एस शिरढोनकर
छोटे पर्दे की अभिनेत्री अंकिता लोखंडे ने पिछले साल पहली बार बड़े पर्दे की फिल्म ‘मणिकर्णिका: द क्वीन आॅफ झांसी’ (2019) के साथ सिल्वर स्क्र ीन पर दस्तक दी। इसमें झलकारी बाई का किरदार निभाकर उन्होंने दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी थी। ‘मणिकर्णिका: द क्वीन आॅफ झांसी’ के बाद अंकिता टाइगर और श्रद्धा कपूर के अपोजिट ‘बागी 3’ में नजर आर्इं। इसमें रितेश देशमुख भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका में थे।
पिछले छह महीने से कोरोना लॉक डाउन की वजह से देश के साथ ही साथ सारी फिल्म इंडस्ट्री थमी हुई थी लेकिन अब जबकि धीरे-धीरे इंडस्ट्री फिर पटरी पर लौट रही है, अंकिता भी अपने कैरियर को लेकर काफी उत्साहित हैं। प्रस्तुत हैं उनके साथ की गई बातचीत के मुख्य अंश:
‘मणिकर्णिका: द क्वीन आॅफ झांसी’ के दौरान इस तरह की खबरें थीं कि कंगना द्वारा फिल्म निर्देशक कृष के हाथों से निर्देशन की बागडोर खींच लेने से आप संतुष्ट नहीं हैं। ऐसी भी खबरें आई थीं कि सोनू सूद की तरह आपने भी फिल्म छोड़ने का मन बना लिया था?
-कृष खुद ही फिल्म से अलग हुए थे। उसकी वजह क्या थी, वह मुझे पता नहीं। सोनू सूद को शायद अपने किरदार को लेकर कोई प्राब्लम थी इसलिए वो फिल्म से अलग हुए जबकि मुझे कोई समस्या नहीं थी। फिर मैं इतना अच्छा प्रोजेक्ट भला क्यों ठुकराती। मुझे लगता है कि इस फिल्म ने मुझे इतना दिया जो शायद 10 फिल्में करने के बाद भी मैं हासिल नहीं कर पाती।
आपने छोटे पर्दे पर लगभग 6 वर्ष तक राज किया। जब आपने पहली बार इंदौर से आकर मायानगरी मुंबई में पहला कदम रखा, उस वक्त आपको यकीन था कि आपको इस कदर कामयाब हासिल होगी?
=एक्टिंग के प्रति बचपन से मेरी दिलचस्पी थी इसलिए मैं कुछ करने के इरादे से ही यहां आई थी लेकिन इतनी जल्दी अपनी पहचान बना लूंगी और मुझे इतनी कामयाबी मिलेगी, ऐसा नहीं सोचा था पर मुझे इतना यकीन तो था कि यदि काम मिला तो अच्छा ही करूंगी।
-आपके कैरियर के लिए टर्निंग पाइंट क्या रहा?
छोटे पर्दे के धारावाहिक ‘पवित्र रिश्ता’ की अर्चना देशमुख के किरदार में मुझे जबर्दस्त पहचान मिली। इस किरदार ने मुझे घर-घर में लोकप्रिय बना दिया। निश्चित तौर पर वह मेरे कैरियर के लिए एक बड़ा टर्निंग पॉंइट था।
‘मणिकर्णिका: द क्वीन आॅफ झांसी’ में अच्छे रिस्पॉन्स के बाद आपने कहा था कि आप सिर्फ लीड एक्ट्रेस वाले किरदारों को ही प्रमुखता देंगी लेकिन इसके बावजूद आप अगली ही फिल्म ‘बागी 3’ के साइड रोल में नजर आर्इं?
-दरअसल मुकेश छावरा, जिन्हें मैं अपना भाई मानती हूं, उन्होंने ही मुझे ‘बागी 3’ में रुचि वाले रोल का प्रस्ताव दिया था। वह साइड रोल होने के बावजूद मुझे अच्छा लगा था, इसलिए मुझे करने में कोई बुराई महसूस नहीं हुई। यह सच है कि मैं लीड एक्ट्रेस वाले किरदार करना चाहती हूं लेकिन ऐसी फिल्में जिनमें मेरा रोल अच्छा हो फिर बेशक वो लीड रोल न भी हो तब भी चलेगा।
आजकल इस इंडस्ट्री में नेपोटिज्म को लेकर काफी बातें हो रही हैं। आप एक आउटसाइडर हैं। इसके बावजूद आपने अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है। नेपोटिज्म के बारे में आप क्या कहेंगी?
-मुझे तो ‘नेपोटिज्म’ और ‘आउटसाइडर’ जैसे शब्द सुनकर ही चिढ़ होती है। ये ऐसे शब्द हैं जो कलाकारों के बीच डिफरेंसेस पैदा करते हैं। मेरा मानना तो बस एक ही है कि कलाकार या तो अच्छा होता है या बुरा। इसके अलावा उसकी कोई तीसरी श्रेणी नहीं होती।
फिल्मों में शुरुआत करते ही लॉक डाउन, आपने इससे क्या सबक हासिल किया?
-इंसान तो कठपुतली मात्र है, उस विधाता के हाथ की। हम जो सोचते हैं वह कभी नहीं होता। वही होता है जो सिर्फ विधाता चाहता है। वह हमारे कर्मों के लिए हमें दंड भी देता है और पुरस्कृत भी करता है। लॉक डाउन के कारण मेरी फिल्म ‘बागी 3’ रिलीज हुई ही थी कि थियेटर बंद हो गए। यह सब क्या है? आखिर विधाता की मर्जी ही तो है।
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