Saturday, May 17, 2025
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अपशब्द अशांति पैदा करते हैं

 

Sanskar 5


Hirday Narayan Dixit 2अशांत चित्त रचनात्मक नही होता। शांत चित्त में सृजन के फूल खिलते हैंैं। लेकिन शांति व्यक्तिगत प्रयासों का ही परिणाम नही होती। अशांति के कारण संसार में होते हैं। वे व्यक्ति के अंत:करण को प्रभावित करते हैं। शांत वातायन आनंदित करते हैं। वन उपवन शांति देते हैं। जल आपूरित वेगवान नदियां शांति देती हैं। तारों भरा आकाश सुखद अनुभूति देता है। अशांत अंतरिक्ष भी हमारे भीतर की शांती छीन लेता है।

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हम सब पृथ्वी ग्रह पर हैं। पूर्वजो ने पृथ्वी को माता कहा है। पृथ्वी की अशांति हम सबको अशांत करती है। पूर्वज सर्वत्र शांति चाहते थे। शांति संपूर्ण मानवता की प्यास है। अशांत चित्त विध्वंसक होता है और शांतिपूर्ण चित्त मे सृजन लहकते हैं। यजूर्वेद के एक मंत्र (36.17) मे अस्तित्व के शांति के सभी घटकों से शांति की प्रार्थना है। यहां घुलोक, अंतरिक्ष और पृथ्वी से शांति की भावुक स्तुति है। कहते हैं, ‘औषधियां वनस्पतियां शांति दें। विश्व के सभी देवता शांति दें। ब्रहम शांति दें। शांति भी हम सबको शांति दें।’ शांति अनिवार्य है। शांति विधायी उपलब्धि है। यह अशांति का अभाव नही है। शांत चित्त में काव्य उगते हैं। कर्म संकल्प पूरे करने की ऊर्जा जागती है। शांति उपास्य है।

विश्व अशांत है। राष्ट्र राज्य तनावग्रस्त है। हमारा पड़ोसी पाकिस्तान अशांत है, श्रीलंका अशांत है। चीन अशांत है। यह अशांति का जन्मदाता है। भारत-चीन सीमा अशांत है। रूस अशांत है। यह यूक्रेन से युद्धरत है। पड़ोसी नाटो देश अशांत है। अमेरिका अशांत है। स्थिति भयावह है। परमाणु युद्ध की आशंका है।तीसरे विश्व युद्ध का खतरा है। युद्ध मानव सभ्यता का सबसे मूर्खतापूर्ण कार्य है। यह सभ्यता के पिछड़ेपन का साक्ष्य है।

मतभेद सुलझाने के अनेक विकल्प है। परस्पर संवाद सबसे बड़ा विकल्प है। मध्यस्थों के साथ बैठकर वार्ता से ही मतभेद दूर करना सर्वोत्तम मार्ग है। लेकिन अशांत विश्व में संवाद की वरीयता नहीं। सम्प्रति अशांति सत्य है। हिंसा और रक्तपात के आधुनिक हथियार बढ़ रहे है। नई मिसाइलें तैयार है। भारत के अलावा तमाम देशों के शासक युद्ध और धमकी की भाषा बोल रहे हैं। शासकों के मन अशांत है।मानव मन उद्विग्न है। निद्रा घटी है। अनिद्रा के रोगी बढ़े हैं। पृथ्वी की अशांति ने आकाश को भी बमों ,गोली के धुवें से भर दिया है। आकाश अशांत है और जल समुद्र भी।

अशांति के कारण ढेर सारी पृथ्वी घायल है। पर्यावरण का नाश है। हिंसा है। उपद्रव है। वन कट रहे है। वनस्पतियां नष्ट हो रही हैं। काल निर्मम होता है लेकिन प्रशांत चित्त में समय दुखी नहीं करता। यजुर्वेद के ऋषि की प्रार्थना है, ‘जहां कभी न क्षीण होने वाली मधुधाराएं प्रवाहमान है, हमें वहां ले चलो।’ मधुधाराओं की अनुभूति वाली चित्त दशा शांत अंत:करण में ही प्राप्त होती है। अशांति सर्वदा दुखदाई है। इसका प्रमुख कारण भय है। भयभीत चित्त अशांत होते हैं। मानसिक अपराध भी अशांत करते है। मन में गलत काम का चिंतन भी अशांत कार्य है।

अथर्ववेद (19 .9 ) में कहते हैं, ‘मन से उत्पन्न दुष्कर्म के प्रभाव वाली अशांति हमसे दूर रहें। मन के साथ 5 ज्ञाननेंद्रियों से उत्पन्न अपराधजनित अशांति भी शांतिप्रद हो।’ उल्कापात और भूकंप के बारे में कहते हैं, ‘कंपन से हिलने वाली धरती भी हमे शांति दे।’ अपशब्द अशांति पैदा करते हैं। संप्रति दसो दिशाओं में शब्द अराजकता है। शब्द संयम टूट रहे हैं।

