Sunday, May 11, 2025
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सामयिक: निजीकरण की ओर एयर इंडिया

सतीश सिंह
सतीश सिंह
एयर इंडिया को खरीदने के लिए एयरलाइंस के कर्मचारियों के साथ अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फर्म ‘इंटर्प्स इंक’ ने बोली लगाई है। बोली लगाने की अंतिम तारीख 14 दिसंबर तक थी। निविदा दाखिल करने की तारीख 29 दिसंबर है। तदुपरांत, एयर इंडिया को बेचने की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाएगा। कंपनी का कहना है कि अगर वह एयर इंडिया को खरीदने में सफल होती है तो 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी एयर इंडिया के कर्मचारियों को देगी और 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी अपने पास रखेगी।
अमेरिकी कंपनी एयर इंडिया में 13,500 करोड़ रुपए तुरंत निवेश करने के लिए तैयार है और जरूरत पड़ने पर वह और भी निवेश कर सकती है। एयर इंडिया के 14,000 कर्मचारियों में से 200 से अधिक कर्मचारी अपनी कंपनी को खरीदना चाहते हैं। इसके लिए,एक कर्मचारी  एक लाख रुपए का निवेश करेंगे। ‘इंटर्प्स इंक’ अमेरिका के ओवर द काउंटर एसक्चेंज (यूएस-ओटीसी) में सूचीबद्ध है और इसका एम-कैप 28 मिलियन डॉलर का है। भारत में यह पहले भी दिवालिया हो चुकी कंपनियों; जैसे, लवासा कॉर्पोरेशन, एशियन कलर कोटेड स्टील, रिलायंस नेवल आदि को खरीदने के लिए बोली लगा चुकी है। हालांकि, अभी तक कोई भी कंपनी खरीदने में यह सफल नहीं हो सकी है।
एयर इंडिया को खरीदने के लिए ‘इंटर्प्स इंक’ के अलावा टाटा समूह, अडानी और हिंदुजा समूह भी रुचि ले रहे हैं। टाटा समूह ने एयर इंडिया को खरीदने के लिए अभिरुचिपत्र जमा कर दी है। एयर इंडिया को वर्ष 1932 में जेआरडी टाटा ने टाटा एयरलाइंस के नाम से शुरू की थी। वर्ष 1946 में इसे एयर इंडिया नाम दिया गया और वर्ष 1947 में भारत सरकार इसमें निवेश करके सबसे बड़ी हिस्सेदार बन गई और वर्ष 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया। उल्लेखनीय है कि एयर इंडिया को बेचने की कोशिश पहले भी की जा चुकी है। इसके पूर्व, खरीदंने की इच्छुक कंपनियों के लिए अभिरुचि पत्र जमा करने की अंतिम तिथि 31 अगस्त, 2020 थी।  वर्ष 2018 में भी सरकार एयर इंडिया को बेचना चाह रही थी, लेकिन इसे खरीदने के लिए कोई कंपनी तैयार नहीं हुई, क्योंकि सरकार इसमें 24 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखना चाहती थी और इसपर कर्ज का भारी-भरकम बोझ था।
केंद्र सरकार ने अब फिर से एयर इंडिया में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की कोशिश कर रही है। एयर इंडिया एक्स्प्रेस लिमिटेड में भी सरकार 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचेगी, जबकि एयर इंडिया एसटीएस एयरपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड में 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी बेची जाएगी। वर्तमान में, एयर इंडिया पर 60,074 करोड़ रुपए का कर्ज है, लेकिन अधिग्रहण के बाद खरीददार को सिर्फ 23,286.5 करोड़ रुपये ही चुकाने होंगे। शेष कर्ज को एयर इंडिया एसेट होल्डिंग्स लिमिटेड को स्थानांतरित कर दिया जाएगा, जिसका भार केंद सरकार वहन करेगी। एयर इंडिया और इंडियन एयर लाइंस के विलय के वक्त एयर इंडिया 100 करोड़ रुपये के मुनाफे में थी, लेकिन अनियमितता, गलत प्रबंधन, राजनीतिक हस्तक्षेप और अंदरुनी गड़बड़ियों