सआदत मंटो ने अपने जीवन में ऐसा क्या देखा कि वो एक इतना बड़ा लेखक बन गया। जबरदस्त बदनामियों के बावजूद उसके हाथ की कलम ने सच्चाई का साथ नहीं छोड़ा। साहित्य की आग में उसने अपना सब कुछ झोंक दिया लेकिन उफ तक नहीं की। अपने आप को उसने नशे में डूबो दिया लेकिन किसी बहस से वो कभी नहीं डरा। मंटो इसलिए बदनाम था कि वह समाज को वो सब कुछ खुले आम दिखाना चाहता था जिसे देखकर भी लोग आंख बंद कर लेते हैं। समाज केवल औपचारिकता निभाना जानता है, जबकि मंटो सब कुछ जानने के बाद भी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाता है। उसके अंदर एक ख़्वाहिश थी कि इंसान को सिर्फ इंसान माना जाए। 1931 में हिंदू सभा कॉलेज में प्रवेश के बाद उसके मन में इच्छा जागी कि वह भी ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाए और जुलूस में भी सबसे आगे जाकर खड़ा हो। लेकिन वालिद साहब की इतनी सख्ती थी कि वो घर के बाहर पांव भी नहीं रख सकता था। वह अमृतसर में रहता था और सात साल की उम्र में ही जलियांवाला बाग के नरसंहार की छाप उसके मस्तिष्क पर गहरे तक पड़ गई थी जिसे वह ता-उम्र नहीं भूला। आखिर वो अफसाने लिखने लगा और इसी नरसंहार पर उसने सबसे पहले ‘तमाशा’ शीर्षक से अपनी कलम चलाई। वह साम्यवादी साहित्य से प्रभावित था और उसी प्रकार के साहित्य पढ़ने लगा था। फिर उसने कुछ रूसी और कुछ फ्रांसीसी साहित्य भी पढ़ा और कुछ का उर्दू में अनुवाद भी किया। आगे चलकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया और उर्दू में कहानियां लिखने लगा। मंटो अलीगढ़ में ज्यादा रुका नहीं और वह वापस अमृतसर और उसके बाद लाहौर चला गया। लाहौर में भी उसे सुकून नहीं मिला तो फिर वह बंबई पहुंच गया। वहां पर कुछ पत्रिकाओं का संपादन किया और कुछ फिल्मकारों से भी वह जुड़ा रहा। चार एक बरस के बाद 1941 में वह दिल्ली के आॅल इंडिया रेडियो में काम करने लगा। अब वह बहुत ज्यादा लिखने लगा था और उसके अफसाने छपने भी लगे थे। रेडियो नाटक और अन्य विषयों पर उसने अपनी कलम चलाई। आखिर 1942 के बाद के महीनों में वह वापस बंबई आ गया और आजादी के बाद जनवरी 1948 में उसने हिंदुस्तान छोड़ दिया। अब वह पाकिस्तान में रहने लगा था।
उसकी कहानियों पर चर्चा करें तो बहुत से पन्ने रंगे जा सकते हैं। फिर भी महत्वपूर्ण यह है कि मंटो ने 19 साल लिखा और इस दौरान उसने 230 कहानियां, 67 रेडियो नाटक, 22 शब्दचित्र और 70 अन्य विषयों पर लेख लिखे। उसने हर तरह की कहानी लिखी। जो उसने देखा वही लिखा। वह समाज की गंदगी को बाहर लाने को आतुर था। कुछ सरमायेदार उसकी प्रसिद्धि से जलन करने लगे थे। एक के बाद एक उसकी पांच कहानियों पर मुकदमे चले लेकिन उसे अपने लिखे पर कोई पछतावा नहीं था। उसकी ‘काली सलवार’, ‘धुआं’, ‘बू’, ‘ठंडा गोश्त’, ‘ऊपर, नीचे और दरम्यां’ कहानियां मुकदमे का शिकार हुर्इं, लेकिन उसके बाद मंटो ने जो लिखा, वो छपा। उसकी कहानियों को अखबार और प्रकाशक हाथोहाथ लेते थे। उसकी कहानियों में विभाजन का दर्द था। आंखों देखे दंगे उसकी कलम में उतर आए थे। विस्थापित हो रहे परिवारों की तकलीफें उसकी कलम उगलती रही। बहुत बार उसने अपने सिर पर नाचती मौत देखी और न जाने मोहल्ले के कितने परिवारों का कत्लेआम देखा। अपने बच्चों को लेकर आखिर वह लाहौर आ गया। लेकिन दंगे, विभाजन, सांप्रदायिकता वो सब कुछ जो उसने देखा अपने अफसानों में बयां किया। मंटो बंबई के रेडलाइट एरिया मे ही रहता था इसलिए उसकी अधिकांश कहानियों में कोई न कोई तवायफ उसकी पात्र थी। उसके अफसानों में जिस्म बेचने वाली औरतों और बार में काम करने वाली नवयौवनाओं के किस्से रहते थे। मंटो उनकी मजबूरियों के बारे में लिखता था और साथ ही समाज को सचेत करता था कि इन सब मजबूरियों के जिम्मेदार भी हम लोग ही हैं।
मंटो चूंकि बंबई में अधिक रहा तो उस समय के नामी-गिरामी लोग जैसे नूरजहां, नौशाद, इस्मत चुगताई, श्याम, अशोक कुमार, के आसिफ और साहित्यकारों में ‘इप्टा’ से जुड़े अनेक साहित्यकारों से उसका परिचय रहा। मंटो अपने जीवन में मशहूर लेखक अली सरदार जाफरी से बेहद प्रभावित थे।
उनकी कहानियों और जीवनी पर आधारित फिल्म ‘मंटो’ भारत में 21 सितंबर 2018 को प्रदर्शित हुई थी। नंदिता दास के निर्देशन में बनी इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने शानदार अभिनय किया। ‘मंटो’ में इला अरुण, जावेद अख्तर, ऋषि कपूर, परेश रावल, रणवीर शौरी, पूरब कोहली, चन्दन रॉय सानयाल, दिव्य दत्ता, राजश्री देशपांडे, रसिका दुग्गल, विनोद नागपाल, मधुरजीत सर्घी, नीरज सूद, गुरदास मान, इनामुल्हक, फेरेना वजीर, अश्वथ भट्ट, तिल्लोतामा क्षोम, ताहिर भसीन, शशांक अरोरा, चितरंजन त्रिपाठी जैसे कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया। इस फिल्म में फैज अहमद फैज की गजल ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे…….’ भी शामिल है। मंटो पूरी तरह न भारत का हो सका और न पाकिस्तान का। मंटो को धर्म, जाति, जन्म स्थान, संपत्ति जैसी बातें घटिया लगती थीं और इन्हीं के विरोध में उसने लिखा। मंटो ने समाज को आईना दिखाया। कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसकी नागरिकता कौन सी है, वो कहां पैदा हुआ और कहां उसने अंतिम सांस ली। उसके अफसानों ंको केवल भारत और पाकिस्तान ही नहीं, पूरे विश्व में पढ़ा जाता है। उसका साहित्य सभी लेखकों के लिए एक मिसाल के तौर पर देखा जाता है।