वर्ष 2025 के लिए केंद्रीय बजट, आज पेश किया जाने वाला है, जिसमें आगामी वित्त वर्ष के लिए वैसे प्रावधान किए जाएंगे, जिनकी मदद से विकास को गति दी जा सके। साथ ही वंचित तबकों और किसानों की बेहतरी के लिए समुचित उपाय किया जा सके। देश के विकास को सुनिश्चित करने में विनिर्माण, निर्माण, शिक्षा, स्वास्थ, सड़क, रेल आदि क्षेत्रों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन बैंकों की भूमिका इन सभी क्षेत्रों से ज्यादा महत्वपूर्ण रही है और ये इन सभी क्षेत्रों के विकास की दशा और दिशा को तय कर रहे हैं। बजट को उद्देश्यपरक और कारगर बनाने के लिए सभी महत्वपूर्ण हितधारकों से सुझाव मांगे गए हैं, जिसमें बैंक भी शामिल हैं। आजादी के बाद से ही देश को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में बैंक अहम भूमिका निभा रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि सरकार को बैंकों को सशक्त बनाने वाले प्रावधान बजट में करने चाहिए। जब बैंक मजबूत होंगे, तभी ये देश को भी आर्थिक रूप से सबल बना सकेंगे।
आज बैंकों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या सस्ती पूंजी की कमी की है। मोटे तौर पर बैंक का काम ग्राहकों से जमा लेना और उसी जमा को जरूरतमंदों और कारोबारियों के बीच ऋण के रूप में वितरित करना है। बैंक जमा पर कम ब्याज देते हैं और ऋण पर ज्यादा ब्याज लेते हैं। ब्याज दरों में अंतर से ही बैंक मुनाफा कमाता है। मौजूदा समय में बचत, आवृति और सावधि जमा पर अर्जित ब्याज पर सरकार टैक्स वसूल रही है। बैंकों ने भी अपनी कमाई बढ़ाने के लिए जमा को म्यूच्यूअल फंड और बीमा में निवेश किया है। इधर, कुछ सालों से अर्थव्यवस्था के मजबूत रहने से शेयर बाजार का सेंसेक्स लगातार ऊपर जा रहा है और लोगों को शेयर बाजार व म्यूच्यूअलफंड में निवेश पर बेहतर प्रतिफल मिल रहा है। ऐसी स्थिति में घरेलू निवेशक बैंक में निवेश करने से परहेज कर रहे हैं।
जमा की किल्लत की वजह से बैंकों को ऋण देने के लिए बाजार से अधिक ब्याज पर पूंजी उठानी पड़ रही है और बाजार में तरलता का संकट पैदा होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। उधारी के उठाव में कमी आने से आर्थिक गतिविधियों में कमी दर्ज की गई है और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में उल्लेखनीय कमी आई है। लिहाजा, व्यक्तिगत बचत को प्रोत्साहित करने के लिए बचत, आवृति एवं सावधि जमा पर अर्जित ब्याज को कर मुक्त बनाने की जरूरत है। अभी इन पर अर्जित ब्याज को आय मानकर उन पर कर लगाया जा रहा है। साथ ही, आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत सभी बैंक जमा पर कर की छूट भी देनी चाहिए। जमा को प्रोत्साहित करने के लिए गारंटी कृत रिटर्न के साथ सरकार द्वारा समर्थित बचत योजनाओं को ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू करना चाहिए, क्योंकि ग्रामीण अभी भी शेयर बाजार और म्यूच्यूअलफंडमें निवेश करने से बचते हैं। इस क्रम में बचत को प्रोत्साहित करने के लिए महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों और किसानों द्वारा जमा राशि पर कर मुक्त ब्याज देने की व्यवस्था करनी चाहिए।
