अगर कोई व्यक्ति या नेता यह कहता है या फिर दावा करता है कि वह इस देश से भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी मिटा देगा तो वह या तो भ्रम में जी रहा है या फिर झूठ बोलकर लोगों को बेवकूफ बना रहा है। रिश्वतखोरी हमारे समाज की अटल सच्चाई है जिसे नकारा नहीं जा सकता क्योंकि हमारे समाज की संरचना ही ऐसी हो चुकी है। यंू भी कह सकते हैं कि हमारे समाज का ढांचा ऐसा है कि जब तक हम रिश्वत नहीं दे देते, तब तक हमें विश्वास ही नहीं होता कि हमारा काम हो जाएगा क्योंकि इसी तरह का हमारा तंत्र बन चुका है।
जिस तरह से ईश्वर/अल्लाह के कई नाम हैं, उसी तरह रिश्वत को भी कई नामों से पुकारा जाता है। कई लोग इसे चायकृपानी का खर्चा कहते हैं तो कुछ बच्चों की मिठाई बताते हैं तो कई लोग इसे खर्चा पानी का नाम देते हैं। कुछ लोग इसे पान-बीड़ी का खर्चा कहते हैं तो कुछ लोग इसे आपकी मेहनत्यका नाम देते हैं। कुछ लोग इसे पूरी धृष्टता से सुविधा शुल्क बताते हैं। इस अद्भुत कला के कई नाम हैं लेकिन काम सिर्फ एक है। यह एक ऐसी कला है जो आपको अंदर से बहुत दर्द देती है लेकिन बाहर बहुत सुकून मिलता है कि चलो पैसे तो लगे लेकिन काम हो गया। यही वह कला है जो आपका जीवन आसान बनाती है।
रिश्वत ऐसी अद्भुत विधा है जिसे सामने वाला आपसे कभी नहीं मांगता।
हां, आपके सामने ऐसी स्थितियां ला दी जाती हैं या आपको इतना डरा दिया जाता है कि आप खुद रिश्वत देने की पेशकश करने लगते हैं। आपके पेशकश करने के बाद फिर वह आपसे मोल भाव (बारगेनिंग) करता है। कई बार वह आपकी दयनीय हालत को देखकर अपने रेट से भी कम में काम कर देता है।
यह जरा भले किस्म का और दयालु रिश्वतखोर होता है। हां, अगर आपने ईमानदार बनने की कोशिश की तो आपको सामने वाला सबक भी सिखा देता है। फिर जो काम दस हजार में हो रहा है, वह यह तो होगा नहीं और अगर होगा तो दूने रुपए देने पड़ सकते हैं।
हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि हमारे यहां सैकड़ों विभाग ऐसे हैं जहां रिश्वत जैसे पवित्र कार्य को सबके सामने मोल-तोल कर किया जाता है, जिसमें न झिझक होती है न शर्म। पकड़े जाने का तो खतरा कतई नहीं होता। हमारे यहां ऐसे ही नहीं कहा जाता कि आदमी अदालत और अस्पताल से बहुत डरता है। कहावत है कि अदालत की ईंट-ईंट पैसा मांगती है और अस्पताल में जाकर व्यक्ति पैसे ही परेशान हो जाता है। तीमारदार तो वैसे ही बीमार पड़ जाता है।
न चाहते हुए भी इन पंक्तियों के लेखक ने भी रिश्वत जैसी पवित्र विधा के दर्शन कई बार किए। अभी हाल में मथुरा जाना हुआ। वहां एक मकान की रजिस्ट्री कराने के लिए मुझे भी साथ ले गए। मुझे कहा गया कि आप वकील को हायर कर रजिस्ट्री कराने में मदद करें। वकील ने कम पैसों में रजिस्ट्री कराने का भरोसा दिया और कहा कि हम अपनी फीस पूरी लेंगे लेकिन आपके पैसे बचवा देंगे। काम शुरू हो गया। हम लोग खुश।
कुछ ही समय में काम पूरा होने की सूचना मिली। तभी वकील का मुंशी खबर लाया कि फाइल लौट आई है, रजिस्ट्री नहीं हो सकती। मैं वकील पर नाराज हुआ कि मैंने पहले कहा था कि कोई लफड़ा नहीं चाहिए। वकील गया और लौट आया, बोला, साब मैं क्या करूं, बाबू मान ही नहीं रहा। मैंने तो आपसे बिना पूछे पांच हजार देने की पेशकश कर दी है लेकिन वह नहीं मान रहा। वकील कह रहा है पंद्रह हजार लगेंगे। अब आप ही जाकर बात कर लें तो अच्छा रहेगा।
