इस समय सभी किसानों ने गेहूं की बुआई कर ली है, ऐसे में किसानों के लिए ये जानना सबसे जरूरी हो जाता है कि गेहूं किसान इस समय क्या जरूरी काम करें। बहुत सारे किसानों की ये समस्या होती है कि ज्यादातर हबीर्साइड या खरपतवार निरोधी दवाओं का छिड़काव करते हैं तो गेहूं की फसल में भी पीलापन आ जाता है, किसानों को लगता है कि कहीं उनकी फसल में पीला रतुआ रोग तो नहीं आ गया है। लेकिन ऐसा नहीं होता है, क्योंकि पीला रतुआ में पाउडर जैसा नजर आता है और जबकि दूसरे में जब आप पत्ती रगड़ोगे तो ऐसा कुछ नजर नहीं आता है। ऐसे में मैं किसान जब भी खरपतवार निरोधी दवाओं का छिड़काव करें तो जो एक एकड़ के हिसाब फामूर्लेशन बनाएं उसमें 500 ग्राम के करीब यूरिया मिला लें, अगर फिर भी अगर समस्या का समाधान न हो तो सी वीड उनका एक्सट्रैक्ट को एक एकड़ में छिड़काव कर दें।
एक और भी उपाय ये है कि जो आप खरपतवार का आप इस्तेमाल कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर को गेहूं की शुरुआती अवस्था और बुवाई के 17-18 दिन बाद ही छिड़काव करें। गेहूं की पहली सिंचाई बुवाई के 20-22 दिन बाद, और अगर ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहां लॉजिंग की समस्या है वहां पहली सिंचाई थोड़ी देर में यानि लगभग 25-27 दिनों में करें। जहां नमी रहती है वहां पर पहली सिंचाई 27 -28 दिन बाद दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 27-28 दिन बाद करें।
आखिरी दो सिंचाई के बीच 20 दिन का अंतराल रखें जिन्होंने एक नवंबर के आसपास या अक्टूबर के आखिर में गेहूं की बुवाई की होगी, उसमें फसल की अच्छी बढ़वार होती है, कई बार तो फसल गिर भी जाती है, इसलिए उसमें जब पहली गांठ आती है, तो उसमें एक कट लगा सकते हैं। उस कट को आप चारे के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे आपको प्रति हेक्टेयर 70-1000 कुंतल हरा चारा मिल सकता है। पहले आप प्रयोग के तौर पर जो लंबी अवधि की किस्मों की बुवाई की है इनसे आप हरा चारा ले सकते हैं।
अधिक उपज के लिए गेहूं की फसल को पांच-छह सिंचाई की जरूरत होती है। पानी की उपलब्धता, मिट्टी के प्रकार और पौधों की आवश्यकता के हिसाब से सिंचाई करनी चाहिए। गेहूं की फसल के जीवन चक्र में तीन अवस्थाएं जैसे चंदेरी जड़े निकलना (21 दिन), पहली गांठ बनना (65 दिन) और दाना बनना (85 दिन) ऐसी हैं, जिन पर सिंचाई करना अतिआवश्यक है।
यदि सिंचाई के लिए जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तो पहली सिंचाई 21 दिन पर इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर अन्य पांच सिंचाई करें। नई सिंचाई तकनीकों जैसे फव्वारा विधि या टपका विधि भी गेहूं की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। कम पानी क्षेत्रों में इनका प्रयोग बहुत पहले से होता आ रहा है। लेकिन जल की बाहुलता वाले क्षेत्रों में भी इन तकनीकों को अपनाकर जल का संचय किया जा सकता है और अच्छी उपज ली जा सकती है।