Thursday, May 8, 2025
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हीरों से चमकी बोत्सवाना की तकदीर

Ravivani 34


पहले-पहल दुनिया को हीरों से रूबरू बेशक भारत ने करवाया, लेकिन आज हीरों के भारी उत्पादन की बदौलत एक अफ्रीकी देश बोत्सवाना सबसे ज्यादा चमक रहा है। बोत्सवाना मूल्य के मामले में अग्रणी हीरा उत्पादक देश है, और मात्रा के मामले में रूस के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। साल 2021 में, बोत्सवाना में करीब 460 लाख कैरेट वजन के हीरों का उत्पादन हुआ। यह 2020 के मुकाबले लगभग 26 फीसदी ज्यादा था। अफ्रीका के दक्षिणी भाग में स्थित बोत्सवाना नामीबिया, जिम्बाब्वे और दक्षिण अफ्रीका से घिरा है।

वैसे, दुनिया भर में हीरा, सोना और प्लेटिनम के उत्पादन में अफ्रीकी देशों का पहला स्थान है। दुनिया में हीरों के कुल उत्पादन का 95 फीसदी से अधिक भाग अफ्रीका से मिलता है। यानी बोत्सवाना के भूगर्म में दुनिया का सबसे बड़ा हीरा भंडार है। नतीजतन आज बोत्सवाना की प्रति व्यक्ति आय सभी अफ्रीकी देशों से ज्यादा तो हैं ही, भारत जैसे तेजी से विकासशील देशों से भी ऊपर है।

वहां हीरों से संबंधित सभी गतिविधियों और कारोबार की देखरेख ‘देबसवाना डायमंड कंपनी’ करती है। कंपनी में, बोत्सवाना सरकार और दुनिया की सबसे बड़ी हीरा कंपनी ‘डी बीयर्स’ की बराबर यानी 50 प्रतिशत की साझेदारी है।जब 1969 में ‘देबसवाना डायमंड कंपनी’ की स्थापना हुई थी, तब इसमें सरकार की साझेदारी केवल 15 फीसदी थी, लेकिन 1975 से दोनों बराबर साझेदार हैं।

यही नहीं, सन् 1987 से कंपनी के दो कार्यकतार्ओं की ‘डी बीयर्स बोर्ड’ में भी सम्मलित किया गया है। वैसे, हीरों से बोत्सवना की आमदनी महज 50 प्रतिशत तक सीमित नहीं है, बल्कि 10 फीसदी रॉयल्टी और टैक्स मिलाकर कुल उत्पादन का करीब 75 फीसदी मुनाफा बोत्सवाना सरकार का है।

बोत्सवाना के हाथ हीरों की खान कब और कैसे लगी? पीटर जॉयसी लिखित किताब ‘दिस इज बोत्सवाना’ बताती है कि बोत्सवाना में हीरों का छुटपुट उत्पादन 1975 से पहले शुरू हो गया था। इससे पहले ‘डी बीयर्स’ ने भी हीरों की खोज करते- करते हिम्मत हार दी। फिर 1959 में, एकाएक पहली- पहली किम्बरलाइट पाइप नजर आई। यही बाद में ओरापा हीरा खान के नाम से जानी गई।

पहली बार 1971 में, ओरापा हीरा खान में हीरों का उत्पादन प्रारंभ हुआ ।लेटलाहकाने और ज्वानेंग नामक दो अन्य हीरा खानों का उत्पादन क्रमश: 1977 और 1982 से शुरू हुआ।

खानों से निकला सारा कच्चा हीरा ‘देबसवाना डायमंड कंपनी’ के उपक्रम बोत्सवाना डायमंड वेल्यूएशन कंपनी को भेजा जाता है। बोत्सवाना की राजधानी गाबारोने स्थित कंपनी में, हीरों की छंटाई और मूल्यांकन किया जाता है। सैकड़ों माहिर जौहरी छंटाई करके हीरों की कीमत आंकते हैं। बड़े हीरों का मूल्यांकन व्यक्तिगत तौर पर होता है, और बारीक हीरों का लेजर और वेक्यूम मशीनों के जरिए। उत्पादित 85 फीसदी हीरे सेंट्रल सेलिंग आर्गनाइजेशन खरीदती है। बाकी हीरे ‘देबसवाना डायमंड कंपनी’ के स्टाक में संग्रहित किए जाते हैं।

उम्मीद है बोत्सवाना का हीरा उत्पादन सदियों तक जारी रहेगा। हाल ही में, तीन नई खानों की खोज की गई है। ‘देबसवाना डायमंड कंपनी’ के पास रियायती दर पर हीरों को निकालने की आधुनिक तकनीक उपलब्ध है। इस कंपनी की चंद खास कामयाबियां हैं- एक, हीरा आपरेशन से देश को एक-तिहाई आय है।

दो, सरकारी क्षेत्र को छोड़कर सबसे ज्यादा कामकाजी आबादी हीरों के कारोबार में कार्यरत है। तीन, देश के कुल निर्यात का 70 फीसदी भाग हीरे ही हैं। और तो और, तमाम अफ्रीकी देशों के मुकाबले बोत्सवाना की प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है। देश की आर्थिक और सामाजिक उत्थान में हीरों का खासा योगदान है। हीरा खानों के आसपास पूरे-पूरे शहर बस गए हैं। नतीजतन कई नए कारोबार उभरे हैं। होटलों की संख्या बढ़ी है। हजारों लोगों को रोजगार मिला है। ज्वानेंग और ओरापा खानों के समीप खुले अस्पताल देश में अग्रणी हैं।

खानों से निकले हीरे रफ या कच्चे हीरे कहलाते हैं। देखने में, एकदम मिश्री के डलों जैसे होते हैं। खानों से निकले आधे कच्चे हीरे ही तराशने योग्य होते हैं, जिनकी रसायनों द्वारा सफाई- धुलाई करने के बाद कटाई और पॉलिश की जाती है । कच्चे हीरों की सफाई – धुलाई, कटाई, घिसाई, पॉलिश और बेरोजगारी की समस्या से निपटने के उद्देश्य से, ‘देबसवाना डायमंड कंपनी’ ने अपना उपक्रम ‘तीमाने मैन्यूफेक्चरिंग कंपनी’ चालू की थी। सभी पॉलिश हीरों का अमेरिका को निर्यात किया जाता है।

बोत्सवाना ही नहीं, दुनिया की सबसे रईस ज्वानेंग खान को ‘खानों का राजा’ और ‘ताज में हीरा’ कहा जाता है। आज ज्वानेंग खान सर्वाधिक हीरा भंडार से लबालब भरी है। साल 1995 में, इस खान ने पहली बार 104.6 लाख कैरेट हीरों का उत्पादन किया, जो अकेले विश्व उत्पादन का वजनानुसार 10 फीसदी और कीमतन 20 फीसदी था। तब से इसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

खान 54 हेक्टयर क्षेत्रफल में फैली है। खान की लम्बाई 2 किलोमीटर और गहराई 200 मीटर तक है। ज्वानेंग में तीन किम्बरलाइट पाइपें साथ- साथ हैं। हीरों से भरी इन पाइपों का साथ- साथ होना आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद होता है।यहां हीरे निकालने की कार्रवाई के लिए 600 मीटर तक खुदाई की जाती है। अगर भविष्य में जरूरत पड़ी, तो और नीचे भी जाएंगे। ज्वानेंग से उगलते हीरे ओरापा खान से बेहतरीन हैं।

ज्वानेंग के हीरे ओरापा के हीरों से तीन गुना पुराने भी बताए जाते हैं। हीरों का उत्पादन भी बेहतर है- 100 टन पथरीली मिट्टी से 130 कैरेट हीरे निकलते हैं। हीरे निकालने के लिए अत्याधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है। धीरे-धीरे खान की हीरा उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी हो रही है। खानों में हफ्ते के सातों दिन काम चालू रखा जाएगा, ताकि उत्पादन और बढ़ सके।

बताते हैं कि चालू वर्ष के दौरान, ज्वानेंग से करीब 32000 टन पथरीला पत्थर निकाला गया, जिससे करीब 130 लाख कैरेट हीरे हाथ लगेंगे। साल 2015 में सबसे वजनी हीरा 1109 कैरेट यहीं से हाथ लगा था। इसे लेसेडी ला रोना नाम दिया गया। ज्वानेंग खान से इससे पहले उगले सबसे बड़े हीरे का वजन 446 कैरेट था, जो 1993 में निकला था। ज्वानेंग खान से बड़े-बड़े हीरे कम ही निकलते हैं क्योंकि अत्याधुनिक उपकरणों के जरिए खुदाई की वजह से बड़े-बड़े हीरे पता लगने से पहले ही टूट जाते हैं।

उल्लेखनीय है कि बोत्सवाना एक पिछड़ा देश है। यहां सदियों से ब्रिटिश राज रहा। साल 1966 में, बोत्सवाना आजाद हुआ। वहां 5,82,730 वर्ग किलो मीटर ग्रेट अफ्रीकी पठार है। दो-तिहाई क्षेत्र कालाहारी रेगिस्तान से घिरा है । बोत्सवाना के पूर्वी हिस्से में ग्रेनाइट का बेशुमार भंडार है।

भूगर्भ से, सोना, चांदी, ताम्बा, निकल, लोहा और कोयला भी निकलता रहा है। पिछले तीन दशकों के दौरान, यहां हीरों का एकाएक बढ़ता उत्पादन पृथ्वी के भीतर हलचल का नतीजा बताया जाता है। करीब 800 लाख साल पहले, ज्वालामुखी के तपते लावा में, कार्बन के कण भारी दबाव से हीरों में परिवर्तित होते गए। इसीलिए हीरा प्राकृतिक धातुओं में सबसे कठोर है । वैसे भी, हीरा कार्बन रासायनिक से बना है।

जाहिर है कि आज हीरे ही हीरे बोत्सवाना की खुशहाली का सपना साकार कर रहे हैं। वर्ल्ड बैंक ने प्रति व्यक्ति ग्रास डॉमस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद के लिहाज से, बोत्सावना को दुनिया का सबसे उत्कृष्ट उपलब्धि दिखाने वाला देश माना है। अफ्रीकन डवेलपमेंट बैंक ने भी तारीफ की है।आजादी के फौरन बाद 1966 में, इसका प्रति व्यक्ति ग्रास डॉमस्टिक प्रोडक्ट केवल 40 पूला (पूला बोत्सवाना की करेंसी है। 1 पूला करीब सवा 6 भारतीय रुपये के बराबर है) यानी 250 रुपये था, जो 2020 में 16,000 अमेरिकी डॉलर या 13,16,000 रुपये तक बढ़ गई। वर्ल्ड बैंक ने तो बोत्सवाना की इस हैरतअंगेज कामयाबी को ‘चमत्कारिक अर्थव्यवस्था’ करार दिया है। वाकई हीरों से चमकी है बोत्सवाना की तकदीर!


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