के कारण इसकी स्थिति खस्ताहाल हो गई। अदालत में दायर एक जनहित याचिका के मुताबिक वर्ष 2004 से वर्ष 2008 के दौरान विदेशी विनिर्माताÑओं को फायदा पहुंचाने के लिए 67000 करोड़ रुपये में 111 विमान खरीदे गए, करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करके विमानों को पट्टे पर लिया गया एवं निजी विमानन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए फायदे वाले हवाई मार्गों पर एयर इंडिया के उड़ानों को जानबूझकर बंद किया गया, जिसकी पुष्टि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) अपनी रिपोर्ट में कर चुकी है।
एयर इंडिया के बेड़े को समृद्ध करने के लिए ‘के-787 ड्रीमलाइनर’ को सितंबर, 2012 को खरीदा गया। 256 सीटों वाला ड्रीमलाइनर 10 से 13 घंटे बिना किसी परेशानी के उड़ान भर सकता है। सीटों की डिजाइनिंग और र्इंधन क्षमता के मामले में यह बोइंग 777-200 एलआर से बेहतर है। एयर इंडिया ड्रीमलाइनर की बेहतर क्षमता का उपयोग करके ज्यादा लाभ अर्जित कर सकती है। बड़े विमानों में एयर इंडिया के पास 777-200 एलआर के 8 विमान, 777-300 ईआर के 12 विमान और बी 747-400 के 3 विमान हैं। छोटे विमानों में एयर इंडिया के पास ए 320 के 12 विमान, ए 319 के 19 विमान और ए 321 के 20 विमान हैं। वर्तमान में एयर इंडिया के पास कुल 169 विमान हैं और कई विमानों को इसने लीज पर ले रखा है। एयर इंडिया के पास लगभग 1700 पायलट और 4000 एयर होस्टेस हैं. कोरोना महामारी से पहले इससे हर दिन करीब 60,000 यात्री विदेश यात्रा करते थे। पिछले साल एयर इंडिया ने 9 नई अंतरराष्ट्रीय उड़ानें शुरू की थीं और देश में भी इसने कई शहरों को जोड़नेवाली उड़ान सेवाओं को शुरू किया था।
सभी तरह के संसाधनों से युक्त होने की वजह से एयर इंडिया विमानों के बुद्धिमतापूर्ण इस्तेमाल से राजस्व में इजाफा कर सकता है। जैसे, जिन मार्गों पर यात्रियों का आवागमन अधिक है, वहां विमानों के फेरे बढ़ाए जा सकते हैं। वैसे विमानों का ज्यादा उपयोग किया जा सकता है, जिनमें कम र्इंधन की खपत होती है। लंबी दूरी वाले विमानों का उपयोग मध्यम तथा छोटी दूरी वाले मार्गों में उड़ान भरने के लिए किया जा रहा है। फ्रैंकफर्ट, पेरिस, हांगकांग, शंघाई जैसे शहरों, जहां पहुंचने में 10 घंटे का समय लगता है, की उड़ान में अगर ड्रीमलाइनर का प्रयोग किया जाता है तो यात्रा की लागत प्रति किलोमीटर 25 प्रतिशत तक कम हो सकती है। यात्रियों को लुभाने के लिए विज्ञापन का सहारा लिया जा सकता है। यात्री किराया में कटौती की जा सकती है। कम किराये की भरपाई विमानों के फेरे बढ़ा कर की जा सकती है। एयर इंडिया का स्टार अलायंस के साथ साझेदारी वर्ष 2014 में हुई थी। स्टार अलायंस के पास 192 देशों के 1300 हवाई अड्डों में उड़ान भरने वाले 18500 विमानों का बड़ा नेटवर्क है। एयर इंडिया इस विशाल नेटवर्क का फायदा उठा सकता है।  अंतरराष्ट्रीय यात्री बाजार में एयर इंडिया की अभी भी 17 प्रतिशत की भागीदारी है। जेट एयरवेज के बंद होने के बाद अमेरिका में एयर इंडिया का दबदबा बढ़ा है। कुशल प्रबंधन के जरिये एयर इंडिया को मुनाफे में लाया जा सकता है। संसाधनों के बेहतर प्रबंधन से पूर्व में भी यह लाभ में आया था। भारतीय रेल, यूको बैंक, पंजाब नेशनल बैंक आदि भी पूर्व में ऐसा करिश्मा कर चुके हैं। ऐसे में एयर इंडिया को लाभ में लाना नामुमकिन नहीं है।

 


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