एक बार भगवान महावीर के शिष्यों के मध्य एक विषय पर गंभीर चर्चा चल रही थी कि मनुष्य के पतन का कारण क्या है? किसी शिष्य ने मनुष्य पतन का कारण काम वासना को बताया, किसी ने लोभ को, किसी ने अहंकार को तो किसी ने मोह को मनुष्य के पतन कारण बताया, पर इस सबके बावजूद उन सभी में कोई एक राय नहीं बन पा रही थी।
अंतत: वे इस समस्या के समाधान के लिए भगवान महावीर के पास गए। भगवान महावीर ने अपने शिष्यों से कहा, पहले मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो। मान लो, मेरे पास एक छोटा कमंडल है, जिसमें पर्याप्त जल समा सकता है। मैंने यदि उसे नदी में छोड़ दिया तो क्या वह डूब जाएगा? शिष्यों ने कहा, कदापि नहीं, वह तैरने लगेगा।
भगवान महावीर ने पूछा, लेकिन यदि इसमें एक छिद्र दाईं ओर हो तो, क्या होगा? शिष्य बोले, तब तो इसका डूबना तय ही है। भगवान महावीर ने फिर पूछा, लेकिन यदि छिद्र बाईं ओर हो तो? इस पर एक शिष्य बोला, दाई ओर हो या बाई ओर हो, छिद्र कहीं भी हो, कमंडल को तो पानी में डूबना ही है। यह सुनकर भगवान महावीर बोले, मानव एक मन भी एक कमंडल के समान ही है।
उसमें दुर्गुण रूपी छिद्र जहां भी हुआ, समझ लो कि वह अब डूबने ही वाला है। उसको डूबने से कोई नहीं रोक सकता। काम, क्रोध, लोभ, अहंकार आदि सभी दुर्गुण उसे डुबोने के निमित हो सकते हैं, इनमें कोई भेद नहीं। इसलिए हमें सजग रहना चाहिए की कहीं हमारे जीवनरूपी कमंडल में कोई छिद्र तो नही हो रहा है। दुर्गुण रूपी छिद्र, मनुष्य जीवन के पतन का कारण बनता है।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा