चुनाव प्रचार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर गरीबी को सबसे बड़ी जाति बताया है। कांग्रेस द्वारा जातिगत जनगणना कराए जाने के चुनावी वायदे से होने वाले संभावित नुकसान की काट के तौर पर श्री मोदी गरीबी को सबसे बड़ी जाति बताकर उन वर्गों को साधने की कोशिश में जुटे हुए हैं जो ओबीसी श्रेणी में आने के बावजूद लाभान्वित नहीं हो सके। बिहार में जातिगत जनगणना के बाद उससे जुड़ी विसंगतियां जिस तरह से सामने आने लगी हैं उसका सूक्ष्म अध्ययन करते हुए भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस और मंडलवादी अन्य पार्टियों के हाथ से ये हथियार छीनने की फिराक में हैं। सुनने में आ रहा है कि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी आरक्षण और जातिगत जनगणना के राजनीतिक प्रभाव का आकलन करने के बाद किसी ऐसी नीति का ऐलान करने पर विचार करेगी जिससे आरक्षण का मौजूदा ढांचा बदले बिना ही आर्थिक दृष्टि से कमजोर तबके को सभी प्रकार से संतुष्ट कर दिया जाए। आज के राजनीतिक माहौल में जातिगत आरक्षण को आर्थिक आधार प्रदान करना तो खतरे से खाली नहीं होगा परंतु एक बात अब निष्कर्ष में बदलने लगी है कि जातिगत आरक्षण केवल राजनीतिक नेताओं और उनके परिवारों की मिल्कियत बनकर रह गया है। उनके अलावा नौकरशाहों का एक वर्ग भी उसके फायदों पर कुंडली मारकर बैठा हुआ है। सर्वाेच्च न्यायालय ने इस संबंध में अनेक बार टिप्पणी भी की। सामाजिक मंचों पर भी इस बारे में मंथन चल रहा है। लेकिन राजनेता साहस नहीं दिखा पा रहे। कुछ साल पहले बिहार विधानसभा के चुनाव के समय रास्वसंघ प्रमुख डा.मोहन भागवत ने सहज रूप से आरक्षण की समीक्षा किए जाने का सुझाव दिया था। उसकी बेहद तीखी प्रतिक्रिया हुई और भाजपा को काफी नुकसान हो गया। हालांकि बाद में संघ प्रमुख ने इस बात को कई बार दोहराया कि फिलहाल आरक्षण को हटाने की स्थितियां नहीं बनी हैं। तभी से भाजपा भी इस विषय में सतर्क हो गई । और सोशल इन्जीनियरिंग का उपयोग करते हुए पिछड़ी जातियों को अपने साथ जोड़ लिया जिससे दूसरी पार्टियों को तकलीफ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों छत्तीसगढ़ के जगदपुर में आयोजित चुनावी रैली में कांग्रेस पर जोरदार प्रहार किया। उन्होंने कहा, ‘कल से कांग्रेस ने एक अलग राग अलापना शुरू कर दिया है। ये कहते हैं- जितनी आबादी, उतना हक। मैं कहता हूं इस देश में अगर सबसे बड़ी कोई आबादी है तो वह गरीब है, इसलिए गरीब कल्याण ही मेरा मकसद है।’ नए महाराष्ट्र सदन में सांसदों से पीएम मोदी ने गरीबों के लिए काम करने और केंद्र द्वारा लाई गई गरीब-समर्थक योजनाओं के बारे में बताने को कहा। उन्होंने सांसदों से कहा कि ‘गरीबी सबसे बड़ी जाति है।’ पीएम उत्तर प्रदेश और बिहार में जातीय संवेदनशीलता को लेकर सजग हैं। यूपी में पीएम मोदी ने सांसदों से जातिगत भेदभाव से ऊपर उठने को कहा। पीएम मोदी चाहते थे कि सांसद लोगों को योजनाओं के बारे में जागरूक करें ताकि गरीब उनका लाभ उठा सकें। केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए गरीब कल्याण रोजगार अभियान, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना और प्रधान मंत्री स्ट्रीट वेंडर की आत्मानिर्भर निधि योजना जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं।
