Monday, June 23, 2025
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बायो प्लास्टिक है भविष्य का विकल्प

Nazariya


RISHABH MISHRAप्लास्टिक न केवल इंसानों बल्कि प्रकृति और वन्यजीवों के लिए भी खतरनाक है, लेकिन प्लास्टिक के उत्पादों का उपयोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अहम पर्यावरणीय मुद्दों में से एक बन गया है। एशिया और अफ्रीकी देशों में प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अधिक है। यहां कचरा एकत्रित करने की कोई प्रभावी प्रणाली नहीं है। वहीं विकसित देशों को भी प्लास्टिक कचरे को एकत्रित करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जिस कारण प्लास्टिक कचरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसमें विशेष रूप से सिंगल यूज प्लास्टिक यानी ऐसा प्लास्टिक जिसे केवल एक ही बार उपयोग किया जा सकता है, जैसे प्लास्टिक की थैलियां, बिस्कुट, स्ट्रॉ, नमकीन, दूध, चिप्स, चॉकलेट आदि के पैकेट। प्लास्टिक की बोतलें, जो काफी सहुलियतनुमा लगती हैं, वे भी शरीर और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक हैं। इन्हीं प्लास्टिक का करोड़ों टन कूड़ा रोजाना समुद्र और खुले मैदानों आदि में फेंका जाता है, जिससे समुद्र में जलीय जीवन प्रभावित हो रहा है। समुद्री जीव मर रहे हैं। कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। जमीन की उर्वरता क्षमता निरंतर कम होती जा रही है। वहीं जहां-तहां फैला प्लास्टिक कचरा सीवर और नालियों को चोक करता है, जिससे बरसात में जलभराव का सामना करना पड़ता है। भारत जैसे देश में रोजाना सैंकड़ों आवारा पशुओं की प्लास्टिकयुक्त कचरा खाने से मौत हो रही है, तो वहीं इंसानों के लिए प्लास्टिक कैंसर का भी कारण बन रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने की अपील की थी। जिसके मद्देनजर लोग अब पारम्परिक प्लास्टिक के विकल्प के रूप में अब नए प्रकार के प्लास्टिक को अधिक और व्यापक रूप से स्वीकार करने लगे हैं, जो पौधों से तैयार किया जाता है।

मौजूदा पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक टिकाऊ हल्के और खाद्य सामग्री के लिए अनुकूल तो हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन, अपशिष्ट, समुद्री प्रदूषण, और खराब वायु गुणवत्ता में इनकी बढ़ती भूमिका को देखते हुए इसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त किए जाने की आवश्यकता है। इसमें पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक का स्थान लेने का प्रमुख दावेदार बायोप्लास्टिक है। बायोप्लास्टिक पेट्रोलियम की बजाय अन्य जैविक सामग्रियों से बने प्लास्टिक को संदर्भित करता है। बायोप्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल और कंपोस्टेबल प्लास्टिक सामग्री है। इसे मकई और गन्ना के पौधों से शुगर निकालकर तथा उसे पॉलिलैक्टिक एसिड यानी पीएलए में परिवर्तित करके प्राप्त किया जाता है। इसे सूक्ष्मजीवों के पॉली हाइड्रोक्सी एल्केनोएट्स यानि कि पीएचए से भी बनाया जा सकता है। पॉलीलैक्टिक एसिड प्लास्टिक का आमतौर पर खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में उपयोग किया जाता है। जबकि पॉली हाइड्रोक्सी एल्केनोएट्स का अक्सर चिकित्सा उपकरणों जैसे-टांके और कार्डियोवैस्कुलर पैच (हृदय संबंधी सर्जरी) में प्रयोग किया जाता है।

बायोप्लास्टिक में एक समान आणविक संरचना और गुण होते हैं, लेकिन वे प्राकृतिक संसाधनों जैसे पौधों पर आधारित स्टार्च, और वनस्पति तेलों, से प्राप्त होते हैं। ये ठीक से निपटाने पर अपघटित भी हो जाते हैं। पारम्परिक प्लास्टिक का अक्सर दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता है, इसे अन्य ठोस कचरे के साथ जला दिया जाता है। लेकिन पीएलए और पीएचए जैव अपशिष्ट हैं, और वे अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में खत्म हो जाते हैं। पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक में कार्बन का हिस्सा ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है, जबकि बायोप्लास्टिक्स जलवायु के अनुकूल है और ये कार्बन उत्सर्जन में भागीदार भी नहीं होता है। बायोप्लास्टिक का वैश्विक उत्पादन 2021 में लगभग 24 लाख टन था और 2023 में इसके दोगुना होकर लगभग 52 लाख टन होने की उम्मीद है। इस मांग को देखते हुए कई खाद्य उद्योग, विशेष रूप से एकल-उपयोगकर्ता बायोप्लास्टिक का उपयोग शुरू कर रहे हैं।

पिछले साल, कोका-कोला ने 100 प्रतिशत पौधा-आधारित प्लास्टिक बोतल के सीमित इस्तेमाल की घोषणा की थी। सर्वाधिक अध्ययन किए गए बायोप्लास्टिक में पालीलैक्टिक एसिड यानि कि पीएलए और पॉली हाइड्रोक्सी एल्केनोएट्स यानि पीएचए शामिल है। बड़ी मात्रा में बायोप्लास्टिक का उत्पादन विश्व स्तर पर भूमि उपयोग को बदल सकता है। इससे वन क्षेत्रों की भूमि कृषि योग्य भूमि में बदल सकती है, जो अधिक मात्रा में कार्बन डाइआॅक्साइड को अवशोषित करने में सहायक सिद्ध होगा। बायोप्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि वैश्विक स्तर पर कृषि उपयोग हेतु भूमि के विस्तार को बढ़ावा दे सकती है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को और बढ़ाएगा। वर्ष 2021 में लगभग साढ़े चार लाख टन उत्पादन के साथ, पीएलए दुनिया में सबसे बड़े उत्पादित जैव अपघटीय पॉलिमर में से एक बन गया।

हालांकि नए प्लास्टिक जो उद्योग बाजार में उतरने की पूरी तैयारी में हैं, उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती है लागत एवं उत्पादन। लगभग दस अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम की दर से पीएलए की कीमत अब भी अधिक है। उत्पादन क्षमता और प्रतिस्पर्धा बढ़ने से कीमतों में कमी आने की संभावना है। इसी तरह पीएचए को और अधिक सस्ता बनाने की दिशा में नयी तकनीकों के बारे में सोचना होगा तभी जाकर हम व्यापक रूप में प्लास्टिक का नया विकल्प तलाश पाएंगे।


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