Wednesday, June 18, 2025
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जलवायु परिवर्तन का दूध उत्पादन पर बुरा असर

Samvad 1


09 6यह जानकर हैरानी होगी कि लगातार भीषण गर्मी और सूखे की वजह से दुनिया के कई देशों में दूध उत्पादन में गिरावट आ रही है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, आॅस्ट्रेलिया, अमेरिका सहित कई देशों में दूध का उत्पादन घटा है। इससे आने वाले समय में मक्खन से लेकर बेबी मिल्क पाउडर तक की कमी होने की आशंका है। ऐसे में यह बेहद चिंताजनक है। रिपोर्ट की मानें तो आॅस्ट्रेलिया में वर्षों से भीषण गर्मी से परेशान हो रहे कई किसानों ने दूध उत्पादन का काम छोड़ दिया है। इसकी वजह से वहां इस साल दूध उत्पादन करीब 5 लाख मैट्रिक टन घट गया। यहां दूध उत्पादन में तेजी से गिरावट आई है। वैश्विक डेयरी व्यापार में इसकी हिस्सेदारी 1990 में 16 फीसदी थी, जो गिरकर 2018 में लगभग 6 फीसदी रह गई। यहां 1980 से 2020 तक डेरी फॉर्म की संख्या लगभग एक चौथाई रह गई। वहीं, फ्रांस में सूखे के कारण गायों को भरपूर खाने को नहीं मिल रहा है। ऐसे में उत्पादकों को एक प्रकार का उच्च गुणवत्ता वाला पनीर बनाना बंद करना पड़ा। साथ ही, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सदी के अंत तक अकेले अमेरिका में डेयरी उद्योग को प्रतिवर्ष 2.2 अरब डॉलर का नुकसान होगा। भारत में भी गायें गर्मी से बेहाल हैं। गौरतलब है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से नुकसान बढ़ा है। जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया भर में खाद्य असुरक्षा बढ़ने के आसार है। इससे बचने के लिए सख्त कदम उठाए जाने निहायत तौर पर जरूरी है।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है कि किसान अपनी गायों को गर्मी और सूखे के कहर से बचाने के लिए नई नई तकनीक अपना रहे हैं।? दुनिया भर में गर्मी और सूखे की स्थिति से बचने के लिए छोटे किसान एसी और कूलर लगाने पर विचार कर रहे हैं। कैलिफोर्निया के टिपटन में 45 साल से मवेशी पाल रहे टॉम बारसेलोस के खेत में शीतलन प्रणाली है। खेत में पंखा और धुंध मशीन भी लगी हुई है।

इसके बावजूद रात गर्म होने पर उत्पादन प्रभावित होता है। बारसेलोस का कहना है कि शाम को तापमान उच्च रहता है तो गाय 20 फीसदी तक कम दूध देती है। वहीं, हमारे देश में ही गुजरात निवासी शरद पांड्या और उनके भाई के पास 40 से अधिक गायें हैं। वे अपने मवेशियों को गर्मी से बचाने के लिए उन्हें फोगर सिस्टम के साथ एक शेड में रखते हैं, जो पंप के जरिए पानी को धुंध में बदल देता है। इसके बाद भी दूध उत्पादन में 30 फीसदी से अधिक गिरावट आई। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि महंगे प्रयासों के बावजूद भी किसान मवेशियों को गर्मी से नहीं बचा पा रहे हैं।

नेशनल लाइब्रेरी आॅफ मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में यह सामने आया है कि गर्मी बढ़ने की वजह से पशु चारा खाना कम कर देते हैं। तापमान में 1 डिग्री की बढ़ोतरी से पशु 850 ग्राम कम खुराक लेता है। इसके पीछे की मुख्य वजह टिशू हाइपरथर्मो यानी ऊतकों का ज्यादा गर्म हो जाना है। यह सही है कि पिछले दो दशकों से जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया भर में सुगबुगाहट का दौर चल रहा है। जहां जलवायु से होने वाले परिवर्तनों ने आम से लेकर खास मुल्कों की चिंताओं में बेतहाशा इजाफा किया है। हालांकि विगत वर्षों में जलवायु परिवर्तन पर कई मुल्कों ने एक साथ आकर अनेक कदम उठाए हैं।

इसके बावजूद हम जलवायु परिवर्तनों को रोकने में नाकामयाब रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट की मानें तो विश्व में प्रतिदिन औसतन 50 प्रकार के जीवों का विनाश हो रहा है जो वास्तव में आनुवंशिक विनाश है। आॅस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर प्रवाल जीवों के असामयिक विनाश का मुख्य कारण भी ओजोन परत में ह्रास को माना जा रहा है। जैसा कि ओजोन परत में ह्रास के लिए ग्रीन हाउस गैसें जिम्मेवार है।

ग्रीन हाउस गैसों में तीव्र वृद्धि के परिणामस्वरूप भूमंडलीय ताप में वृद्धि हुई है। भूमंडलीय ताप के लिए मुख्यत: कार्बन डाई आॅक्साइड उत्तरदायी है। एक अनुमान के मुताबिक, वायुमंडल में कार्बन डाई आॅक्साइड की मात्रा में लगातार इजाफा होता रहा तो 1900 ईस्वी की तुलना में 2030 में विश्व के तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में यह वाकई बेहद चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि हमें जलवायु परिवर्तनों को रोकने के लिए भरसक प्रयास करने होंगे। अगर समय रहते जलवायु परिवर्तनों को नहीं रोका जा सका तो संभव है कि निकट भविष्य में खाद्य असुरक्षा जैसे गंभीर हालातों से गुजरना पड़े। ग्रीन हाउस गैसों का स्तर कम करने और उत्सर्जन मानक निर्धारित करने की दिशा में क्योटो सम्मेलन-1997 सराहनीय कदम रहा। लेकिन पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सतत प्रयासों की सख्त दरकार हैं।


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