सोशल मीडिया पर करोड़ों शब्दों की महाभीड़ है। शब्द अपशब्द हो रहे हैं। वाणी की अधिष्ठात्री सरस्वती हैं। उनसे प्रार्थना है, ‘हमारे द्वारा बोले गए अपशब्दों से हमारी रक्षा करें। शब्द शांति दें।’ अशांत चित्त कर्तव्य पालन में बाधा है। कर्तव्यपालन के लिए शांत चित्त चाहिए।समाज में भी शांति चाहिए।

वनस्पतियां पृथ्वी का आभूषण है। हमारा उनका रिश्ता स्वाभाविक है। चरक ने बताया है सभी वनस्पतियां औषधियां हैं। तुलसी की पूजा होती हैं। यह तमाम रोगों की औषधि है। आंवला की भी पूजा होती है। आयुर्वेद में यह शक्तिवर्धक रसायन है। पीपल पूजनीय है। पूर्वजों ने इसे अश्वथ कहा है। श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता में बताया कि मैं वृक्षों में अश्वथ हूं। वैज्ञानिक भी इसकी महत्ता स्वीकार करते हैं। बरगद की पूजा होती है। गिलोय के औषधिगुण़ मान्य है। उसे अमृता कहते हैं। नीम के औषधिगुण़ विख्यात हैं।

बचपन में नीम, तुलसी, बरगद , पीपल, और आंवले के प्रति हमारे संरक्षक प्रेमभाव सिखाते थे। वनस्पतियां हमारी परिजन थी। पेड़ लगाना धर्म था। वनस्पतियां, वन उपवन हमारे आत्मीय थे। ग्रीष्म ऋतु में वे शीतल करते थे। इनका संरक्षण संवर्धन राष्ट्रीय कर्तव्य था। यह भारतीय सभ्यता का मार्ग था। आधुनिक औद्योगिक सभ्यता के प्रभाव में अंधाधुंध वन कटान चल रही है। पक्षी अपना घर घोसला कहा बनाएं। गौरैया अब नहीं दिखाई पड़ती। कोयल अपने गीत कहां गाए? तमाम प्रजातियां नष्ट हो रही हैं। प्रकृति का छंद टूट रहा है। अशांति के उपकरण बढ़े हैं। शांति की प्यास बढ़ी है।

अशांति अंतर्राष्ट्रीय समस्या है। अशांत होने के कारण लोगों में अवसाद बढ़ा है। अवसादग्रस्त मनुष्य अपने कर्तव्यपालन नहीं कर पाते। उनकी दिनचर्या भी कुप्रभावित होती है। अवसाद आधुनिक काल की नई बीमारी है। इसके प्रभाव में अन्य बीमारियां भी घेर लेती हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में अवसाद का उल्लेख नहीं है। विसाद का उल्लेख है। अर्जुन को महाभारत युद्ध में विसाद हुआ था। कर्तव्य और अकर्तव्य के मध्य सोचने से विषाद बढ़ता है। लेकिन अवसाद परिवार, समाज और विश्व के प्रति अविश्वास से ज्यादा होता है। इससे आत्मविश्वास कमजोर होता है। हमारी दिनचर्या में शुभ और अशुभ घटना स्वाभाविक है। मनचाहा कर्मफल नहीं मिलता। तो भी अवसाद बढ़ता है।

इच्छानुसार कर्मफल न मिलने या मिलने में अस्तित्व के अनेक घटक हिस्सा लेते हैं। अवसादग्रस्त व्यक्ति इच्छानुसार कर्मफल ना पाकर गहन रूप में दुखी हो जाता है। चित्त शांत होता है। अस्तित्व पर विश्वास करने और अपने कर्त्व्य न पालन करने से शांति बढ़ती है। चित्त की वृत्तियां भी दु:ख या सुख देती हैं। पतंजलि ने चित्त की पांच वृत्तियां गिनाई हैं। उन्होंने योग सूत्र में बताया है कि वे सुख और दु:ख कि कारक हैं। चित्त वृत्तियां स्थाई भाव नहीं हैं। योग साधना से उनकी चंचलता समाप्त की जा सकती है। चित्त प्रशांत बनता है।

बुद्धि विवेक बनती है। व्यक्ति के अंत:करण में नए सकारात्मक विचार आते हैं। व्यक्ति तमाम चुनौतियों से जूझने के लिए तत्पर होता है। शांति की प्राप्ति अपरिहार्य है। जीवन संग्राम में शांति ही सबसे बड़ा बल है। संप्रति विश्व में अशांति का वातावरण है। इसे दूर करना अनिवार्य है। हमारे पूर्वज आशा और धीरज के प्रति श्रद्धावान होकर शांति को उपलब्ध थे। इसी में शांति की प्रतिभूति है। इसी रास्ते विषाद और अवसाद प्रसाद बनते हैं।

हृदयनारायण दीक्षित


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