Monday, August 18, 2025
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जलवायु परिवर्तन के जवाब में ‘जन्म हड़ताल’


संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर 2030 तक जलवायु परिवर्तन पर लगाम नहीं लगायी गई तो आने वाली पीढ़ियों के लिए पृथ्वी ग्रह रहने लायक नहीं रहेगा। जलवायु परिवर्तन से बाढ़, सूखा, जंगलों की आग, तापमान, वर्षा की तीव्रता, मरुस्थलीकरण और विभिन्न प्रकार के प्रदूषण बढ़ रहे हैं एवं कृषि पैदावार, वन क्षेत्र एवं जैव विविधता घट रही है। मलेरिया एवं डेंगू रोग बढ़ रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस कदर बढ़ गया है कि भविष्य में धरती की आबादी के लिए 4 से 6 पृथ्वी की जरुरत होगी। इस खतरनाक परिदृश्यर से पैदा संकट को ध्यान में रखकर अमेरिका की युवा सांसद- अलेक्जेंड्रीया ओकोसिया कार्टेज अपने इंस्टाग्राम पर लाखों फालोअर्स को समझा रही हैं कि आने वाले समय में बच्चों को भयानक प्राकृतिक आपदाओं को झेलना होगा।

ऐसे में बच्चों को जन्म देना क्या उचित होगा? इस पर गंभीरता से विचार किया जाए। कई प्रदूषणकारी पदार्थ गर्भवती महिलाओं के गर्भ-नाल (प्लेसेंटा) से गर्भस्थ शिशु तक पहुंचकर कई प्रकार की विकृतियां पैदा कर रहे हैं। ब्रिटेन की एक संगीतकार ब्लीथ पेपीनो ने अपनी कई महिला सहयोगियों के साथ निर्णय लिया है कि जलवायु परिवर्तन से पैदा विपरीत प्रभावों में सुधार नहीं होने तक वे गर्भधारण नहीं करेंगी।

अपने इस निर्णय के प्रचार-प्रसार हेतु उन्होंने एक संगठन बर्थ-स्ट्राईक बनाया है जिससे हजारों महिलाएं जुड़ रही हैं। संगठन का कहना है कि वे बच्चों को ऐसी दुनिया में जन्म देना नहीं चाहतीं जहां उनके हिस्से के प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर पर्यावरण प्रदूषित कर दिया गया है।

इस संगठन के लोगों ने जून 2019 में लंदन में जोरदार प्रदर्शन कर लोगों को बताया कि आने वाली पीढ़ियों को बेहतर जीवन-यापन के प्राकृतिक संसाधन नहीं मिल पायेंगे इसलिए बच्चे पैदा नहीं करें। बर्थ-स्ट्राइक संगठन जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अमीर, विकसित देशों की सरकारों को गंभीरता से जल्द कार्यवाही करने हेतु विभिन्न माध्यमों से दबाव भी डालता है।

पर्यावरणविदों ने भी कहा है कि महिलाओं का इस प्रकार का निर्णय उन्हें संतान-सुख के नैतिक अधिकार से दूर कर रहा है। पुरूष भी अब इस संदर्भ में सोचने लगे हैं। वर्ष 2020 में अमेरिका की मॉर्निंग कंसल्ट एजेन्सी ने नि:संतान दम्पत्तियों के अध्ययन में पाया कि 04 में से 01 दंपत्ति ने बच्चे पैदा नहीं करने का कारण जलवायु परिवर्तन से पैदा विनाशकारी प्रभाव बताया।

बच्चे कम या नहीं पैदा करने से प्राकृतिक संसाधनों के कम दोहन की बात से पर्यावरणविद् एवं अर्थशास्त्री एक मत नहीं हैं। कुछ का मानना है कि यह सही है, परंतु ज्यादातर की मान्यता है कि वर्तमान पीढ़ी यदि प्राकृतिक संसाधनों का सीमित उपयोग करे, पुन : उपयोग एवं रिसायकल करें तो संसाधनों की उपलब्धता आने वाली पीढ़ियों के लिए बची रहेंगी।

बच्चे पैदा नहीं करने का डर या चिंता यह भी दर्शाती है कि आबोहवा तथा मौसम में आ रहे बदलाव अब शरीर के साथ मानव मन पर भी प्रभाव डाल रहे हैं। इस प्रकार से पैदा चिंता या डर को अमेरिकन सायकोलॉजिकल एसोसिएशन ने 2017 में इको-एंग्जायटी बताया था जिसका हिंदी तात्पर्य है परिस्थितिकी चिंता या डर।

कुछ मनोवैज्ञानिक इसे एक दम सही नहीं मानते, परंतु ज्यादातर का तर्क है कि जिस प्रकार सर्दियों में निराशा या हताशा के मामले बढ़ जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मौसम में आए बदलाव भी नकारात्मकता, भय एवं चिंता के रूप में सामने आते हैं। हमारे देश में इसी वर्ष जनवरी में आई जोशीमठ भू-धसान की आपदा से प्रभावित लोगों में फैले डर या चिंता को इको-एंग्जायटी माना जा सकता है।

भले ही इसका कारण प्राकृतिक कम एवं मानवीय हस्तक्षेप ज्यादा रहा हो। जनवरी में ही जोशीमठ के नगर-पालिका परिसर में लगाये गए स्वास्थ्य-शिविर में 50 प्रतिशत से अधिक लोग हाइपरटेंशन (उच्च-रक्तचाप) से ग्रसित पाए गए। चिकित्सकों ने बताया कि उनसे बात करने पर ऐसा लगा मानो उनका रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) त्रासदी के कारण पैदा परिस्थितियों ने बढ़ाया है।

पर्यावरणविदों एवं मनोवैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से किए गए कई अध्ययन एवं सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती बाढ़, सूखा, तेज गर्मी एवं बारिश, तूफान एवं भू-धसान की घटनाएं बहुत से लोगों को प्रभावित कर मानसिक विकार पैदा करेंगी, जैसे-अवसाद, निराशा, चिंता, आक्रात्मकता, गुस्सा एवं आत्महत्या।

जलवायु परिवर्तन से पैदा हालात से जिस तेजी से लोगों में चिंता बढ़ती जा रही है उस तेजी से इसे रोकने के वैश्विक प्रयास नहीं हो हे हैं। अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में इस पर चिंता जरूर जतायी जाती है, परंतु स्वार्थों के चलते कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पाती।

इस संदर्भ में बेहतर यही होगा कि हम अपने स्तर पर बचने के प्रयास करें, जैसे-आसपास की प्रकृति से जुड़ना, पौधे लगाना, पौधों की देखभाल, बगीचे में बैठना, जंगल में घूमना, पेड़ एवं पक्षियों का अवलोकन, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों की किताबें पढ़ना एवं खानपान व सेहत पर ध्यान देना आदि।


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