दुधारू पशु को उसके शरीर के भार का 2.5 से 3.5 प्रतिशत भोजन की आवश्यकता होती है। दूसरे शब्दों में, एक भैंस को 30 किलोग्राम और गाय को 25 किलोग्राम प्रतिदिन भोजन की आवश्यकता होती है, जिसमें दाना राशन या कंसंट्रेट भी शामिल है। इसमें 60 प्रतिशत गीला और 40 प्रतिशत सूखा चारा हो। कुल हरे-गीले चारे में से 25 प्रतिशत दलहनी प्रजातियों से और 75 प्रतिशत घास से हो। हरा चारा अधिक होने पर भी सूखा चारा जरूरी है।
केवल हरा चारा खिलाने से पशु की वृद्धि और दूध की उपज और गुणवत्ता प्रभावित होती है। धान के पुआल (पैरा) को सूखे चारे के रूप में प्रयोग न करें। इसमें आॅक्सालिक एसिड की मात्रा जानवर के शरीर से कैल्शियम को खत्म कर देगी। दलहनी फसलों में 15 से 21 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है जिसके खिलाने से पशुओं के दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।
बरसीम
बरसीम पशुओं को पौष्टिक आहार प्रदान करने वाली महत्वपूर्ण हरा चारा वाली फसल है। इसकी खेती रबी ऋतु में पूर्ण सिंचित अवस्था में की जाती है इसके पौधे की बढ़वार काफी तेज होती है। दलहनी फसल होने के कारण इसकी खेती करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है। बरसीम को खिलाने से पशुओं के दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। अधिक उत्पादन होने पर हरा चारा को ह्यहेह्ण अथवा साइलेज बनाते है, जो चारे की कमी होने के समय उत्तम पशु आहार होता है।
भूमि का चुनाव
- दोमट मिट्टी और जिन मिट्टियों में जल धारण क्षमता अच्छी होती है। बरसीम सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।
- सर्वोत्तम है हल्की भूमि में इस फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।
खेत की तैयारी
- एक या दो बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें और पाटा लगाकर भूमि को समतल करें।
- एक हेक्टेयर खेत में लगभग 20 क्यारियां बनाने से सिंचाई में सुविधा होती है।
खाद और उर्वरक
- गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट 10 टन।
- 20 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टर की दर से बोने से पूर्व खेत में बिखेर कर अच्छी तरह से मिट्टी में मिला दें।
- बुवाई के 15-20 दिन बाद यदि पौधे पीले व कमजोर दिखें तो खड़ी फसल में 10-12 किलो यूरिया का छिडकाव प्रति हेक्टेयर की दर से करें।
बीज दर एवं बीज उपचार
- 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का उपयोग करें।
- कासनी (चिकोरी) की समस्या से निजात पाने के लिए बीज को 5 प्रतिशत नमक के घोल वाले पानी में डुबायें। कासनी का बीज हल्का होने के कारण पानी की सतह पर आ जाता है, इसे निकाल कर नष्ट कर दें। फिर बरसीम के बीज को नमक के घोल वाले पानी से निकाल कर 2-3 बार शुद्ध पानी से धोयें।
- एक किलो बीज में एक ग्राम कार्बेंडाजिम तथा 2 ग्राम थायरम से बीज उपचार करें, इससे मृदा में उपस्थित फफूंदी जनक रोग नहीं आएगी और अच्छा अंकुरण होगा।
- इसके बाद 5 ग्राम राइजोबियम कल्चर प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करें।
बोने का समय व तरीका
- बरसीम फसल की बोनी मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर में करना सबसे उचित है।
- पहली विधि में सुविधाजनक आकार की क्यारियां बनाएं (जो पानी को रोक सकें), सिंचाई करें और खड़े पानी में बीज छिडकाव करें। ध्यान रखें कि खेत में पानी की सतह 5 सेंमी से अधिक न रहे।
- दूसरी विधि में बीज को खेत में छिडककर बोनी करें फिर सिंचाई करें। ध्यान रखें की सिंचाई का पानी तेज गति से ना बहे नहीं तो बीज पानी के बहाव की दिशा में जमा हो जाएगा।
सिंचाई
- पहली सिंचाई बोनी के 5 से 6 दिन बाद करें, इसके बाद आवश्यकतानुसार 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
- मार्च के महीने से सिंचाई 8 से 10 दिन के अंतराल पर करें।
- कटाई के बाद सिंचाई आवश्यक रूप से करें।
- इस फसल के पूरे जीवन काल में कुल 13 से 15 सिंचाई की आवश्यकता होती है।
कटाई प्रबंधन
- बरसीम हरे चारे की बहू कटाई वाली फसल है। पहली कटाई बुवाई के 50 से 55 दिन पर करें। तत्पश्चात 25 से 30 दिन के अंतर पर कटाई करें।
- पौधों को जमीन से 8-10 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर काटें।
उपज
मध्य अक्टूबर में बोई गयी फसल से 5-6 कटाई में लगभग 900 से 1000 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है। बुआई में विलंब होने से उपज में कमी आती है। पहली कटाई में समय अधिक लगता है, और हरे चारे का उत्पादन भी कम प्राप्त होता है।
अत: चारे का उत्पादन बढ़ाने के लिए बोनी करते समय बरसीम के बीज में 2 किलोग्राम सरसों या 10 किलोग्राम जई का बीज प्रति हेक्टेयर मिलाकर बोने से पहले कटाई के चारा उत्पादन में वृद्धि होती है, क्योंकि बरसीम के साथ सरसों या जई चारा, अतिरिक्त प्राप्त होता है। तथा बाद में बरसीम के उत्पादन में कोई विपरीत असर नहीं पड़ता है।
बीज उत्पादन
बरसीम का बीज तैयार करने के लिए हरा चारा की कटाई मार्च प्रथम सप्ताह तक ही करें इसके बाद फसल को बीज उत्पादन के लिए छोड़ दें इस प्रकार 3-4 कटाई द्वारा 400-500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त होता है। साथ-साथ 4 से 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज का उत्पादन प्राप्त हो जाता है।