नागरिकों को बचत और औपचारिक बैंकिंग चैनलों का उपयोग करने के महत्व के बारे में शिक्षित करने के लिए सरकार समर्थित जागरूकता अभियान भी चलाने की जरूरत है। इससे भी बैंक जमा में वृद्धि हो सकती है। सरकार को आकर्षक दीर्घ-अवधि सरकारी बचत बॉन्ड बैंकों के माध्यम से बेचना चाहिए, ताकि बैंक की जमा में वृद्धि हो और सार्वजनिक क्षेत्र की उधारी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिल सके। सरकार को आॅनलाइन धोखाधड़ी की घटनाओं को रोकने के लिए पुख्ता कानून बनाने की जरूरत है, क्योंकि साइबर अपराध की आवृति बढ़ने से भी आमजन बैंकों में जमा रखने से परहेज कर रहे हैं। सहकारी बैंकों के यदा-कदा डूबने से ग्राहकों के मन में डर बना हुआ रहता है। पैसे सुरक्षित रहेंगे का उन्हें भरोसा देने के लिए जमा बीमा सीमा को 5 लाख रुपए से बढ़ाकर 10 लाख रुपए करने की आवश्यकता है। बैंक के विफल होने की स्थिति में जमा बीमा दावों की प्रक्रिया को और सरल बनाना चाहिए। इससे भी जमा को बढ़ावा मिल सकता है।
सरकार को प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) जैसी योजनाओं के विस्तार हेतु एक सशक्त रूपरेखा बनानी चाहिए। आमजन द्वारा अधिक से अधिक बचत खाते खोलने से वितीय समावेशन की संकल्पना साकार हो सकती है। बैंक से जुड़ने पर सरकारी योजनाओं का लाभ वंचित तबकों को मिल सकेगा और वितीय रूप से उन्हें साक्षर बनाया जा सकेगा, जिससे उनके आत्मनिर्भर बनने की संभावना बढ़ेगी। इससे देश के डिजिटलीकरण अभियान को भी बल मिलेगा, फसल बीमा, कृषि ऋण आदि की सुविधाएं भी उन्हें मिल सकेंगी।
बैंकों के गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में विगत वर्षों में उल्लेखनीय कमी आई है। फिर भी, सर्फेसी, बैंक अदालत आदि वसूली तंत्रों को और भी मजबूत बनाने की जरूरत है। इसके बरक्स कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की स्थापना की गई थी, ताकि बड़ी चूककर्ता कंपनियों से एनपीए की वसूली की जा सके, लेकिन इसका प्रदर्शन भी अपेक्षित नहीं रहा है। निर्णय तक पहुंचने में अत्यधिक देरी और समझौता राशि का मूल राशि से 15 से 25 प्रतिशत होना इसकी सफलता पर सवाल खड़ा करता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के पश्चात बैंक कर्मचारियों को दिए जाने वाले लाभों पर टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती) जनवरी 2025 से शुरू की जाने वाली है। कुछ बैंकों ने फिलहाल इस भार को खुद वहन किया है तो कुछ ने नहीं। सरकार द्वारा मामले में हस्तक्षेप करने की जरूरत है।
इस हानि की भरपाई आयकर दाताओं की संख्या को बढ़ा कर किया जा सकता है या फिर बैंक कर्मचारियों को इस नुकसान की जगह प्रदर्शन-आधारित बोनस या वैसी प्रतिपूर्ति, जिसमें कर की छूट है या फिर वेतन में नकद घटकों को बढ़ाने जैसे विकल्प दे सकते हैं। माना जा रहा है कि इस प्रावधान से बैंक कर्मियों का प्रदर्शन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है, क्योंकि बैंककर्मी तनाव भरे माहौल में काम करते हैं। लाभों में कमी आने से उनका मनोबल कम हो सकता है और बैंकों के लाभ में कमी आ सकती है, जिसका आंशिक प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है।
कहा जा सकता है कि हाल के कुछ वर्षों में बैंकिंग क्षेत्र के प्रदर्शन में बेहतरी आई है और एनपीए में भी उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। हालांकि, मौजूदा समय में बैंक, जमा के संकट का सामना कर रहा है। बैंकिंग सुविधाओं के डिजिटल हो जाने के बाद, आॅनलाइन धोखाधड़ी की घटनाओं में बहुत तेजी है, जिससे निवेशकों का बैंकों पर से भरोसा कम हुआ है। बैंकों के वसूली तंत्र की कमजोरी के कारण भी एनपीए में अपेक्षित कमी नहीं आई है। इधर, बैंक कर्मचारियों को दिए जाने वाले लाभों पर टीडीएस की कटौती से उनके मनोबल में कमी दर्ज की गई है, जिससे बैंक के प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना बढ़ी है। अस्तु, इन समस्याओं का समाधान करने वाले प्रावधान बजट में करने की जरूरत है।