अब हमारे मुंह में गर्म दूध था जिसे हम उगल नहीं सकते थे। हमारे पास उस गर्म दूध को निगलने के अलावा कोई रास्ता नहीं था क्योंकि कई हजार रुपए के स्टांप पेपर आ चुके थे और मकान बेचने वाली पार्टी के पास आधे से ज्यादा पैसे जा चुके थे। आखिर मुझे ही उस दफ्तर में जाना पड़ा। वहां स्वतंत्र भारत का असली चेहरा दिखाई दे दिया। क्या अदभुत नजारा था। खुलेआम रिश्वत ली जा रही थी जैसे कोई दुकानदार सामान बेचने के बाद तसल्ली से रुपए गिनकर रखता है। लोग उसके आगे गिड़गिड़ा रहे थे लेकिन अगर भेड़िया ऐसे सब पर दया करेगा तो भूखों मर जाएगा। फिर तहसील में नौकरी करने का क्या लाभ।
सो बाबू कम रुपए लाने वाले को फटकार कर भगा देता। बाबू ने हमसे पूछा, मकान खरीदने वाले आपके कौन हैं? रिश्तेदार। जिसने मकान बेचा है, उसे बुलाया गया। उससे सवाल जवाब किए। फिर मुझसे कहा – यह फाइल तो गलत है।
मैंने कहा, मुझे नहीं मालूम, वकील ने अपनी मर्जी से फाइल तैयार की है। मैंने उसे अपना परिचय दिया। इसके बाद जात बिरादरी का रिश्ता निकाला। उसके बाद दूरदराज की रिश्तेदारी निकाली, तब उसने कहा कि मामला तो पंद्रह हजार का है लेकिन आप अंदर आ जाओ। उसने कुछ बिरादरी और कुछ रिश्तेदारी का लिहाज करते हुए मुझे चाय पिलाई और बोला – अब उतने ही रुपए दे देना जितने आपके वकील ने कहा था। वैसे काम तो ज्यादा का है।
यहां जो आदमी पांच हजार बीस रुपए की पर्ची काट रहा था, वह भी सौ रुपए अलग से ले रहा था। जो दस्तखत करा रहा था, वह दस्तखत करने के तीस रुपए और जो मुहर लगा रहा था, वह बीस रुपए ले रहा था। और तो और, हर फाइल के चौकीदार भी बीस रुपए लेने का हकदार था। ऐसे लग रहा था कि जो लोग रजिस्ट्री कराने आए हैं, वे लूट का पैसा लेकर आए हैं जिन पर सबका हक है जो रिश्वत के रूप में ले रहे हैं।
मैंने बाबू से उसकी चाय पीते हुए पूछा, यह एक लाख रुपए से ज्यादा की रकम है। क्या आप अकेले सब रख लेंगे। वह मुस्कराया बोला, नहीं, यहां सब एक एक पैसे का हिसाब होता है और सब नियम और ईमानदारी से सबके हिस्से में जाते हैं। पुलिस के तो ऐसे किस्से भरे पड़े हैं जिन पर किताब लिखी जा सकती है।
अभी वरिष्ठ लेखक सुधीश पचौरी ने बताया कि रोमानिया में तो बाकायदा रिश्वतखोरी का बहुत बड़ा म्यूजियम बनने जा रहा है जिसमें रिश्वतखोरों के रिकार्ड व उनके जीवन चरित्र होंगे। हमारा भी यही कहना है कि हम रिश्वतखोरी के मामले में दुनिया में शायद पहले नंबर पर होंगे। अगर पहले पर नहीं होंगे तो बहुत पीछे भी तो नहीं होंगे, ऐसा विश्वास है। इसलिए हमारे यहां भी इस तरह का म्यूजियम बनना चाहिए। इससे हमारी आने वाली पीढ़ी को पता लग सकेगा कि रिश्वतखोरी के मामले में हम किसी से पीछे नहीं रहे।
इससे नई पीढ़ी को यह भी पता रहेगी कि हम लोगों में कितनी हिम्मत, कितनी प्रतिभा और उनका चरित्र कितना मजबूत था कि यह सब करने के बाद भी उनके चेहरे पर शर्म नाम की कोई चीज नहीं होती। इससे अपने इतिहास का तो पता चलेगा ही, रिश्वतखोरों की मौलिकता को सराहा जा सकेगा क्योंकि यह कला सबके पास नहीं होती।
और अंत में अमरीका के एक मशहूर लेखक और दार्शनिक की टिप्पणी, जब तक सरकार और उसके अधिकारी किसी भी तरह की रिश्वतखोरी चलने देंगे, तब तक न्याय नहीं होगा लेकिन यह टिप्पणी भारत जैसे देश के लिए कोई मायने नहीं रखती जहां रिश्वतखोरी सर्वमान्य हो चुकी हो और हमारे खून में रच बस चुकी हो।
चांद खां रहमानी