- असहयोग आंदोलन में सहभागिता के लिए स्वामी पूर्णानंद ने दिया था सब इंस्पेक्टर पद से इस्तीफा: वीरोत्तम तोमर
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: स्वामी पूर्णानंद सरस्वती ने 1920 में मेरठ से एसएलसी की परीक्षा उत्तीर्ण कर पुलिस सब इंस्पेक्टर के लिए चुने गए, परंतु सन 1921में महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन से प्रभावित हो इस पद को ठुकरा दिया। संहर्ष कारावास जाने का निर्णय कर स्वाधीनता संघर्ष के कठिन मार्ग पर चलने का निर्णय लिया।
यह जानकारी डॉक्टर वीरोत्तम तोमर ने स्वामी पूर्णानंद सरस्वती के जन्मदिवस पर आयोजित आईएमए हॉल में सम्मान समारोह में कही। साथ ही उन्होंने कहा कि साबरमती आश्रम में बापू के चरणों में बैठकर स्वामी पूर्णानंद सरस्वती ने जीवन को राष्ट्र के लिए समर्पित करने का महाव्रत किया।
स्वामी पूर्णानंद ने मेरठ क्षेत्र ही नहीं अपितु हरियाणा व पंजाब प्रांत में स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाई थी । 1923 में लाहौर आर्य समाज उस समय उत्तर भारत का राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में आए पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व पुलिस कमिश्नर बागपत सांसद सत्यपाल सिंह ने कहा की कॉलेज जीवन से ही उनका स्वामी पूर्णानंद से गहरा नाता था।
कई बार उनसे बातें हुईं। उन्हें आंखों से भी कम दिखने लगा था लेकिन उसके पश्चात भी किताबों को पढ़ना बंद नहीं किया। उनको किताबें पढ़ना बहुत पसंद था। देश की आजादी में उन्होंने भी अहम योगदान निभाया। सांसद सत्यपाल सिंह ने अपने उद्बोधन से पहले स्वामी पूर्णानंद का स्मरण किया।
बता दें कि स्वामी पूर्णानंद सरस्वती जन्मदिवस समारोह समिति मेरठ के तत्वधान में स्वामी पूर्णानंद सरस्वती के पुत्र डॉ वीरोत्तम तोमर द्वारा स्वामी पूर्णानंद सरस्वती का 121वाँ जन्मदिवस समारोह हर्षोल्लास के साथ मनाया। कार्यक्रम में शहर के राजनीतिक गलियारों से लेकर आरएसएस एवं अन्य विद्वान व्यक्ति उपस्थित रहे।