संत वह होता है, जिसे न मान को मोह और न ही अपमान का डर हो। जो सुख और दु:ख में स्थिर रहे और प्रभु की भक्ति में मस्त रहे। लोभ, मोह माया से निरपेक्ष रहे। भौतिक सुखों की ओर उसका ध्यान तक भी न जाए। ऐसे ही एक संत थे, जो शांत एवं दयावान थे। उनका नाम था अबु उस्मान हैरी। अबु उस्मान हैरी बड़े ऊंचे दर्जे के संत थे।
आपके सितारे क्या कहते है देखिए अपना साप्ताहिक राशिफल 29 May To 04 June 2022
उनका स्वभाव बहुत ही शांत था। वे सबके साथ प्रेम का व्यवहार करते थे, कभी कोई कड़वी बात कह देता था तो वे बुरा नहीं मानते थे। क्रोध तो उन्हें आता ही नहीं था। कोई उन पर क्रोध भी कर दे, तो मुस्कुरा कर टाल देते थे। उनकी एक मुस्कान क्रोधी का दिल बदल देती थी। एक दिन वे अपने कुछ शिष्यों के साथ बाजार से गुजर रहे थे। बाजार में भीड़ नहीं थी। संयोग से जब वे किसी मकान के निकट पहुंचे तो ऊपर से किसी ने राख फेंकी। वह राख संत के सिर पर आकर गिरी। संत ऐसा देखकर बस मुस्कुरा भर दिए।
लेकिन यह देखकर उनके सभी शिष्य मारे गुस्से के लाल-पीले हो गए। वह उनके गुरु का अपमान था और इसे वे कैसे सहन कर सकते थे। वे राख फेंकने वाले की खबर लेने के लिए तैयार हो गए। पर संत ने उन्हें रोक दिया। उन्होंने मुस्कराकर कहा, तुम लोग नाराज क्यों होते हो? जिस आदमी ने ऐसा किया है, उसका तुम्हें उल्टे अहसान मानना चाहिए, जरा सोचो तो जो सिर आग फेंकने लायक था, उस पर उसने राख ही फेंकी!
गुरु की बात सुनकर और उनके चेहरे की मधुर मुस्कान देखकर शिष्यों का गुस्सा काफूर हो गया। उन्होंने समझा कि संत बनने के लिए आदमी में कितनी ऊंचाई आवश्यक होती है। उन्होंने ये समझ लिए कि क्रोध हमारा सबसे बड़ा बैरी होता है।