Wednesday, August 13, 2025
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Jaya Ekadashi 2025: जया एकादशी के दिन करें विष्णु चालीसा का पाठ, होगा हर समस्या का समाधान

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। सनातन धर्म में एकादशी के व्रत को बहुत ही खास माना जाता है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। यह व्रत हर महीने की शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखने की परंपरा है और साथ ही माता लक्ष्मी की विशेष आराधना भी की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है यदि इस दिन सच्चे भाव से भगवान विष्णु की पूजा और व्रत रखा जाए तो साधक को मृत्यु के बाद भूत-प्रेत नहीं बनना पड़ता है। इस साल 8 फरवरी को जया एकादशी है, इस दिन मृगशिर्षा नक्षत्र और वैधृति योग बन रहा है। इस योग में विष्णु चालीसा का पाठ करना लाभकारी हो सकता है, इससे जीवन में सकारात्मकता का वास होता। ऐसे में आइए इस चालीसा के बारे में जानते हैं…..

विष्णु चालीसा

दोहा

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

चौपाई

नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥

शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥

आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥

असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥

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