Sunday, June 1, 2025
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अमेठी में भारत जोड़ो यात्रा, रायबरेली में अखिलेश यादव, राजनीतिक हवा के इस मायने से समझिए कांग्रेस की मज़बूरी

जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अखिलेश यादव को यात्रा में शामिल होने का निमंत्रण दिया तो सपा अध्यक्ष ने रायबरेली या अमेठी में यात्रा में शामिल होने की सहमति दी। सूत्रों का कहना है कि 20 जिलों में से इन दो जिलों का चयन बहुत ही सोच-समझकर किया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में अमेठी या रायबरेली में शामिल होने की सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की घोषणा के सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं। माना जा रहा है कि अखिलेश ने खास रणनीति के तहत उन्हीं लोकसभा क्षेत्रों में यात्रा में शामिल होना तय किया, जहां गठबंधन को लेकर किसी तरह की कोई ऊहापोह नहीं है।

इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि कांग्रेस को फिलहाल सपा की 11 सीटों की पेशकश रास नहीं आ रही है। यूपी में कांग्रेस की न्याय यात्रा 16 जनवरी को प्रवेश करेगी। चंदौली, वाराणसी, जौनपुर, इलाहावाद और आगरा समेत 20 जिलों से होते हुए भरतपुर (राजस्थान) जाएगी।

कांग्रेस नेताओं ने सपा की 11 सीटों की पेशकश पर सार्वजनिक बयान में कहा है कि इसकी उन्हें जानकारी नहीं है। अलबत्ता इंडिया गठबंधन के तहत दोनों दलों के बीच बातचीत सार्थक दिशा में आगे बढ़ रही है। इससे स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस अभी सीटों के बंटवारे को न तो अंतिम मान रही है और न ही इससे सहमत है।

साथ ही मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में इस मुद्दे पर मीडिया में बयानबाजी न करना भी उसकी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। ताकि गठबंधन को लेकर जनता में उसकी ओर से कोई नकारात्मक संदेश न जाए।

सूत्र बताते हैं कि सपा नेतृत्व भी कांग्रेस की मनोस्थिति को अच्छी तरह से भांप रहा है। गाहे-बगाहे बसपा की ओर उसका हाथ बढ़ाने की कोशिशों की चर्चाओं से भी अनजान नहीं है। गांधी परिवार के नजदीकी कांग्रेस के एक नेता भी नाम न छापने के अनुरोध के साथ बताते हैं कि यूपी में कांग्रेस, किसी भी अन्य दल के मुकाबले बसपा से गठजोड़ की ज्यादा इच्छुक है।

सारा दारोमदार बसपा के रुख पर निर्भर है। कुल मिलाकर सपा और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर अभी असमंजस की स्थिति है, भले ही सार्वजनिक रूप से रिश्ते मजबूत होने के दावे किए जा रहे हों।

ऐसे में अखिलेश ने यात्रा में शामिल होने के लिए उन सीटों को चुना, जहां सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी कांग्रेस के समर्थन में प्रत्याशी नहीं उतारते थे। अखिलेश भी इस परंपरा को बनाए रखने की बात कह चुके हैं।

यानी इन दोनों ही जगहों पर गठबंधन को लेकर किसी तरह का असमंजस नहीं है। इसी तरह से कांग्रेस भी सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और डिंपल यादव के खिलाफ अपना प्रत्याशी नहीं उतारने की परंपरा का निर्वहन करती रही है।

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