ते रहे पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के रिश्ते
भारत-पाक विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में रहने वाले लोगों के बीच मनमुटाव बढ़ रहा था। यह तनातनी सिर्फ अलग-अलग क्षेत्र में रहने की ही नहीं, बल्कि भाषा, संस्कृति, रहन-सहन और विचारों के आधार पर भी थी। ऐसे में शेख मुजीबुर्रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान की आजादी के लिए संघर्ष शुरू कर दिया था और इसके लिए उन्होंने छह सूत्रीय कार्यक्रम का एलान भी किया था। इन सभी कदमों की वजह से वह और अन्य कई बंगाली नेता पाकिस्तान के निशाने पर आ गए थे। पाकिस्तान ने दमन नीति के तहत शेख मुजीबुर्रहमान और अन्य लोगों पर मुकदमा चलाया, लेकिन यह चाल उस पर भारी पड़ गई।
1970 के आम चुनाव ने की आखिरी चोट
1950 में शुरू हुए आंदोलन को पश्चिमी पाकिस्तान ने भले ही दबा दिया, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले बंगालियों की मांगों का हल नहीं निकाल पाया। यही वजह रही कि तनातनी का यह दौर धीरे-धीरे 1970 तक पहुंच चुका था। साल खत्म होने की ओर था और पाकिस्तान में आम चुनाव की शुरुआत हो गई थी।
उस दौर में शेख मुजीबुर्रहमान ने अपनी लोकप्रियता साबित की और उनकी राजनीतिक पार्टी पूर्वी पाकिस्तानी अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान की 169 में से 167 सीटों पर जीत हासिल की। इससे मुजीबुर्रहमान के पास 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में सरकार बनाने के लिए जबर्दस्त बहुमत था, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान पर शासन कर रहे लोगों को सियासत में उनका दखल मंजूर नहीं था। इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की नाराजगी बढ़ गई और उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया, जिसे दबाने के लिए पूर्वी पाकिस्तान में सेना भेज दी गई।
…और अस्तित्व में आ गया बांग्लादेश
पूर्वी पाकिस्तान में शुरू हुआ पाकिस्तानी सेना का अत्याचार लगातार बढ़ता जा रहा था। मार्च 1971 में तो पाकिस्तानी सेना ने बर्बरता की हर हद पार कर दी। पूर्वी पाकिस्तान की आजादी की मांग करने वाले लोगों की बेरहमी से हत्याएं की गईं। महिलाओं से दुष्कर्म जैसी घटनाएं आम हो गईं। ऐसे में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या बढ़ने लगी और भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने के दबाव में भी इजाफा हो गया।
ऐसे में मार्च 1971 के अंत में भारत सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान की मुक्तिवाहिनी की मदद करने का फैसला कर लिया। दरअसल, मुक्तिवाहिनी पूर्वी पाकिस्तान के लोगों द्वारा तैयार की गई सेना थी, जिसका मकसद पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराना था। 31 मार्च, 1971 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में इस संबंध में अहम एलान किया। 29 जुलाई, 1971 को भारतीय संसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़ाकों की मदद करने की घोषणा की गई। हालांकि, इसके बाद भी कई महीने तक दोनों देशों के बीच शीत युद्ध चलता रहा।
तीन दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने भारत के कई शहरों पर हमला किया तो भारत को भी युद्ध का एलान करना पड़ा। महज 13 दिन बाद यानी 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के साथ ही दुनिया के नक्शे पर नया देश बांग्लादेश बन गया। हालांकि, बांग्लादेश आज भी 26 मार्च को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है, क्योंकि 1971 में इसी तारीख को शेख मुजीबुर्रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान की आजादी का एलान किया था।
भारत ने तय किए कई कूटनीतिक आयाम
1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुई इस जंग में भारत ने कई कूटनीतिक आयाम भी तय किए। इनकी मदद से भारत ने सिर्फ पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान के जुल्म से आजाद ही नहीं कराया, बल्कि दुनिया से अपने फैसलों की धाक भी मनवाई। दिसंबर 1971 में पाकिस्तान से युद्ध शुरू होने से पहले दोनों देशों के बीच शीत युद्ध जारी था। उस दौरान अक्टूबर-नवंबर के महीने में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यूरोप व अमेरिका का दौरा किया था। साथ ही, दुनिया के सामने भारत के नजरिए को पेश किया।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि उस दौर में अमेरिका पाकिस्तान का समर्थन करके चीन से अपने रिश्ते सुधारना चाहता था। इस वजह से उसने भारत की बात सुनने से साफ इनकार कर दिया। ऐसे में भारत ने सोवियत संघ से सहयोग संधि की, जिसका फायदा उसे 1971 की जंग में बखूबी मिला। दरअसल, भारत-पाक युद्ध के दौरान एक वक्त पर अमेरिका पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आ गया था।
उसने जापान के करीब तैनात अपने नौसेना के सातवें बेड़े को पाकिस्तान की मदद के लिए बंगाल की खाड़ी की ओर भेज दिया था। ऐसे में रूस ने भारत की मदद के लिए परमाणु क्षमता से लैस अपनी पनडुब्बी और विध्वंसक जहाजों को प्रशांत महासागर से हिंद महासागर की ओर भेज दिया। ऐसे में अमेरिकी सेना पाकिस्तान की मदद के लिए नहीं पहुंच सकीं और 1971 की जंग का परिणाम भारत के पक्ष में आ गया।