एक मछुआरा समुद्र के तट पर बैठकर मछलियां पकड़ता और अपनी जीविका अर्जित करता। वह अपने काम में व्यस्त रहता एक दिन उसके वणिक मित्र ने पूछा, मित्र, तुम्हारे पिता हैं? मछुआरा बोला नहीं, उन्हें समुद्र की एक बड़ी मछली निगल गई। वणिक ने दुख प्रकट किया। वणिक ने पूछा, और, तुम्हारा भाई? मछुआरे ने उत्तर दिया, नौका डूब जाने के कारण वह समुद्र की गोद में समा गया। वणिक चौंक गया। मछुआरे के प्रति हमदर्दी जताई। वणिक ने दादाजी और चाचाजी के सम्बन्ध में पूछा तो उन्हें भी समुद्र लील गया था। वणिक मित्र को घोर आश्चर्य हुआ। इसका पूरा परिवार समुद्र लील गया, लेकिन मछुआआर समुद्र से डर नहीं रहा। वणिक से रहा नहीं गया। उसे कहा, मित्र! यह समुद्र तुम्हारे परिवार के विनाश का कारण है, इस बात को जानते हुए तुम यहां बराबर आते हो! क्या तुम्हें मरने का डर नहीं है? क्या तुम नहीं सोचते कि एक दिन समुद्र तुम्हें भी निगल जाएगा? मछुआरा बोला, भाई, मौत का डर किसी को हो या न हो, पर वह तो आएगी ही। तुम्हारे घरवालों में से शायद इस समुद्र तक कोई नहीं आया होगा, फिर भी वे सब कैसे चले गये? मौत कब आती है और कैसे आती है, यह आज तक कोई भी नहीं समझ पाया। फिर मैं बेकार क्यों डरुं? वणिक के कानों में भगवान महावीर की वाणी गूंजने लगी-नाणागमो मच्चुमुहस्स अत्थि। मृत्यु का आगमन किसी भी द्वार से हो सकता है। वज्र-निर्मित मकान में रहकर भी व्यक्ति मौत की जद से नहीं बच सकता, वह तो अवश्यंभावी है। इसलिए प्रतिक्षण सजग रहने वाला व्यक्ति ही मौत के भय से ऊपर उठ सकता है।