जातिगत जनगणना का अस्त्र दरअसल इसी के जवाब में निकाला गया। भाजपा की दुविधा ये है कि इसका समर्थन करने पर उसका सवर्ण जनाधार खिसक जाएगा और विरोध करने पर पिछड़ी और दलित जातियां हाथ से निकल जाएंगी। प्रधानमंत्री चूंकि इस बात को समझ गए हैं इसीलिए उन्होंने जातिगत जनगणना के जवाब में गरीबी को सबसे बड़ी जाति बताकर नए विमर्श को जन्म दे दिया। हालांकि अभी तक ये मुख्यधारा की राजनीति का विषय तो नहीं बन सका किंतु जिस तरह वे लगातार इसे दोहरा रहे हैं उससे लगता है कि गरीबी को सबसे बड़ी जाति बनाना किसी बड़े खेल का पूर्वाभ्यास है।
प्रधानमंत्री के बयानों से यह समझना मुश्किल नहीं है कि कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की मिलीजुली खिचड़ी में जाति का जहर डालने की जो कोशिश की, उसकी काट में बीजेपी ने हिंदू बनाम मुसलमान का विमर्श आगे बढ़ाने की ठान ली है। बिहार जैसे प्रदेश में जहां पहले लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व में 32 वर्षों से पिछड़ों का ही राज हो, वहां आज भी पिछड़ों के पिछड़ा रह जाने का राग अलापा जाए तो सवाल इन्हीं शासकों पर खड़े होंगे। ऐसे में संभव है कि फायदे की चाह में करवाई गई जाति जनगणना कहीं बीजेपी विरोधियों के गले की फांस न बन जाए। आखिर, खुद पिछड़े वर्ग से आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछले नौ सालों में पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग को व्यापक रूप से बीजेपी के साथ जोड़ने में सफलता हासिल की है।
प्रधानमंत्री मोदी शतरंज के खेल की तरह बहुत आगे की सोचकर चाल चलते हैं। मध्य प्रदेश में चूंकि कांग्रेस ने जातिगत जनगणना को अपने चुनावी वायदे में शामिल कर लिया है इसलिए उन्होंने भी पलटवार कर दिया है। लेकिन भाजपा के बाकी नेता इस बारे में उतने मुखर नहीं है। सही मायनों में अब समय आ गया है जब आरक्षण के मामले में राजनेताओं को खुलकर अपने विचार व्यक्त करना चाहिए क्योंकि ये मुद्दा अब समाज में जातिगत दरारें चौड़ी करने का कारण बनता जा रहा है। एक समय था जब बिहार और उत्तर प्रदेश ही जाति की राजनीति का बोलबाला था किंतु वोटों की राजनीति ने अब जाति को भारतीय राजनीति की अनिवार्य बुराई बना दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज जब यह कह रहे हैं कि सबसे बड़ी आबादी गरीबों की है तो इसके पीछे भी बहुत बड़ा संदेश छिपा है। वो यह बता रहे हैं कि गरीब-गरीब होता है, वो अगर जातियों में बिखर गया तो फिर उसके साथ वही होगा जो लंबे समय से होता आया है- पिछड़े, गरीब की रट लगा-लगाकर सत्ता सुख भोगते रहो। पीएम ने पिछड़े वर्ग के मतदाताओं ही नहीं, हर जाति-धर्म के गरीबों को बीजेपी से जोड़ने में बहुत कामयाब रही है तो इसका श्रेय उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को जाता है। सवाल है कि क्या महज जाति जनगणना करवा देने से वह लाभार्थी वर्ग पाला बदल लेगा? सवाल यह भी है कि क्या जाति जनगणना का तीर निशाने से बिल्कुल चूक जाएगा? सवाल है कि क्या पीएम मोदी की गरीब-पिछड़े हितैषी की छवि विपक्ष की इस कवायद पर भी भारी पड़ जाएगी? गरीबी वाकई एक कलंक है जो हमारी सारी प्रगति पर सवालिया निशान लगा देती है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद इस बारे में खुली राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए।